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Thursday 9 November 2017

स्मोक और फॉग दोनों से ज्यादा खतरनाक है ‘SMOG’

SMOG शब्द स्मोक और फॉग से मिल कर बना है। खतरनाक गैसों और कोहरे के मेल से स्मॉग बनता है। गाड़ियों और फैक्टरियों से निकले धुएं में मौजूद राख, सल्फर, नाइट्रोजन, कार्बन डाई ऑक्साइड और अन्य खतरनाक गैसें जब कोहरे के संपर्क में आती हैं तो SMOG बनता है। इसका असर कई दिनों तक हो सकता है। तेज हवा चलने या बारिश के बाद ही स्मॉग का असर खत्म होता है। जहां गर्मियों में वातावरण में पहुंचने वाला स्मोक ऊपर की ओर उठ जाता है वहीं ठंड में ऐसा नहीं हो पाता और धुंए और धुंध का एक जहरीला मिश्रण तैयार होकर सांस के साथ शरीर के अंदर पहुंचने लगता है। SMOG कई मायनों में स्मोक और फॉग दोनों से ज्यादा खतरनाक है।
– खांसी
– ब्रॉन्काइटिस
– दिल की बीमारी
– त्वचा संबंधी रोग
– बाल झड़ना
– आंखों में जलन
– नाक, कान, गला, फेफड़े में इंफेक्शन
– ब्लड प्रेशर के रोगियों को ब्रेन स्ट्रोक की समस्या
– दमा के रोगियों को अटैक पड़ सकता है
– बीमार हों या हेल्दी, हो सके तो SMOG में बाहर न निकलें।
– अगर निकलना भी पड़े तो मास्क लगा कर निकलें।
– सुबह के वक्त काफी स्मॉग रहता है इसलिए बेहतर होगा सुबह 5-6 बजे की बजाय धूप निकलने के बाद करीब 8 बजे वॉक पर जाएं।
– सर्दियों में जहां एयर पलूशन ज्यादा रहता है वहीं लोग पानी भी कम पीते हैं। यह खतरनाक साबित हो सकता है। दिन में तकरीबन 4 लीटर तक पानी पिएं। प्यास लगने का इंतजार न करें कुछ वक्त के बाद 1-2 घूंट पानी पीते रहें।
– घर से बाहर निकलते वक्त भी पानी पिएं। इससे शरीर में ऑक्सीजन की सप्लाई सही बनी रहेगी और वातावरण में मौजूद जहरीली गैसे अगर ब्लड तक पहुंच भी जाएंगी तो कम नुकसान पहुंचागी।
– नाक के भीतर के बाल हवा में मौजूद बड़े डस्ट पार्टिकल्स को शरीर के भीतर जाने से रोक लेते हैं। हाईजीन के नाम पर बालों को पूरी तरह से ट्रिम न करें।
– बाहर से आने के बाद गुनगुने पानी से मुंह, आंखें और नाक साफ करें। हो सके तो भाप लें।
– अस्थमा और दिल के मरीज अपनी दवाएं वक्त पर और रेग्युलर लें। कहीं बाहर जाने पर दवा या इन्हेलर साथ ले जाएं और डोज मिस न होने दें। ऐसा होने पर अटैक पड़ने का खतरा रहता है।
– साइकल से चलने वाले लोग भी मास्क लगाएं। चूंकि वे हेल्मेट नहीं लगाते इसलिए उनके फेफड़ों तक बुरी हवा आसानी से पहुंच जाती है।
– सांस लेने में तकलीफ होने पर या सीढ़ियां चढ़ते या मेहनत करने पर हांफने लगना
– सीने में दर्द या घुटन महसूस होना
– 2 हफ्ते से ज्यादा दिनों तक खांसी आना
– 1 हफ्ते तक नाक से पानी या छींके आना
– गले में लगातार दर्द बने रहना
– 5 साल से कम के बच्चों की इम्यूनिटी काफी कमजोर होती है इसलिए उन्हें एयर पल्युशन से रिस्क ज्यादा होता है। इसलिए सर्दियों में उन्हें सुबह वॉक के लिए न ले जाएं।
– अगर बच्चे स्कूल जाते हैं तो अटेंडेंट से रिक्वेस्ट कर सकते हैं कि बच्चों को मैदान में खिलाने की बजाए इनडोर ही खिलाएं।
– धूल भरी और भारी ट्रैफिक वाली मार्केट्स में बच्चों को ले जाने से बचें।
– टू वीलर में बच्चों को लेकर न निकलें।
– बच्चों के कार में बाहर ले जाते वक्त शीशे बंद रखें और एसी चलाएं।
– बच्चों को भी थोड़ी-थोड़ी देर पर पानी पिलाते रहें जिससे शरीर हाइड्रेट रहे और इनडोर पलूशन से होने वाला नुकसान भी कम हो।
– बच्चे जब बाहर से खेल कर आएं तो उनका भी मुंह अच्छी तरह से साफ करें।
– उम्रदराज लोगों को बिगड़ती हवा काफी परेशान कर सकती है।
– पलूशन लेवल बढ़ने पर बाहर जाने से बचें।
– धूप निकलने के बाद ही घर से बाहर निकलें।
– अगर किसी बीमारी की दवाएं ले रहे हैं तो रेग्युलर लेते रहें। ऐसा न करने पर हालत खराब हो सकती है।
– सर्दी के मौसम में ज्यादा एक्सर्साइज (ब्रिस्क वॉक या जॉगिंग आदि) न करें। प्राणायाम और योग करना ही काफी होगा।
– सर्दियों में अगर बाहर निकलना ही पड़े तो अच्छी क्वॉलिटी का मास्क लगाकर निकलें।
– टू व्हीलर या ऑटो में सफर की बजाय टैक्सी या कंट्रोल माहौल वाले मेट्रो या एसी बसों में ही यात्रा करें।
पलूशन के बढ़ते लेवल से न केवल इंटरनल ऑर्गन पर असर पड़ता है, बल्कि शरीर के बाहरी हिस्से भी प्रभावित होते हैं।
-एजेंसी

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