हाथों-हाथ रचनाएं बनाने और उनसे श्रोताओं की वाह-वाही लूटने में आगे रहने वाले कवि बंकट बिहारी ‘पागल’ अब नहीं रहे। करुण व हास्य रस के इस प्रख्यात कवि का देहांत हो गया है। वे पिछले लंबे समय से बीमार चल रहे थे। बंकट बिहारी के निधन से काव्य जगत में शोक की लहर दौड़ गई है।
बंकट की एक प्रसिद्ध कविता ‘चश्नाला की खान’ आज भी अपने विशेष करुण भावों के कारण याद की जाती है। बंकट के निधन पर काव्य जगत में मायूसी छा गई है। कवियों ने अपने अपने अंदाज में उन्हें श्रद्धांजलि भी दी है। कहा जाता है कि बंकट ने चार दशकों तक विभिन्न मंचों पर राज किया। जब वे मंच पर आते थे तो तालियों की गड़गड़ाहट से उनका स्वागत होता था।
बंटक ने अनगिनत बार मंच का संचालन भी किया। मंच भी उनके मुताबिक ही चलता था। उन्होंने सदैव अपनी कविताओं से जहां हास्य बिखेरा वहीं कम लोग ही जानते हैं कि करुण रस पर भी उनकी पकड़ बेहद शानदार थी।
युवा कवियों ने बंकट को हमेशा अपनी प्रेरणा का स्त्रोत माना। कवि अतुल कनक ने कहा है कि उनका जाना अपूरणीय क्षति है। वे कहते हैं कि उनकी कविता की शुरुआती लाइनें इस मौके पर याद आती हैं कि फेंक दो सितार को, तोड़ दो तार को, वेदना के स्वरों में न गुनगुनाओ तुम. भूल जाओ तुम मुझे, न याद आओ तुम….।
वहीं कवि अब्दुल गफ्फार ने कहा कि आज आशुकविता का बेताज बादशाह चला गया। उन्होंने कहा कि जिसके सम्मुख प्रतिद्वंदी हर पल शर्मिंदा रहते थे, चला गया वो “पागल” जिससे मंच जिंदा रहते थे, महाकाल के आगे भी वे डरा नहीं करते हैं, ‘पागल’ जैसे शख्स कभी भी मरा नहीं करते हैं।
-एजेंसी
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