सारी बस्ती
सारी बस्ती में ये जादू नज़र आए मुझको,
जो दरीचा भी खुले तू नज़र आए मुझको,
सदियों का रत जगा मेरी रातों में आ गया,
मैं एक हसीन शख्स की बातों में आ गया,
जब तस्सवुर मेरा चुपके से तुझे छू आए,
देर तक अपने बदन से तेरी खुशबू आए,
गुस्ताख हवाओं की शिकायत न किया कर,
उड़ जाए दुपट्टा तो खनक औढ लिया कर,
तुम पूछो और में न बताउ ऐसे तो हालात नहीं,
एक ज़रा सा दिल टूटा है और तो कोई बात नहीं,
रात के सन्नाटे में हमने क्या-क्या धोके खाए है,
अपना ही जब दिल धड़का तो हम समझे वो आए है।
~ क़तील शिफ़ाई
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