हर साल 25 दिसंबर को दुनियाभर में क्रिसमस का पर्व मनाया जाता है। बाकी चीजों जैसे केक और गिफ्ट के अलावा एक और चीज का इस त्योहार में विशेष महत्व होता है, जो है क्रिसमस ट्री। यह एक सदाबहार पेड़ है, जिसकी पत्तियां न तो किसी मौसम में झड़ती हैं और न ही इसमें कभी मुरझाती हैं। हमेशा हरे-भरे रहने वाले इस ट्री को मसीही परिवार प्रभु यीशू की तरह मानते हैं। जानते हैं इसके बारे में कुछ रोचक तथ्य…
यूरोपीय देशो बेल्जियम, नार्वे, स्वीडन तथा हॉलैंड में भूत भगाने के लिए क्रिसमस के पेड़ की टहनियों का उपयोग किया जाता था। यह मान्यता बन गई थी कि इसकी टहनियां रोपने से भूत-प्रेत नही आएंगे।
आज दुनियाभर में क्रिसमस ट्री लगाना अनिवार्य परम्परा बन गई है। यदि प्राकृतिक वृक्ष न हो तो नकली पेड़ खरीद कर घरों में लगाकर सजाए जाते हैं।
क्रिसमस ट्री को सजाने पर सजाने की परंपरा की शुरुआत जर्मनी से मानी जाती है। 19वीं सदी से यह परंपरा इंग्लैंड पहुंच गई, जहां से यह पूरी दुनिया में फैल गई। अमेरिका में इसे जर्मनी के अप्रवासियों ने शुरू किया था।
कुछ कहानियों से यह भी पता चला है कि क्रिसमस ट्री अदन के बाग में भी लगा था | जब हव्वा ने उस वृक्ष के फल को तोड़ा, जिस परमेश्वर ने खाने ने मना किया था तो इस वृक्ष की वृद्धि रुक गई और पत्तियां सिकुड़ कर नुकीली हो गईं। कहते हैं इस पेड़ की वृद्धि उस समय तक नहीं हुई, जब तक प्रभु यीशु का जन्म नहीं हुआ। उसके बाद यह वृक्ष बढ़ने लगा।
क्रिसमस ट्री को इंग्लैंड में लोग किसी के जन्मदिन, विवाह या किसी परिजन की मृत्यु हो जाने पर भी उसकी स्मृति में रोपते है। वे कामना करते हैं कि इससे पृथ्वी हमेशा हरी भरी रहे।
कुछ इतिहासकारों का मानना है कि जगमगाते चमकते क्रिसमस का संबध मार्टिन लूथर से था। उन्होंने ही सबसे पहले छोटे हर भरे पौधों से जलती हुई मोमबत्ती लगाई ताकि लोगों को स्वर्ग की रोशनी की ओर प्रेरित कर सकें।
क्रिसमस ट्री पर इलेक्ट्रिक लाइट लगाने का विचार 1882 में थॉमस एडिसन के सहायक एडवर्ड जॉनसन के दिमाग में आया था। साल 1890 में बहुत सारी क्रिसमस ट्री लाइट्स खरीदी गईं थीं।
-एजेंसी
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