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Thursday, 18 October 2018

राम राज्य में घर-घर रावण: मुस्कराना मत कि हम लखनऊ में हैं

अशोक सिंह विद्रोही /कर्मवीर त्रिपाठी

अब नाम नहीं काम का कायल है जमाना। अब नाम किसी शख्स का रावण न मिलेगा।।

यह पंक्तियां तहज़ीबों- रवायत और पहले आप की संस्कृति में रचे बसे अवध की शान व नवाबी शहर लखनऊ के लिए बुराई पर अच्छाई की जीत का विजय पर्व विजयदशमी के अवसर पर बदकिस्मती से सटीक बैठती है।

बदकिस्मती इसलिए क्योंकि घरों की गलियों से लेकर पार्कों और चौराहों तक तमाम रावण नाम के बजाय अपने कर्मो से आए दिन समाज को शर्मिंदा करते रहते हैं। रावण तो जले साथ ही घर की बहू बेटियों से लेकर कार्यालयों में काम करने वाली महिलाएँ, बचपन के सपनों को रौंदते बाल श्रमिकों और उदास आंखों से किसी अपनों की तलाश में वृद्धा आश्रम की चारपाई पर दिन गुजार रहे वृद्धों के लिए आखिर कब उनके इस हालात के जिम्मेदार रावण का दहन होगा।
‘सर्वे भवन्तु सुखिनः’ और तुलसी के मानस में जीवंत रामराज्य की कल्पना ऐसी तो ना थी कि, राजधानी में किसी निर्दोष को महज पूछताछ और कथित रूप से ठोकर के नाम पर बेआबरू हो चुकी सूबे की खाकी की गोली से ठोक दिया जाए, एक मासूम होनहार छात्र शहर के नामी गिरामी स्कूल की छत से गिरकर परमात्मा की गोद में चला जाए और सरकारी सिस्टम और विद्यालय प्रशासन खुदकुशी से लेकर तमाम जांच- पड़ताल तक में सालों से उलझे रहे। जरा सी बात पर दो सगे भाइयों को मौत के आगोश में सुलाने से लेकर राज्य के राज्यपाल महोदय मेरी सरकार- मेरी सरकार के नाम पर दीमक लगे कानून व्यवस्था को किसी स्कूली हेड मास्टर की तरह 100 में से 70 या 80 नंबर देते घूम रहे हो।
हर साल की तरह इस बार भी दशानन, लंकेश और रावण के दंभ को परास्त करने तथा मर्यादा के सर्वोत्तम प्रकाश पुंज कबीर तुलसी और नानक के श्रीराम का विजय पर्व है।
तुलसीदास ने मानस में रावण वध के पश्चात मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम को अपने अद्भभुत लेखनी से दर्शाया भी है ”सिर जटा मुकुट प्रसून बिच बिच अति मनोहर राजहीं।
जनु नीलगिरि पर तड़ित पटल समेत उडुगन भ्राजहीं॥
भुजदंड सर कोदंड फेरत रुधिर कन तन अति बने।
जनु रायमुनीं तमाल पर बैठीं बिपुल सुख आपने॥

देश में पटाखों और उम्मीदों से भरे रावण परिवार का पुतला दाहन के साथ जगह-जगह मेले और कार्यक्रमों का आयोजन होगा। लेकिन इन सब भीड़ नुमा इंसानी करतबों के बीच लखनऊ का बाशिंदा अगली सुबह फिर बेफिक्र, बेमेल सा तमाम कानूनों, नियमों की धज्जियां उड़ाता मर्यादा पुरुषोत्तम राम रामराज्य अपनी आदतों से चुनौती देगा।
सायद कलियुग के इसी आबो-हवा को भांप कर महाकवि तुलसी ने रामचरितमानस में खल बन्दना (बुराईयों से भरे)भी की है।
“बहुरि बंदि खल गन सतिभाएँ। जे बिनु काज दाहिनेहु बाएँ॥
पर हित हानि लाभ जिन्ह केरें। उजरें हरष बिषाद बसेरें॥

