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Monday, 20 August 2018

Lala Lajpat RaI Biography and History in Hindi, Lala Lajpat Rai Essay in Hindi

लाला लाजपत राय का जीवन परिचय | Lala Lajpat RaI Biography in Hindi

Lala Lajpat Rai Biography in Hindi, Political Career of Lala Lajpat Rai, Lala Lajpat Rai History in Hindi

Lala Lajpat Rai Essay in Hindi, History of Lala Lajpat Rai in Hindi : –

लाला लाजपत राय (Lala Lajpat Rai) एक गंभीर चिंतक (Serious Thinker), विचारक (Thinker), लेखक (Author), और महान स्वतंत्रता सेनानी (Freedom Fighter) थे | उनके बोलने का ढंग बहुत प्रभावशाली होने के साथ साथ विद्वतापूर्ण होता था | लाला जी का जन्म 28 जनवरी 1865 पंजाब के फिरोजपुर जिले के एक ग्राम धुडिके ग्राम में हुआ था|

लाला जी लाल, बाल, पाल की जोड़ी में से एक थे और उनका पूरा नाम लाला लाजपत राधाकृष्ण राय (Lala Lajpat Radhakrishna Rai) था | इनके पिता जी का नाम राधाकृष्ण व माता जी का नाम गुलाब देवी था | इन्होने 1880 में कलकत्ता और पंजाब विश्वविद्यालय (Punjab University) प्रवेश परीक्षा उत्तीर्ण की, लाला जी ज्यादातर पंजाब केसरी के नाम से भी जाने जाते थे |

लाला जी अपने प्रारंभिक जीवन में पंजाब राष्ट्रीय बैंक और लक्ष्मी बिमा कम्पनी से जुड़े थे | लाला लाजपत राय हिंदुत्वता (Hinduism) से बहुत प्रेरित थे, और इसी को ध्यान में रखते हुए उन्होंने राजनीति में जाने की सोची, लाला जी भारत को एक पूर्ण हिन्दू राष्ट्र (Full Hindu Nation) बनाना चाहते थे |

हिंदुत्वता (Hinduism), पर वे भरोसा करते थे उसके माध्यम से वह भारत (India) में शांति बनाये रखना चाहते थे और मानवता को बढ़ाना चाहते थे |

जिससे की वह भारत में लोग आसानी से एक-दुसरे की मदद (Help) करते हुए एक-दुसरे पर भरोसा (Trust) कर सके. क्यूकी उस समय भारतीय हिंदु समाज में भेदभाव, उच्च-नीच जैसी कई कु-प्रथाए (Bad Practices) फैली हुई थी, लाला जी इन प्रथाओं से बहुत आहात थे और वह इस तरह की प्रणाली को ही बदल देना चाहते थे |

अंततः उनका अभ्यास सफल रहा और वह भारत में एक अहिंसक शांति अभियान बनाने में सफल रहे और भारत को स्वतंत्र राष्ट्र बनाने के लिए ये बहुत जरुरी था. लाला जी आर्य समाज के भक्त और आर्य राजपत्र (जब वे विद्यार्थी थे तब उन्होंने इसकी स्थापना (Establishment) की थी) के संपादक भी थे |

लाला लाजपत राय ने वर्ष 1889 में सरकारी कानून(लॉ) विद्यालय, लाहौर में वकालत की पढाई के लिए दाखिला लिया, कानून (लॉ) की पढाई पूरी करने के बाद उन्होंने लाहौर और हिस्सार में अपना अभ्यास शुरू रखा, कॉलेज के दौरान वह लाला हंसराज और पंडित गुरुदत्त जैसे देशभक्तों और भविष्य के स्वतंत्रता सेनानियों के संपर्क में आये। तीनों अच्छे दोस्त बन गए और राष्ट्रिय स्तर पर दयानंद वैदिक स्कूल की स्थापना भी की, जहा वे दयानंद सरस्वती जिन्होंने हिंदु सोसाइटी में आर्य समाज की पुनर्निर्मिति की थी, उनके अनुयायी भी बने |

Lala Lajpat RaI Short Biography in Hindi | लाला लाजपत राय का संछिप्त जीवन परिचय

पूरा नाम  लाला लाजपत राधाकृष्ण राय (Lala Lajpat Radhakrishna Rai)
जन्मतिथि 28 जनवरी 1865
जन्मस्थल धुडेकी (जि. फिरोजपुर, पंजाब)
पिता का नाम मुंसी राधा कृष्ण अग्रवाल
माता का नाम गुलाब देवी अग्रवाल
पत्नी का नाम राधा देवी अग्रवाल
पुत्र का नाम अमृत राय अग्रवाल और प्यारेलाल अग्रवाल
पुत्री का नाम पार्वती अग्रवाल
शिक्षा   1880 में कलकत्ता और पंजाब विश्वविद्यालय प्रवेश परीक्षा उत्तीर्ण, 1886 में कानून की उपाधि ली.
पेशा लेखक, राजनीतिज्ञ, स्वतन्त्रता सेनानी
राजनीतिक दल से सम्बन्ध भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (Indian National Congress)
मृत्यु 17 नवम्बर, 1928
मृत्यु स्थान लाहौर (पाकिस्तान)

