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Saturday, 4 August 2018

शिक्षक भर्ती में मथुरा से एक और बड़े फर्जीबाड़े का खुलासा

फर्जी स्वास्थ्य प्रमाण पत्र लगाकर बन गए शिक्षक

मथुरा। शिक्षकों की भर्ती में फर्जीबाड़े में एक और खेल सामने आया है। 2009 में प्रदेश भर में हुई भर्ती में विकलांग सर्टिफिकेट फर्जी लगाए गए। इस दौरान भी शिक्षक भर्ती माफियाओं का एक गैंग सक्रिय रहा। जिसने पहले सीएमओ कार्यालय से फर्जी सर्टिफिकेट जारी कराए और फिर उनका लखनऊ मेडिकल कॉलेज से फर्जी सत्यापन तक करा डाला। मेडिकल कॉलेज के एक पत्र ने फजीर्बाड़े को उजागर कर दिया है। मथुरा में 15 से अधिक दिव्यांग शिक्षकों में से अनेक नोटिस के बाद भी बोर्ड के समक्ष हाजिर नहीं हुए।


प्राथमिक विद्यालय अड़ूकी में तैनात शिक्षक उपेंद्र कुमार सिंह ने में सीएमओ कार्यालय से एक स्वास्थ्य प्रमाण पत्र बनवाया। 2009 में प्रदेश भर में हुई भर्ती में उपेंद्र कुमार सिंह ने नौकरी हासिल कर ली। सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका पर आदेश के अनुपाल में 2010 में सभी के प्रमाण पत्रों के सत्यापन के लिए लखनऊ के किंग जॉर्ज मेडिकल कॉलेज में एक मेडिकल बोर्ड बनाया गया। मथुरा से तीन शिक्षकों रीमा सिंह, राजकुमार और उपेंद्र कुमार के सर्टिफिकेट सत्यापन कराए जाने थे। रीमा सिंह और राजकुमार ने मेडिकल बोर्ड के सामने सत्यापन कराया लेकिन उनकी विकलांगता प्रमाणित नहीं हो सकी।

जबकि उपेंद्र बोर्ड के सामने ही पेश नहीं हुए सभी न्यायालय चले गए। न्यायालय में उपेंद्र सिंह को हिदायत दी गई कि वो अपने प्रमाण पत्र का सत्यापन करा लें। इस पर कई बार डायट प्राचार्य डा.मुकेश अग्रवाल ने बीएसए को रिवाइंडर भी भेजे। लेकिन अफसरों के कानों पर जूं तक नहीं रेंगी। हाल ही में लखनऊ मेडिकल कॉलेज से एक पत्र आया जिसमें उपेंद्र ङ्क्षसह के सत्यापन की रिपोर्ट थी। अगले ही दिन एक और पत्र आया जिसमें सत्यापित करने वो चिकित्सकों के हस्ताक्षर फर्जी होने की बात कही गई। इस पर डायट प्राचार्य ने अपनी रिपोर्ट एससीईआरटी को भेज दी। एससीईआरटी ने इस रिपोर्ट के आधार पर किंग जॉर्ज मेडिकल कॉलेज द्वारा सत्यापित सभी प्रमाण पत्रों की जांच कराने के आदेश दिए है। संभावना है कि इन फर्जी सत्यापन रिपोर्टो के आधार पर प्रदेश भर में फर्जी शिक्षक नौकर कर रहे है।

दिव्यांगता के बगैर जारी हुए प्रमाण पत्र
सीएमओ आफिस में गठित जिला मेडिकल बोर्ड ने बगैर दिव्यांगता के भी दिव्यांग प्रमाण पत्र जारी किए हैं। ऐसे प्रमाण पत्रों का उपयोग शिक्षकों के साथ अन्य विभागों
की भर्ती में किया गया है।

निदेशक बेसिक शिक्षा ने अब केजीएमयू को फर्जी सत्यापन प्रमाण पत्र के मामले की उच्च स्तरीय जांच की सिफारिश की है। इससे पहले भी जनपद में दो शिक्षकों की
भी दिव्यांगता फर्जी पाई गई है।
-डॉ. मुकेश अग्रवाल, डायट प्राचार्य

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