रेलवे के लिए काल बना ‘कानपुर रेलखंड’!
पांच साल में 600 रेल हादसे, 54 फीसद की वजह ट्रैक से उतरीं ट्रेन
रवि गुप्ता
लखनऊ। यूपी के औद्योगिक नगरी नाम से मशहूर कानपुर अब रेलवे के लिए एक तरह से काल बनता जा रहा है जिसका फिलहाल अभी तक कोई तोड़ रेलवे के आधुनिक तंत्र के पास नहीं है। कानपुर रेलखंड के पास कुछ समय पहले हुए पुखरांया रेल हादसे के पीड़ित यात्रियों के शारीरिक व मानसिक जख्म भर भी नहीं पाये थे कि फिर इसी रेल लाइन पर एक और रेलगाड़ी पटरी पर दौड़ते-दौड़ते उतर गयी।
हादसे पर हादसे इसी कानपुर रेलखंड पर घटित हो रहे हैं…पटरी पर बढ़ते-बढ़ते अचानक पूरी की पूरी ट्रेन बेपटरी हो जाती है, निर्दोष रेल यात्री काल के गाल में समां जा रहें, लेकिन रेल मंत्रालय से लेकर रेलवे बोर्ड, जोन व डिवीजन जैसे इस भारी-भरकम रेलवे तंत्र पर कोई खास असर पड़ता नहीं दिख रहा।
रेल दुर्घटनाओं से संबंधित पहले की एक रिपोर्ट मानें तो बीते पांच साल में पूरे देश में तकरीबन 600 रेल हादसे घटित हुए जिसमें से 54 फीसद दुर्घटना केवल ट्रेन के ट्रैक पर बेपटरी होने से हुई। जैसे ही कोई रेल हादसा घटित होता है तो मृतकों व घायलों को अलग-अलग कैटेगरी में मुआवजे की राशि का ऐलान कर दिया जाता है और रेलवे के अन्तर्गत एक स्पेशल जांच टीम बिठा दी जाती है। ऐसे में रेल दुर्घटनाओं के कितने दिनों बाद पीड़ितों को मुआवजा मिल पाता है या फिर जांच रिपोर्ट में क्या आता है और किन दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई हो पाती है, रेलवे से इसका पता लगा पाना एक तरह से लोहे के चने चबाने जैसा है।
कानपुर व प्रदेश में घटित हालिया रेल दुर्घटनायें
- 20 अप्रैल 2019 हावड़ा-नई दिल्ली पूर्वा एक्स. के 12 कोच कानपुर के पास उतरे, 15 घायल।
- नवंबर 2016 इंदौर-पटना एक्सप्रेस कानपुर रेलखंड पर 14 कोच डिरेल, 150 मरे और करीब इतने घायल।
- दिसंबर 2016 अजमेर-सियालदाह एक्सप्रेस कानपुर रेललाइन के पास बेपटरी, 15 कोच उतरे 60 घायल।
- मार्च 2015 देहरादून-वाराणसी जनता एक्सप्रेस रायबरेली में डिरेल, 60 मरे और 100 से अधिक घायल।
- मई 2015 राउरकेला-जम्मूतवी मूरी एक्स. कौशांबी में डिरेल, छह मरे और 50 घायल।
ट्रैकमैन सीमित, रात की पेट्रोलिंग बाधित
नई रेलवे मजदूर यूनियन के मंडल मंत्री अजय कुमार वर्मा के मुताबिक रेल संरक्षा से जुडे 2.5 लाख अभी तक खाली पड़े हैं। ज्यादातर ट्रैक पुराने पड़ चुके हैं, दिन-प्रतिदिन इन्हीं पर नई-नई गाड़ियों का लोड बढ़ रहा है। पहले रात की पेट्रोलिंग में एक समूह में एक दर्जन से अधिक संरक्षा कर्मी होते थे, लेकिन अब तीन-चार ही रह पाते हैं ऐसे में चाहकर भी ट्रैकमैन अपनी पूरी ड्यूटी नहीं कर पाते।
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