अब मैं सच्चे भाव से दुष्टों को प्रणाम करता हूँ, जो बिना ही प्रयोजन, अपना हित करनेवाले के भी प्रतिकूल आचरण करते हैं। दूसरों के हित की हानि ही जिनकी दृष्टि में लाभ है, जिनको दूसरों के उजड़ने में हर्ष और बसने में विषाद होता है।”

बिना हेलमेट सरकारी सड़कों पर महंगी मोटरसाइकिलों से फर्राटा भरते भारत के नौनिहाल, शहर के पार्कों की रेलिंग को चुराते नशा खोल नौजवान और तमाम जरूरी कामों की दरियाफ्त में लगी लाइनों और शहर में जाम जैसी स्थिति पैदा करते बुजुर्ग आखिर कब अपने भीतर कहीं गहरे तक पल रहे अहंकार, दंभ, लूट और ताकत के रावण को जिंदा रखेंगे…!
‘ मुस्कुराइए कि आप लखनऊ में हैं’ यह लाइने कभी चारबाग रेलवे स्टेशन पर लिखी होती थी। लेकिन अब लखनऊ में मुस्कुराने की कोई वजह नहीं बची है। क्योंकि तथाकथित रूप से हाईटेक और संभ्रांत हो चुके लखनऊ वासी अब अपने महंगे बगलों और फ्लैटों के सामने पेड़ लगाने की जहमत ही नहीं करते।
हां यह जरूर है कि उनकी महंगी गाड़ियां अब भी किसी ना किसी पेड़ का सहारा जरूर शहर के हर सड़क पर तलाशती नजर आती हैं।

उपर से कोढ में खाज की तरह मैट्रो निर्माण में बरती जा रही लापरवाही से शांमे अवध की आबो-हवा स्मोक और धूल के गुबार में तब्दील हो रही है । जनाब संभलिए हम शाने हिंद और त्याग के प्रतिमूर्ति लक्ष्मण की नगरी के बाशिंदे हैं, जहां गोमती के तट पर मनकामेश्वर मंदिर का घंटा और उस पार टीले वाली मस्जिद का अजान एक साथ सुनायी पड़ती है। बेगम हजरत महल ,बेगम अख्तर ,फैज, अटल बिहारी वाजपेई, के पी सक्सेना, आचार्य नरेंद्र देव ,लालजी टंडन,जैसे तमाम बुलंद हस्ताक्षरों का शहर लखनऊ ऐसा तो ना था, कि किसी को सड़क पर चल रहे वाहन से चोट लगने पर महज़ तमाशबीन बनकर लुप्त उठाया जाए।

शहर में बढ़ रहे प्रदूषण, शोर शराबे और इंसानों की तादाद में पहुंचने को आमादा मशीनी गाड़ियां जिस तरह लखनऊ की विरासत को नुकसान पहुंचा रही हैं उसके लिए सिस्टम के साथ कहीं ना कहीं हम भी बराबर के दोषी हैं।
कंगाल नगर निगम, कागजो पर बन रही स्मार्ट सिटी बेहाल जिला प्रशासन और बेअंदाज पुलिस की छत्रछाया में जी रहे हर लखनऊवासी को विजयदशमी पर ‘ आप दीपो भव’ के सूत्र को आत्मसात करते हुए तरुण मित्र परिवार की तरफ से शुभ- मंगल एवं कल्याणकारी विजयदशमी तथा मां आदिशक्ति के पुनः आगमन और महिषासुर संहार पर्व की शुभकामनाओं के साथ।

दुष्कर्म वृत्ति से
राम का भारत शर्मिंदा है।
आज एक नहीं
लाखों रावण ज़िंदा हैं।
हर चेहरे और सोच में
एक रावण पल रहा।
महज़ दिखावे के लिए
काग़ज़ का रावण जल रहा।
अब श्री राम को पुनः
धरा पर आना होगा।
लाखों रावणों का वध कर
रामराज्य लाना होगा।

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