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Friday 29 September 2017

कल्पेश याग्निक का कॉलम: उत्साह से देखिए, जीवन एक त्योहार ही तो है

मातृ-सुलभ दुलार लिए, घर व चौराहों-मैदानों में पीछे-पीछे दौड़ते। पुचकारते। नारी-सुलभ कोमलता लिए, सहेजते-संवारते हुए। गाते। कन्या-सुलभ नैसर्गिक साहस लिए। पुकारते। युवा-सुलभ उल्लास, द्रुतगति और अनंत समय लिए। कोलाहल करते। दादी-नानी सुलभ आशीर्वाद लिए, सभी को विभिन्न पर्व स्थलों पर एकसाथ जुटने, भेंट करने और प्रसन्न रहने की सीख देते। पर्व, भारतीय उत्साह का दर्शनीय रूप हैं। पर्व न किसी धार्मिक बंधन में बंधे होते हैं, न ही किसी समूह विशेष में सीमित होते हैं।

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