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Friday 3 November 2017

अयोध्‍या में ही VHP व साधु-संत भूल गए कारसेवकों का बलिदान

फैज़ाबाद। VHP व साधु-संतों द्वारा 2  नवम्‍बर 1990 को बलिदान हुए कारसेवकों को सत्‍ता के नशे में जिसतरह भुला दिया गया वह बेहद दुर्भाग्‍यपूर्ण व शर्मनाक है।

अयोध्या में बाबरी मस्‍जिद ढहाए जाने के बाद सुरक्षा बलों की जवाबी कार्यवाही में शहीद हुए कारसेवकों की याद में हुतात्‍मा दिवस मनाया जाता है मगर इस बार यहां वीएचपी व साधुसंतों द्वारा इसे भुला दिया गया।

रामजन्म भूमि आंदोलन के दौरान 30 अक्टूवर व 2 नवम्बर 1990 को तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव के आदेश पर हुए गोली कांड में शहीद हुए कारसेवकों को प्रत्येक वर्ष परम्पगत ढंग से अयोध्या स्थित दिगंबर अखाड़े में श्रद्धांजली दी जाती थी, किन्तु इस वर्ष विश्व हिन्दू परिषद् और राम मंदिर से जुड़े साधु संतों ने कारसेवको के बलिदान को भूला दिया. किसी को राम मंदिर निर्माण में बलिदान हुए कारसेवकों को श्रद्धा सुमन अर्पित करने की सुध नहीं रही.

कारसेवकों के परिवारों की बदहाल स्‍थिति पर चिंता जताते हुए हिंदू वादी संगठनों ने इस घोर अवसरवादिता पर नाराजगी जताई है।

इतिहास राममंदिर व बाबरी मस्‍जिद का

श्रीराम मन्दिर को बाबर के आदेश से उसके सेनापति मीर बाकी ने 1528 ई. में गिराकर वहाँ एक मस्जिद बना दी। इसके बाद से हिन्दू समाज एक दिन भी चुप नहीं बैठा। वह लगातार इस स्थान को पाने के लिए संघर्ष करता रहा। 23 दिसम्बर, 1949 को हिन्दुओं ने वहाँ रामलला की मूर्ति स्थापित कर पूजन एवं अखण्ड कीर्तन शुरू कर दिया। ‘विश्व हिन्दू परिषद्’ द्वारा इस विषय को अपने हाथ में लेने से पूर्व तक 76 बार श्री राम जन्म भूमि मुक्त कराने के प्रयास किये हिन्दुओं ने किये. जिसमें देश के हर भाग से हजारो नर नारियों का बलिदान हुआ; पर पूर्ण सफलता उन्हें कभी नहीं मिल पायी।

क्‍या हुआ था 2 नवम्‍बर को

कारसेवकों का बलिदान – 2 नवम्बर, 1990 को तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव की सरकार में कारसेवकों पर पुलिस ने बर्बरतापूर्वक गोलियां चलार्इं थीं।
अयोध्या के वासुदेव गुप्त, राजेन्द्र धरिकार, रमेश पाण्डेय और कोलकाता के दोनों कोठारी बंधुओं सहित अनेक कारसेवक इसमें शहीद हो गये थे।
लोगों में तत्कालीन केन्द्र और राज्य सरकार के खिलाफ भारी आक्रोश देखा जा रहा था। यह आक्रोश उस बाबरी ढांचे के खिलाफ था, जो गुलामी का प्रतीक था।
रामभक्त कारसेवक उसे किसी भी हालत में देखना नहीं चाहते थे। ढांचा 6 दिसंबर, 1992 को रामभक्त कारसेवकों द्वारा ढहा दिया गया।

VHP व भाजपा ने कारसेवकों के इसी बलिदान को भुलाकर रामभक्‍तों के विश्‍वास को चोट पहुंचाई है।

  • अयोध्‍या से संदीप श्रीवास्‍तव

 

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