जमात उद दावा के मुखिया और आतंकी हाफिज सईद की नजरबंदी को प्रोविंसियल रिव्यू बोर्ड ने एक महीने के लिए बढ़ा दिया है। पाकिस्तान सरकार की तरफ से हाफिज के अलावा जमात के चार और नेताओं की नजरबंदी की अवधि बढ़ाने की मांग की गई थी। सरकारी वकील की अपील पर लाहौर हाइकोर्ट ने हाफिज की नजरबंदी को एक महीने के लिए बढ़ा दिया है।
नजरबंदी से जुड़ी खास बातें
प्रोविंसियल रिव्यू बोर्ड में तीन सदस्य शामिल हैं। हाफिज सईद के मामले की जस्टिस मुहम्मद यावर अली, जस्टिस अब्दुल समी खान और जस्टिस आलिया नीलम सुनवाई कर रहे हैं।
जमात उद दावा के चार नेता (आतंकी) काजी कासिफ नियाज, प्रोफेसर जफर इकबाल, अब्दुल रहमान आबिद और अब्दुल्ला उबेद की नजरबंदी 26 अक्टूबर को खत्म होगी।
जमात उत दावा के इन नेताओं को पंजाब सरकार ने पाकिस्तान सरकार की सलाह के बाद नजरबंद किया था।
फिलहाल लाहौर हाइकोर्ट की एक जज की पीठ ने हाफिज और दूसरे नेताओं की अपील पर सुनवाई को टाल दी है।
जमात उद दावा के दूसरे नेताओं ने नजरबंदी को गैरकानूनी बताते हुए लाहौर हाइकोर्ट के सामने अपील दायर की है।
पाक सरकार के लॉ ऑफिसर ने एटॉर्नी जनरल की देश से बाहर होने की दलील देकर सुनवाई को आगे बढ़ाने की अपील की। अदालत ने सरकारी अपील को स्वीकार करते हुए सुनवाई की अगली तारीख 24 अक्टूबर मुकर्रर की है।
नजरबंदी में हाफिज सईद
आतंक के सरगना हाफिज सईद को पाकिस्तान सरकार ने 30 जनवरी 2017 को तीन महीने के लिए नजरबंद किया था, बाद में तीन महीने के लिए और नजरबंदी की अवधि बढ़ाई गई। एक बार फिर 1 अगस्त 2017 को दो महीने के लिए हाफिज सईद की नजरबंदी की अवधि बढ़ा दी गई है। पंजाब प्रांत के गृह मंत्रालय ने एक अगस्त को अधिसूचना जारी कर सईद की नजरबंदी को दो महीनों के लिए बढ़ा दिया है। इसका अर्थ है कि आतंक का वो चेहरा अब सितंबर के आखिरी दिन तक नजरबंदी में रहेगा। हाफिज सईद और उसके समर्थकों ने नजरबंदी के खिलाफ लाहौर हाइकोर्ट में अपील की है और मामला अभी विचाराधीन है।
हाफिज पर अमेरिका की तिरछी नजर
अमेरिका ने पहले ही जमात-उद-दावा को आतंकी संगठनों की सूची में डाल रखा है। इसके अलावा जमात के चैरिटी विंग फलाह-ए-इंसानियत भी आतंकी संगठनों की सूची में है। मुंबई हमलों के लिए जिम्मेदार हाफिज को अमेरिका और संयुक्त राष्ट्र संघ ने आतंकी घोषित किया है। प्रतिबंध लगाए जाने के बाद जमात-उद-दावा ने अपना नाम बदलकर तहरीक-ए-आजादी-ए-कश्मीर कर लिया। अमेरिका और संयुक्त राष्ट्र संघ ने जमात उद दावा को प्रतिबंधित कर रखा है। लेकिन पाकिस्तान को अब भी जेयूडी पर बैन लगाना है। लाहौर हाइकोर्ट से हाफिज के संगठन को फिलहाल राहत मिली हुई है।
जानकार की राय
प्रोफेसर हर्ष वी पंत ने कहा कि इस प्रकरण को दो बिंदुओं पर समझने की जरूरत है। उनके मुताबिक हाल ही में अमेरिकी-कनाडाई जोड़ी कैटलन कोलमैन और जोशुआ बोएल के मामले में अमेरिका ने स्पष्ट कर दिया था कि वो हक्कानी नेटवर्क के खिलाफ कड़ी कार्यवाही करने से गुरेज नहीं करेगा। अमेरिकी चेतावनी के बाद पाक को ये समझ में आने लगा कि ओसामा बिन लादेन के मारे जाने के बाद उसकी एक बार फिर जग हंसाई हो सकती है लिहाजा उसके लिए बेहतर था कि वो हक्कानी नेटवर्क पर लगाम लगाए।
हाफिज सईद की नजरबंदी की अवधि को बढ़ाए जाने पर हर्ष वी पंत ने कहा कि एक बात साफ है कि अब पाकिस्तान को समझ में आ रहा है कि वो अमेरिकी गुस्से को और नहीं सह सकता है। हाफिज की नजरबंदी के मामले में लाहौर हाइकोर्ट पहले ही कह चुका था कि अगर पुख्ता सबूत नहीं मिले तो अदालत उसको रिहा कर देगी लेकिन अदालत के ताजा फैसले और अमेरिकी विदेशमंत्री रेक्स टिलरसन की मौजूदा यात्रा के पीछे एक संबंध है। ऐसा प्रतीत हो रहा है कि अमेरिका के सामने अपनी साख बचाने के लिए पाकिस्तान ने अदालत को ये भरोसा दिया हो कि वो हाफिज के मुद्दे पर पुख्ता साक्ष्य जुटाने की दिशा में काम कर रहे हैं लिहाजा अदालत हाफिज की नजरबंदी की अवधि को बढ़ा दे।
पाक पर जब अमेरिकी दबाव आया काम
अमेरिकी-कनाडाई जोड़े कैटलन कोलमैन और जोशुआ बोएल को हक्कानी नेटवर्क से आजाद करा लिया गया है। बताया जा रहा है कि कोलमैन-बोएल की रिहाई में पाकिस्तान ने महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है। आपको बता दें कि 2012 में हक्कानी नेटवर्क ने पाक-अफगान सीमा के पास से दोनों को अगवा कर बंधक बनाया था। ये रिहाई इसलिए भी अहम है क्योंकि अमेरिका ने दो दिन पहले साफ शब्दों में पाकिस्तान को चेतावनी दी थी। ट्रंप प्रशासन ने कहा था कि अगर हक्कानी नेटवर्क पर लगाम नहीं लगी तो वो पाकिस्तान के खिलाफ कठोर कार्यवाही करेगा।
-एजेंसी
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