■ प्राइवेट स्कूलों के चहेते बने यूनिवर्सल बुक सेंटर
■ हर स्कूल के रेट फिक्स, दीवार में लगी रेट लिस्ट
■ 5 से 15 हजार का भी लिया जा रहा कैश पेमेंट
■ पॉलिथीन बंद फिर भी पॉलिथीन में पहले से बंद हर क्लास की किताबे
■ किताबो से साथ जबरदस्ती दी जा रही कॉपियां
हरदोई : अप्रैल के महीने में अभिभावकों को हर तरफ खर्च नजर आता है। स्कूल की फीस से लेकर कॉपी किताबों की महंगाई ने घर का बजट बिगाड़ दिया है। इसका असर अभिभावकों की जेब पर सीधा पड़ रहा है। कॉपी किताबों पर पड़ रही महंगाई की मार से अभिभावक लाचार हैं।
अप्रैल में एक बच्चे की कॉपी किताब, फीस व यूनीफार्म से लेकर 12 से 15 हजार रुपये तक का खर्च आ रहा है। मध्यम वर्गीय परिवार की बात करें तो बच्चों की पढ़ाई उनके घर का बजट बिगाड़ देता है। अगर उनके दो बच्चे हैं तो एक माह की पूरी तनख्वाह कम पड़ जाती है। पुस्तक विक्रेताओं की मानें तो किताबें जीएसटी मुक्त हैं, लेकिन प्रिटिग में इस्तेमाल कागज व इंक पर भारी भरकम जीएसटी लगाई गई है। इससे कापी व किताबों पर महंगाई का असर है। पिछले वर्ष की तुलना में 10 से 12 फीसद कापी व किताबें महंगी हैं। अबकी बार किताबें 12 फीसद व कापियां 10 फीसद महंगी हैं। निजी प्रकाशक की किताबें महंगी, एनसीईआरटी की सस्ती : एनसीईआरटी व निजी प्रकाशकों की किताबों के दामों में जमीन आसमान का अंतर है। इसके पीछे कारण यह है कि निजी प्रकाशक स्कूलों से साठगांठ करके किताबें पाठ्यक्रम में शामिल कराते हैं, जिससे स्कूल संचालकों की मोटी कमाई होती है। जिन दुकानदारों के पास निजी प्रकाशकों की किताबें होंगी, उनसे भी स्कूलों का अच्छा कमीशन तय होता है। वहीं एनसीईआरटी की किताबें निजी प्रकाशकों की किताबों से काफी सस्ती होती हैं। अभिभावक बोले प्रमोद कुमार ने बताया कि शिक्षा व्यवस्था के लिए जो कानून बने हैं, उससे अभिभावकों को कोई फायदा नहीं मिल रहा है। हर साल अभिभावकों को इसकी मार झेलनी पड़ती है। प्रशान्ति न्यूजपेपर की पड़ताल में यूनिवर्सल बुक स्टॉल पर खुलेआम अभिभावकों से किताबों से अधिक धन उगाही की जा रही है बुक स्टॉल पकड़ काफी वक्त अभिभावकों ने नाम ना लिखने की बात को लेकर अपनी आपबीती बताई जिस पर उनका कहना है कि स्कूलों द्वारा बताया जाता है कि किस बुक स्टोर से सारी किताबें मिलेंगे वहीं यूनिवर्सल बुक सेंटर पर जाने पर सिर्फ कोर्स बताते ही पूरा कोर्स उठा कर दे देते हैं जो कि पहले से ही मनवा फेवरेट में तैयार किए जाते हैं दिल की ना तो रसीद दी जाती है ना ही जीएसटी बिल दिया जाता है अगर बताए गए बुक सेंटर से भूखे ना लिए तो हरदोई में चल है मांटेसरी स्कूलों में अध्यापकों द्वारा वापस करा दिया जाता है स्कूल में पढ़ता है, लेकिन उनके साथियों के बच्चे कांवेंट स्कूल में पढ़ते हैं। उनके बच्चे का हर साल कोर्स के नाम पर पाठ्यक्रम बदल दिया जाता है, जिससे वह परेशान रहते हैं। सुनील कुमार वर्मा ने बताया कि उनका बेटा कांवेंट स्कूल में पढ़ता है। कक्षा दो का छात्र है और उसका कोर्स 4400 रुपये का आया है। सस्ती शिक्षा का मुद्दा कोई राजनीतिक दल नहीं उठाता है, जबकि इसकी तरफ जनप्रतिनिधियों को ध्यान देना चाहिए। दिलीप वर्मा ने बताया कि कोर्स बदलने के कारण परिवार में बड़े से छोटे बच्चों की किताबें इस्तेमाल नहीं हो पाती हैं। किताबें होते हुए भी बच्चों को नई किताबें खरीदना मजबूरी बन गई है। इससे अभिभावक परेशान हैं।
No comments:
Post a Comment