वाराणसी। भगवान बुद्ध की पहली उपदेश स्थली सारनाथ में आज दलाई लामा ने विश्व को मानवता और अहिंसा का पाठ पढ़ाया। बौद्धों के सर्वोच्च धर्म गुरु परम पावन दलाई लामा ने कहा कि इस समय हम सब इक्कीसवीं सदी के प्रारंभ में हैं, इससे पूर्व सदियों तक मानव मन का विध्वंसक प्रयोग ही अधिक हुआ है। बदलती वैश्विक परिस्थियों में हम सब की जिम्मेदारी है कि मानव मन का रचनात्मक प्रयोग कर एक खुशहाल विश्व की रचना में अपना योगदान दें।
यह वैज्ञानिकों, दार्शनिकों, धर्म का आचरण करने वालों के साथ-साथ हम सभी की जिम्मेदारी है। प्राचीन समय में युद्ध एक व्यक्ति या देश के विध्वंस के लिए होते थे लेकिन आज अत्यंत विध्वंसकारी अस्त्र-शस्त्रों के कारण यह मानवता के विध्वंस का हेतु बन गए हैं। इनके प्रयोग से सभी का पारस्परिक नुकसान सुनिश्चित है। सारनाथ स्थित केंद्रीय उच्च तिब्बती शिक्षा संस्थान के गोल्डेन जुबली समारोह में शिरकत करने आए दलाई लामा ने शनिवार को दो दिनी संगोष्ठी ‘भारतीय दर्शन व आधुनिक विज्ञान में मन की अवधारणा’ का उद्घाटन किया। उन्होंने कहा प्रत्येक लड़ाई या युद्ध का कारण घृणा तथा क्रोध है अत: हमारी जिम्मेदारी है कि हम अपने भीतर तथा साथ ही आने वाली पीढ़ियों में करुणा और प्रेम की भावना के विकास का प्रयास करें। पिछली सदी के वैज्ञानिकों ने अपना पूरा ध्यान वाह्य जगत की खोज पर केंद्रित किया हुआ था लेकिन इधर कुछ वर्षों से वैज्ञानिक समुदाय में मनुष्य की आभ्यांतरिक प्रवृत्तियों पर शोध करने की रुचि जागृत हुई है जबकि धर्म और दर्शन हजारों वर्षों से मानव मन के रुपांतरण पर ही कार्य कर रहे हैं। मन की भावनाओं को समझना और तद्नुसार प्रतिक्रिया करना हमें तमाम समस्याओं से बचा सकता है। यह व्यक्ति समाज और देश सहित संपूर्ण पृथ्वी के लिए पूर्णत: सत्य है।
हम सभी को इस बात पर अवश्य ही विचार करना चाहिए कि हम इस पृथ्वी पर खुश रहने और लोगों को खुश रखने का माध्यम बनते हैं या कि दुखी रह कर दूसरों के दुख का हेतु, किसी की हत्या करके भला कोई कैसे सुखी हो सकता है। हम सभी मानवता का एक हिस्सा हैं, यदि विश्व के किसी भाग में कोई दुखी है तो निश्चित रुप से हमें प्रार्थना के साथ-साथ उसके दुख निवारण का उपाय भी करना चाहिए। केवल प्रार्थना मात्र से यह संभव नहीं है। अत: वैज्ञानिकों और धर्म-दर्शन के अध्येताओं व धर्म मार्ग का अनुसरण करने वाले सभी लोगों का एक साथ मानव मन पर विचार करना निश्चित रूप से मानवता के लिए कल्याणकारी सिद्ध होगा।
विषय परिवर्तन करते हुए संस्थान के कुलपति प्रो. गेशे नवांग समतेन ने कहा कि मन हमारे अस्तित्व का एक महत्वपूर्ण अवयव है। मन रुपांतरण बिना आभ्यांतरिक व वाह्य शांति की स्थापना संभव नहीं है। पहले दिन चले दो सत्रों का संचालन क्रमश: कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के प्रो. जोश केब्जन व भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद के अध्यक्ष प्रो. एस. आर. भट्ट ने किया। मुंबई की प्रो. शुभदा जोशी, जादवपुर विश्वविद्यालय की प्रो. रूपा बंदोपाध्याय, बीएचयू के प्रो. सच्चिदानंद मिश्र, रामकृष्ण मिशन विवेकानंद विवि के कुलपति स्वामी आत्मप्रियानन्द, प्रो. भागचंद्र जैन ने शोध पत्र प्रस्तुत किए।
-एजेंसी
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