नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने आज नेशनल कंपनी लॉ ट्राइब्यूनल NCLT के 8 दिसंबर के उस आदेश पर रोक लगा दी जिसमें सरकार को मुश्किलों में घिरी रीयल्टी फर्म यूनिटेक का काम-काज और प्रबंधन अपने हाथ में लेने को कहा गया था।
इससे पहले अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस ए एम खानविलकर और जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ की खंडपीठ के सामने सरकार की गलती स्वीकारते हुए कहा कि उसे NCLT में नहीं जाना चाहिए था क्योंकि सुप्रीम कोर्ट में मामले की सुनवाई चल रही थी।
सरकार ने मानी गलती
देश की सर्वोच्च अदालत ने केंद्र सरकार के NCLT में जाने पर मंगलवार को नाराजगी जताई थी। उच्चतम न्यायालय ने कहा कि NCLT के आदेश पर रोक लगने से ही न्याय का तकाजा पूरा होगा। सुप्रीम कोर्ट ने कल केंद्र सरकार से पूछा था कि यूनिटेक के डायरेक्टरों को निलंबित कर उनकी जगह सरकार की ओर से नियुक्त डायरेक्टरों को लाने के लिए NCLT में गुहार लगाने से उसकी अनुमति क्यों नहीं ली गई?
यूनिटेक के वकील ने दी यह दलील
यूनिटेक का पक्ष रखते हुए वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी और रंजीत कुमार ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने इस रियल एस्टेट कंपनी के चीफ संजय चंद्रा को संपत्तियां बेचने के लिए जेल से समझौते की अनुमति दी थी ताकि होम बायर्स को पैसे लौटाने के लिए 750 करोड़ रुपये जुटाए जा सकें लेकिन केंद्र सरकार NCLT चली गई। रोहतगी ने कहा कि NCLT ने कंपनी और इसके निदेशकों को नोटिस जारी किए बिना ही अंतरिम आदेश पारित कर दिया जो वास्तव में फाइनल ऑर्डर ही था और केंद्र सरकार को कंपनी को कब्जे में लेने की अनुमति दे दी। इससे पहले कोर्ट ने NCLT के आदेश को चुनौती देनेवाली याचिका पर सुनवाई पर सहमति व्यक्त की थी।
8 दिसंबर को आया था NCLT का आदेश
गौरतलब है कि 8 दिसंबर को NCLT ने यूनिटेक के सभी आठ डायरेक्टरों को निलंबित करते हुए केंद्र सरकार को 10 नए डायरेक्टर्स नियुक्त करने की अनुमति दी थी। NCLT यह आदेश तब आया जब केंद्र सरकार ने करीब 20,000 फ्लैट बायर्स के हितों की रक्षा के उद्देश्य से उसका दरवाजा खटखटाया।
-एजेंसी
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