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Saturday 16 June 2018

दुधवा का हाथी बटालिक का निधन, कारगिल की जंग का था यादगार

लखीमपुर खीरी। दुधवा प्रशासन के लिए भविष्य का कैप्टन बटालिक का शुक्रवार को निधन हो गया। बटालिक सैलानियों की आंखों का तारा था, बटालिक ने ऐसे दिन रुखसती ली है, जब दुधवा के द्वार पर्यटकों के लिए बंद हो रहे हैं। ऐसा लग रहा था कि जैसे आखिरी दिन की ड्यूटी के बाद उसने आंख बंद की हो। बटालिक के इलाज के लिए लखनऊ चिड़ियाघर के निदेशक डा. उत्कर्ष शुक्ला, डॉ. केके शर्मा को बुला लिया गया था। 
 
इसके अलावा गुहावटी से हाथी विशेषज्ञों की एक टीम भी बुलाई गई थी पर इस बीच उसकी मौत हो गई। दुधवा के निदेशक रमेश कुमार पांडे ने बताया कि बटालिक पिछले कई दिनों से हिंसक किस्म का हो चुका था। वह मदमस्त हो गया और उसके कान के पीछे की एक ग्रंथि में स्राव शुरू हो गया। इस स्राव या रिसाव ने बटालिक के पूरे शारीरिक सिस्टम को बिगाड़ दिया। उन्होंने बताया कि बटालिक की इस हालत को देखते हुए उसे दुधवा बेस कैंप से हटाकर सलूकापुर पहुंचा दिया गया। 
 
जानकारी के मुताबिक, शुक्रवार की शाम के पांच बजे निदेशक रमेश कुमार पांडे दुधवा के गेट में ताला लगाने की औपचारिकताएं पूरी कर रहे थे। उनके साथ खड़े बाकी लोग भी खुश थे। इस बीच उनके पास एक ऐसी खबर आई कि सबके चेहरे की मुस्कान गायब हो गई। ये खबर थी दुधवा के हाथी बटालिक की मौत की। हाथी परिवार का बटालिक अभी युवा था। 20 साल के करीब उम्र थी। मां पुरूपाकली ने बटालिक को 1999 में जन्म दिया था। यह वह समय था, जब कारगिल की जंग चल रही थी। जिस रोज बटालिक का जन्म हुआ भारतीय सेना ने बटालिक चोटी पर फतेह पाई थी। तभी से उसका नाम बटालिक पड़ गया।
 
बटालिक की मां पुष्पा कली की मौत पिछले साल दिसम्बर में हुई थी। उस समय पुष्पाकली 86 साल की थी और उसका बेटा बटालिक 18 साल का। मां की मौत के बाद बटालिक को सामान्य होने में काफी वक्त लग गया। लेकिन अब वह फिट था। उसे अच्छी ट्रेनिंग मिल चुकी थी। वह दुर्गम जंगलों में दौड़ जाता था और मानव-वन्य जीव संघर्ष के वक्त में सबसे ज्यादा काम आता था। बटालिक की मौत पर रेंजर दुधवा पर्यटन राम प्यारे, आरओ दुधवा मनोज श्रीवास्तव, लिपिक रमेश कुमार, वन दरोगा सचिन, मनीष के अलावा सोनू, शबाना, अनीस, फईम, कैंटीन संचालक अनिल पप्पू ने भी गहरा दुख जताया है।

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