लाला लाजपत राय का राजनैतिक जीवन (Political Career of Lala Lajpat Rai) 

1888 में, उन्होंने राजनीति में प्रवेश किया और एक स्वतंत्रता सेनानी (Freedom Fighter) के रूप में काम किया और स्वतंत्रता के लिए देश के संघर्ष में प्रभावशाली योगदान दिया।

लाला जी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के तीन प्रमुख हिंदू राष्ट्रवादी नेताओं में से एक थे। वह लाल-बाल-पाल की तिकड़ी का हिस्सा थे। बाल गंगाधर तिलक और बिपिन चन्द्र पाल इस तिकड़ी के दूसरे दो सदस्य थे।

इलाहाबाद के कांग्रेस सत्र में, वह अस्सी प्रतिनिधियों में से एक व्यक्ति थे, जिनके वीर भाषण से कांग्रेस मंडल में लहरों की झलक दिखाई पड़ी, और इस उछाल और सीमा से लोगो के बीच उनकी लोकप्रियता (Popularity) और बढ़ गई, देश को और बेहतर बनाने के कारणों से, उन्होंने छोटे नगर हिसार से स्थानांतरित करने का फैसला किया।

एक वकील के रूप में अभ्यास करने के लिए योग्यता (Eligibility) प्राप्त करने के बाद, वह हिसार नगर पालिका के सदस्य और सचिव चुने गए और वह 1892 में वह लाहौर चले गए।

जहां उन्होंने पंजाब उच्च न्यायालय (Punjab High Court) में कानूनी अभ्यास किया। वह लगातार कानूनी कर्तव्यों और सामाजिक सेवा के बीच एक कड़ी रहे ।

लाला जी ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (Indian National Congress) में नरम दल (Soft Party) (जिसका नेतृत्व पहले गोपाल कृष्ण गोखले ने किया) का विरोध करने के लिए गरम दल (Hot Party) का निर्माण किया।

उन्होंने बंगाल के विभाजन के खिलाफ हो रहे आंदोलन में हिस्सा लिया, साथ ही उन्होंने सुरेन्द्र नाथ बैनर्जी, बिपिन चंद्र पाल और अरविन्द घोष के साथ मिलकर स्वदेशी (Indigence) के जोरदार अभियान (Vigorous Campaign) के लिए बंगाल और देश के दूसरे हिस्से में लोगों को एकत्र किया।

लाला लाजपत राय को 3 मई 1907 को रावलपिंडी में शांति भंग करने के लिए गिरफ्तार कर लिया और बर्मा (म्यांमार) से उन्हें निर्वासित (देश से निकाला गया) किया गया. साथ ही मांडले जेल में छः महीने रखने के बाद, उनके खिलाफ पर्याप्त सबूत ना होने की वजह से वाइसराय, लार्ड मिन्टो ने 11 नवम्बर 1907 को छोड़ दिया गया और लाला जी को स्वदेश वापिस भेजने का निर्णय (Decision) लिया. स्वदेश वापिस आने के बाद लाला लाजपत राय सूरत की प्रेसीडेंसी पार्टी (Presidency Party) से चुनाव लड़ने लगे लेकिन वहा भी ब्रिटिशो ने उन्हें निष्कासित (Expelled) कर दिया |

उन्होंने अपनी क्रांतिकारी भाषणों और पुस्तकों के माध्यम से भारत के दयनीय राज्य (Miserable State) और भारतीयों के बारे में अपनी आवाज उठाई और इसी उद्देश्य से 1914 में वह ब्रिटेन गए।

इसी समय प्रथम विश्व युद्ध (First World War) छिड़ गया जिसके कारण (Reason) वह भारत नहीं लौट पाये और फिर भारत के लिए समर्थन प्राप्त करने के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका चले गए । अमेरिका में, उन्होंने भारतीय गृह नियम लीग (Indian Home Rule League) की स्थापना की और ‘यंग इंडिया (Young India)’ नामक एक पत्रिका की शुरुआत की इसका प्रचार कागज के माध्यम (Medium) से किया गया था कि उन्होंने यह आंदोलन (Protest) शुरू किया है |

