जौनपुर। प्रकृति ईश्वर की अनुपम देन है जिसे संजोकर रखना समाज का प्राथमिक कर्तव्य बन जाता है। आज पालीथिन प्रकृति के सबसे बड़े दुश्मन के तौर पर सामने आया है जिससे पार पाने के लिए पूरे मानव समाज को बढ़-चढ़कर आगे आना होगा। पालीथीन से हो रहे प्रदूषण से बचाव के लिए अपने-अपने स्तर पर इसमें सबको सहभागी होना होगा। इसमें बच्चे-बुजुर्ग, स्त्री-पुरुष, शिक्षित-अशिक्षित से लेकर अमीर-गरीब आदि सभी को इससे निजात पाने के लिए सहृदय कार्य करना होगा। परिवार के बड़े सदस्य स्वयं पालीथिन का प्रयोग न करें, साथ ही दूसरे सदस्यों को भी इसका उपयोग न करने दें, तभी बात बनेगी।
आसपास के लोगों को भी इसके विषय में जानकारी दें तो यह सबसे बड़ा कदम होगा। पालीथिन का प्रसार आज घर से लेकर बाजार तक में सर्वसुलभ हो गया है। जूट व कपड़ों से बने झोले का उपयोग तो लोग लगभग भूल ही गए हैं। नगर में इसकी स्थिति तो और भी भयावह है। आज इसकी वजह से नगर के चौराहों से लेकर मोहल्लों की गलियों व नालियों तक में पालीथिन का ही साम्राज्य है। पालीथिन के बहुतायत उपयोग से पूरे मानव जाति पर खतरा मंडरा रहा फिर भी लोग हैं कि चेतने को तैयार ही नहीं हैं।
यह संदेश दिये जाने की आवश्यकता है कि सभी लोग बाजार जाएं तो अपने साथ जूट या कपड़ा निर्मित थैला लेकर जाने की आदत विकसित करें। इसमें यदि दुकानदार पालीथिन में सामान देता है तो उनको भी इसका प्रयोग करने से रोकें और इसका बहिष्कार करें। जब उपभोक्ता ही इसका उपभोग करना बंद कर देंगे तभी पालीथीन का सफाया हो सकेगा।


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