‘मैं मर नहीं रहा बल्कि स्वतंत्र भारत में पुनर्जन्म लेने जा रहा हूं।’ यह कहते हुये रणबांकुरे राजेंद्र नाथ लाहिड़ी ने वन्दे मातरम् के जयघोष के साथ फिरंगी हुकूमत द्वारा काकोरी कांड के आरोप में दी गयी फांसी की सजा को हंसते-हंसते स्वीकारा था। उन्होंने गोंडा जेल में फांसी पर चढ़ने से पहले फंदे को चूमा और भारत माता के प्रति नमन किया था। 17 दिसम्बर 1927 को यहां जिला कारागार में लाहिड़ी को फांसी दी गई थी।
घबरा गई थी अंग्रेज सरकार
स्वतंत्रता की अमर ज्योति जलाकर सदैव के लिए अमर हो गये काकोरी कांड के शहीदों अशफाक उल्लाह खां, राम प्रसाद बिस्मिल, ठाकुर रोशन सिंह और राजेनद्र नाथ लाहिड़ी की आजादी की हुंकार से घबराई अंग्रेजी हुकूमत के दांत खट्टे हो गए थे। जिस पर तानाशाह हुकूमत के इशारे पर लखनऊ की स्पेशल कोर्ट ने 6 अप्रैल 1927 को जलियांवाला बाग दिवस पर रामप्रसाद बिस्मिल, अशफाकउल्ला खां और रोशन सिंह को एक साथ फांसी की सजा सुनाई थी। इसके बाद अवाम के गुस्से को देखते हुए लाहिड़ी को गोण्डा कारागार भेजकर 17 दिसम्बर 1927 को फांसी दी गयी थी।
शहीद की याद में बने स्थल : अमर शहीद लाहिड़ी के बलिदान को अक्षुण बनाये रखने के लिए जेल के समीप परेड सरकार के पास टेढ़ी नदी के तट पर अंत्येष्टि स्थल की पहचान के लिए मनमथनाथ गुप्त, लाल बिहारी टंडन, ईश्वरशरण और उस समय के अन्य स्थानीय समाजसेवी संस्थानों ने लाहिड़ी को नमन कर एक बोतल जमीन में गाड़ दी। वह स्थान आज भी विलुप्त है।
विरासत में मिली थी राष्ट्रभक्ति
शहीद लाहिड़ी को राष्ट्रभक्ति और साहस विरासत में मिला था। मात्र आठ वर्ष की आयु में ही काशी से बंगाल अपने मामा के यहां से आ गये थे और वहां सचिन्द्रनाथ सान्याल के सम्पर्क में आ गये। लाहिड़ी में फौलाद की दृढ़ता राष्ट्रभक्ति व दीवानगी उनकी पहचान थी। इसीलिए क्रांतिकारियों ने उन्हें अपनी टोली में शामिल कर हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिवोल्यूशन आर्मी पार्टी बनारस का प्रभारी बनाया था।
वह बलिदानी जत्थों की गुप्त बैठकों में बुलाये जाने लगे थे। उस समय क्रान्तिकारियों के चल रहे आंदोलन को गति देने के लिये धन की व्यवस्था करनी थी। इसके लिए उन्होंने शाहजहांपुर बैठक में अंग्रेजी सरकार का खजाना लूटने की योजना बनाई थी। इसे अंजाम देने के लिये 9 अगस्त 1925 को शाम को छह बजे लखनऊ के काकोरी से छूटी 8 डाउन ट्रेन में जा रहे अंग्रेजी सरकार के खजाने को लूटने के लिए राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्लाह खां और ठाकुर रोशन सिंह समेत 19 अन्य क्रांतिकारियों के साथ धावा बोल दिया था। जिसको लेकर फिरंगी हुकूमत ने सभी क्रान्तिकारियों पर काकोरी षड्यंत्र कांड दिखाकर सशस्त्र युद्ध छेड़ने और खजाना लूटने का आरोप लगाते हुये अभियोग लगाया था।
बंगाल में जन्मे थे लाहिड़ी
शहीद लाहिड़ी का जन्म 23 जून 1901 को बंगाल प्रांत के पावना जिले के मोहनापुर गांव में हुआ था। यह स्थान अब पूर्वी पाकिस्तान (बांगलादेश) में है। उस वक्त लाहिड़ी के पिता क्षितिज मोहन लाहिड़ी व बड़े भाई बंग भंग आंदोलन में सजा भोग रहे थे। उनकी माता का नाम बसंत कुमारी था।
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