पुस्तक के द्वारा उन्होंने भारत में ब्रिटिश शासन को लेकर गंभीर आरोप लगाये और इसलिए इसे ब्रिटेन और भारत में प्रकाशित होने से पहले ही प्रतिबंधित कर दिया गया। 1920 में विश्व युद्ध (World War) खत्म होने के बाद ही वह भारत लौट (Return) पाये।

वापस लौटने के पश्चात लाला लाजपत राय ने जलियाँवाला बाग नरसंहार (Jalianwala Bagh Massacre) के खिलाफ पंजाब में विरोध प्रदर्शन और असहयोग आंदोलन का नेतृत्व किया। इस दौरान वो कई बार गिरफ्तार भी हुए। वह चौरी चौरा कांड (Chauri Chaura Kand) के कारण असहयोग आंदोलन को बंद करने के गांधी जी के निर्णय से सहमत नहीं थे |

1921 में उन्होंने समाज की सेवा करने वाले लोगो को ढूंडना शुरू किया, और उन्ही की मदत से एक बिना किसी लाभ के उद्देश से एक संस्था की स्थापना की. जो लाहौर में ही थी, लेकिन विभाजन (Division) के बाद वो दिल्ली में आ गयी, और भारत के कई राज्यों में उस संस्था की शाखाये भी खोली गयी |

लाला लाजपत राय का हमेशा से यही मानना (Believe) था की,

मनुष्य अपने गुणों से आगे बढ़ता है न की दुसरो की कृपा से 

इसलिए हमें हमेशा अपने आप पर भरोसा (Trust) होना चाहए, अगर हम में कोई काम करने की काबिलियत है तो निच्छित ही वह काम हम सही तरीके से कर पाएंगे. कोई भी बड़ा काम (Big Work) करने से पहले उसे शुरू (Start) करना बहुत जरुरी होता है. जिस समय लाला लाजपत राय (Lala Lajpat Rai) स्वतंत्रता अभियान (Freedom campaign) में शामिल हुए उस समय उन्हें ये पता भी नहीं था के वे सफल हो भी पाएंगे या नही, लेकिन उन्होंने पूरी ताकत (Full strength) के साथ अपने काम को पूरा करने की कोशिश (Try) तो की. और उनके इन्ही कोशिशो के फलस्वरूप (Consequently) बाद में उनके स्वतंत्रता अभियान ने एक विशाल रूप ले लिया था. और वह अभियान अंत में भारत को एक स्वतंत्र राष्ट्र (Independent Nation) बनाकर ही रुका |

लाला लाजपत राय द्वारा किया गया साइमन कमीशन (Simon Commission) का विरोध

वर्ष 1928 में ब्रिटिश सरकार ने संवैधानिक सुधारों पर चर्चा के लिए साइमन कमीशन (Simon Commission) को भारत भेजने का फैसला किया। कमीशन में कोई भी भारतीय सदस्य न होने की वजह से सभी लोगों में निराशा उर क्रोध व्याप्त था। 1929 में जब साइमन कमीशन (Simon Commission) भारत आया तो पूरे भारत में इसका विरोध किया गया। लाला लाजपत राय ने खुद साइमन कमीशन के खिलाफ एक जुलूस (Procession) का नेतृत्व (Leadership) किया। हांलाकि जुलूस शांतिपूर्ण निकाला गया पर ब्रिटिश सरकार ने बेरहमी से जुलूस पर लाठी चार्ज करवाया। जिसके दौरान लालजी बुरी तरह से घायल (Injured) हो गये। उस समय इन्होंने कहा था:

“मेरे शरीर पर पड़ी एक-एक लाठी ब्रिटिश सरकार के ताबूत में एक-एक कील का काम करेगी।”

और वही हुआ भी; लाला जी (Lala ji) के बलिदान के 20 साल के भीतर ही ब्रिटिश साम्राज्य (British Empire) का सूर्य अस्त हो गया।

लाला लाजपत राय को सिर पर गंभीर चोटें आयीं और जिसके कारण 17 नवंबर 1928 में उनकी मृत्यु हो गई। 17 नवम्बर का मृत्यु दिन आज भी भारत में शहीद दिवस (Martyrs Day) के रूप में मनाया जाता है |

Note—» दोस्तों आपको ये लाला लाजपत राय का जीवन परिचय, Lala Lajpat Rai Biography in Hindi कैसी लगी हमें कमेंट करके जरूर बताना और इस पोस्ट को अपने दोस्तों में ज्यादा से ज्यादा शेयर करना ताकि वो भी अपनी जिंदगी में सही फैसला ले सके और हम आपको बता दे की हम ऎसी ही प्रेरणादायक कामयाब लोगो की कहानिया आप तक पहुंचाते रहेंगे|

A Request: अगर आप भी अपना पॉइंट ऑफ़ व्यू देना चाहते हैं तो कमेंट बॉक्स में लिख सकते हैं!! Thanks!!

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