देश के 26 एतिहासिक और पौराणिक सूर्यकुंडों में से एक गोरखपुर के Suryakund धाम की बड़ी महिमा है। पौराणिक कथाओं के अनुसार राज्य भ्रमण के लिए निकले कोशलाधीश श्रीराम ने यहां विश्राम किया था। अगले दिन सुबह उठकर उन्होंने इस सरोवर में स्नान किया। एक पिंड बनाकर सूर्यदेव का आह्वान किया। सूर्यदेव ने दर्शन दिये तो श्रीराम ने उन्हें दीपदान किया।
इसी के बाद इस सरोवर का नाम सूर्यकुंड पड़ गया जहां दिवाली के दूसरे दिन दीपोत्सव की परम्परा आज भी बड़े उल्लास से मनाई जाती है। सूर्यकुंड का उल्लेख बाल्मीकि रामायण में भी मिलता है। जानकारों के मुताबिक इस स्थान का पौराणिक नाम ‘कारुपथ’ था। महाभारत काल में यह ‘गोपालक’ के रूप में जाना जाता था।
Suryakund में दीपोत्सव :जोरशोर से चल रही तैयारी
इस साल भी दीपोत्सव के लिए तैयारियां जोर-शोर से चल रही हैं। सूर्यकुंड सरोवर में दीपोत्सव का बड़ा महत्व है। उत्सव में शामिल होने के लिए गोरखपुर के अलावा आसपास से भी बड़ी संख्या में लोग आते हैं। बताते हैं कि दीपोत्सव में शामिल होकर यहां दीप जलाने से विशेष पुण्यफल मिलता है। भगवान सूर्य अपने भक्तों की सभी मनोकामनायें पूरी करते हैं।
मान्यता है कि Suryakund में सात कुंड हैं। इसका पानी कभी नहीं सूखता।
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