हिंदी साहित्य का प्रतिष्ठित व्यास सम्मान ग्रहण करते हुए प्रसिद्ध नाटककार सुरेंद्र वर्मा ने कहा, ‘मैं तो मुगलकालीन नाटकों की श्रृंखला पर काम कर रहा था. लेकिन एक दिन भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद की इमारत में मुझे दुर्वासा ऋषि मिल गए और समझाने लगे कि साहित्य में उनके ऊपर काम नहीं हुआ है. मैंने कहा कि मैं तो मुगलों के वैभव को जी रहा हूं, इस प्राचीन भारत पर क्यों काम करुं, लेकिन इन ऋषि-मुनियों के पास बड़ी दैवीय ताकत होती है जिसके चलते उन्होंने मुझसे कालिदास पर यह उपन्यास (काटना शमी का वृक्ष : पद्मपंखुरी की धार से) लिखवा ही लिया.’’ आगे पढ़ें
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