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Friday, 29 December 2017

Hindi Poetry, Raah dekhte dekhte

राह देख़ते-देख़ते तेरी, बहुत देर हो गई,
कल तलक मैं तेरी थी, आज ग़ैर हो गई..
न पूछा तूने कुछ भी, न क़हां मैंने कुछ भी,
यूँ ही मोहब्बत की शाम-ओ-सहर हो गई..
अनकहे जज्बात, भीतर ही दफ़न हो गए,
जुदाई की वो घडियाँ पल में कहर हो गई..
मर-मर के ग़ुजरती हैं तेरे बिना ये ज़िन्दगी,
तेरे नाम जो साँसे थी, आज ज़हर हो गई..

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