गुजरात हाईकोर्ट ने गोधरा कांड में 11 दोषियों की मौत की सज़ा को उम्र कैद में बदल दिया है, जबकि 20 लोगों की उम्रकैद की सजा को बरकरार रखा है.
हाईकोर्ट ने अपने आदेश में राज्य सरकार को इस घटना में मरने वालों के परिवार को 10 लाख का मुआवजा देने का भी आदेश दिया है.
पूरे मामले पर कड़ी टिप्पणी करते हुए कोर्ट ने ये भी कहा कि राज्य सरकार और रेल अधिकारी 27 फरवरी 2002 को कानून व्यवस्था बहाल करने में असमर्थ रहे.
एसआईटी की विशेष अदालात ने 1 मार्च 2011 में इस मामले में 11 दोषियों को मौत की सजा सुनाई थी जबकि 20 को उम्रकैद की सज़ा सुनाई थी.
विशेष अदलात का फ़ैसला
1 मार्च 2011 को विशेष अदालत के इस फैसले को बचाव पक्ष के वकील आईएम मुंशी ने असाधारण करार देते हुए कहा था कि ये स्वीकार करना मुश्किल है.
उसी वक्त उन्होंने फ़ैसले को उच्च न्यायालय में चुनौती देने की बात कही थी. हालांकि तब सरकारी वकील जे. एम. पांचल ने फ़ैसले पर संतोष जताते हुए कहा था कि उन्हें कुछ एक मामले में ही हैं जब 11 लोगों को मौत की सज़ा सुनाई गई हो.
नागरिक अधिकार कार्यकर्ता और वकील मुकुल सिन्हा ने मीडिया से बातचीत में फैसले पर असंतोष जताया था. तब उनका मानना था कि मामले में सबूत कमजोर थे.
विशेष अदालत ने गोधरा रेल कांड को साजिश क़रार दिया था.
क्या था पूरा मामला
27 फरवरी 2002 को साबरमती एक्सप्रेस के एक डिब्बे को गोधरा स्टेशन पर आग लगा दिया गया था.
उस आग में 59 लोग मारे गए थे, जिनमें से ज़्यादातर अयोध्या से लौट रहे हिंदू कारसेवक थे.
इसके बाद पूरे गुजरात में दंगे भड़क गए थे जिनमें 1000 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई थी.
राज्य के उस वक्त के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इसे पूर्व नियोजित घटना का नाम दिया था.
इस जांच पर सवाल उठाने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने 2008 में आर के राघवन के नेतृत्व में एक और जांच दल गठित करने का आदेश दिया था.
इस मामले में सुनवाई जून, 2009 में शुरू हुई थी.
-BBC
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