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Monday 1 January 2018

असम में नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन का पहला ड्राफ्ट जारी, तनाव का माहौल

देश के उत्तर-पूर्वी राज्य असम में सरकार ने आधी रात को नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन का पहला ड्राफ्ट जारी किया है, जिससे राज्य में रहने वाले कानूनी और गैरकानूनी नागरिकों की पहचान होगी। पहली लिस्ट में 1.9 करोड़ लोगों को वैध नागरिक के रूप में मान्यता दी गई है, लेकिन बाकी 1.39 करोड़ का नाम इस लिस्ट में नहीं आया। लिस्ट के जारी होने के बाद प्रदेश में तनाव का माहौल है। सोशल मीडिया पर तरह-तरह की अफवाहें उड़ रही हैं। हालांकि सरकार ने कहा कि यह पहली लिस्ट है और दूसरी लिस्ट भी जल्द जारी की जाएगी। इस बीच किसी भी तरह के हालात के निपटने की तैयारी कर ली गई है।
केंद्र सरकार इस सिलसिले में असम सरकार से लगातार संपर्क में है। सूत्रों के अनुसार हालात से निपटने के लिए सुरक्षाबलों को कभी भी वहां जाने के लिए तैयार रहने को कहा गया है। सोशल मीडिया पर लगातार मॉनिटरिंग करने के निर्देश जारी किए गए हैं और अफवाह फैलाने वालों के खिलाफ कड़ी कार्यवाही करने को कहा गया है। अफवाह भरे कॉन्टेंट को ब्लॉक किया जा रहा है। होम मिनिस्ट्री के सूत्रों के अनुसार विभाग राज्य सरकार से लगातार संपर्क में है। वहां पहले ही लगभग 50 हजार मिलिटरी और पारा मिलिटरी फोर्स तैनात कर दी गयी है। पूरे राज्य में लगातार शांति की अपील की जा रही है। केंद्र और राज्य सरकार ने पहले ही आशंका जताई थी कि इस लिस्ट के जारी होने के बाद राज्य में ला ऐंड आर्डर की स्थित खराब हो सकती है।
एनआरसी की क्या जरूरत
असम में अवैध रूप से रहने वाले बांग्लादेशियों का मामला बहुत बड़ा मुद्दा रहा है। इस मुद्दे पर कई बड़े और हिंसक आंदोलन भी हुए है। असम के मूल नागरिकों ने तर्क दिया कि अवैध रूप से आकर यहां रह रहे ये लोग उनका हक मार रहे हैं। 80 के दशक में इसे लेकर एक बड़ा स्टूडेंट मूवमेंट हुआ था जिसके बाद असम गण परिषद और तत्कालीन राजीव गांधी सरकार के बीच समझौता हुआ कि 1971 तक जो भी बांग्लोदशी असम में घुसे उन्हें नागरिकता दी जाएगी और बाकी को निर्वासित किया जाएगा। इसके बाद असम गण परिषद ने वहां सरकार भी बनाई।हालांकि समझौता आगे नहीं बढ़ा।
मामला के दबने के बाद 2005 में एक बार फिर आंदोलन हुआ तब कांग्रेस की असम सरकार ने इस पर काम शुरू किया, लेकिन काम में सुस्ती रहने के बाद यह ममाला 2013 में सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। बीजेपी ने असम में लोकसभा और विधानसभा चुनाव के दौरान इसे बड़ा मुद्दा भी बनाया। जब असम में पहली बार पूर्ण बहुमत वाली बीजेपी सरकार आई, तो इस मांग ने और जोर पकड़ा। हालांकि असल कार्यवाही सुप्रीम कोर्ट के दबाव में हुई। इस बीच मोदी सरकार के विवादित नागरिकता संशोधान बिल से भी इस मामले में नया मोड़ आ गया, जो अवैध रूप से घुसने वालों के लिए बेस साल 1971 से बढ़ाकर 2014 कर रहा है।
-एजेंसी

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