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Thursday, 15 November 2018

बुलेट का जबाव बैलेट से

डाॅ. राजेन्द्र प्रसाद शर्मा

देश के लोकतंत्र ने एक बार फिर सिद्ध कर दिया है कि बुलेट पर बैलेट की चोट से करारा जबाव दिया जा सकता है। छत्तीसगढ़ की पहले चरण के 18 विधानसभा सीटों में नक्सल प्रभावित सीटों पर जिस तरह से बहां के मतदाताओं ने निर्भिक होकर मुखरता से मतदान में बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया है वह निश्चित रुप से लोकतंत्र की विजय है। खासबात यह कि यह सबसे अधिक नक्सल प्रभावित क्षेत्र है।सुकमा, दंतेवाड़ा और बस्तर की सीटोें पर मतदाताओं ने बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया और मतदान का प्रतिशत 70 फीसदी को पार कर गया। नक्सल प्रभावित क्षेत्र में 70 प्रतिशत मतदान इसलिए मायने रखता है कि मतदाताओं की बेरुखी के चलते देश के कई सामान्य सीटों पर मतदान का प्रतिशत लगभग 70 फीसदी रह पाता है। सही मायने में देखा जाए तो इसका सारा श्रेय इस क्षेत्र के आम मतदाताओं को जाता है जिन्होंने नक्सलियों की लाख चेतावनियों को सीरे से खारिज कर यह संदेश देने का प्रयास किया है कि क्षेत्र का विकास अंशाति फैलाने से नहीं लोकतांत्रिक व्यवस्था से चुनी हुई सरकार के माध्यम से ही हो सकता है। चुनाव आयोग,सुरक्षा बलों और सरकार को भी इस मायने में धन्यवाद देना होगा कि लाख बाधाओं और चुनौतियों के बावजूद सफलतापूर्वक मतदान संपन्न कराया गया।

दरअसल नक्सलियों ने इस बार अधिक भय का वातावरण बनाकर चुनावों को प्रभावित करने का प्रयास किया। सुरक्षा बलों पर लगातार हमलें किए गए वहीं लोगों को चुनाव में भाग लेने के गंभीर परिणाम भुगतने की चेतावनियां दी। नक्सली इस बार अधिक आक्रामक होकर चुनावों को प्रभावित करना चाहते थे। इन दिनों में सुरक्षा बलों पर अधिक हमलें हुए। मतदान करने वालों के हाथ जिस्म से अलग करने की चेतावनी दी गई। गंभीर परिणाम भुगतने को तैयार रहने को कहा गया। सुरक्षाबलों पर लगातार हमलें इनकी रणनीति का हिस्सा था पर ना सुरक्षा बलों ने हार मानी और ना ही मतदाताओं ने। दरअसल देखा जाए तो आदिवासियों के रहनुमा बनने की दुहाई देने वाले नक्सलियों का असली चेहरा सामने आ चुका है। चुनावों से पहले नक्सलियों ने जबरदस्त भय का वातावरण बनाने के प्रयास किए। मतदान के दिन भी सुरक्षा बलों पर बड़ा हमला कर भय का वातावरण बनाने की कोशिश की गई पर जनता ने अपने मताधिकार का प्रयोग कर बुलेट को बैलेट से करारा जबाव दिया है। देखा जाए तो क्षेत्रवासियों के विकास की सबसे बड़ी बाधा नक्सली ही हो गए हैं। सड़क, शिक्षा-स्वास्थ्य जैसी सुविधाएं क्षेत्र में नहीं पहुंचाने देना ही इनका मकसद रह गया। नक्सलियों किसी भी हालत में इस क्षेत्र में विकास नहीं देखना चाहते। इसका एक बड़ा कारण विकास आएगा तो इनकी दुकान उठ जाएगी रहा है। लोगों के यह बात समझ में आने लगी है।

दरअसल लोकतंत्र की यह खूबी भी है और इसे सबसे बड़ी सफलता माना जाना चाहिए कि लोगों के समझ में आने लगा है कि उनका हित हिंसा का साथ देने में या हिंसक प्रवृतियांे के आगे नतमस्तक होने में नहीं अपितु लोकतांत्रिक तरीके से अपना नेता चुनकर विधायिका में भेजकर विकास की गंगा का प्रवाह क्षेत्र में लाने में है। शिक्षा,स्वास्थ्य, सहज आवागमन के लिए सड़कों और आवागमन के साधनों की सहज उपलब्धता उन्हें मुख्य धारा से जोड़ सकती है। यह उनके समझ में आने लगा है यही कारण है कि भय और आतंक का माहौल होने के बावजूद लोगों में नक्सलियों का विरोध करने का साहस आया है। सुरक्षा बलों के साहस की भी सराहना करनी होगी कि नक्सलियों के दुर्दांत इरादों का बहादुरी से मुकाबला कर रहे हैं। लोगों में विश्वास जगाने में सफल रहे हैं। अब अगले चरण का मतदान 20 नवंबर को होने जा रहा है। आशा की जानी चाहिए कि छत्तीसगढ़ के मतदाता और अधिक मुखरता से 20 तारीख के मतदान में हिस्सा लेंगे। पहले चरण के खासतौर से नक्सल प्रभावित इलाकों के मतदान से सरकार और नक्सलियों के लिए भी साफ संदेश है।

सरकार के लिए यह संदेश है कि लोग विकास में विश्वास रखते हैं, यही कारण है कि लाख चेतावनियों के बावजूद मतदान में हिस्सा लेकर मताधिकार का उपयोग कर रहे हैं ऐसे में चुनावों के बाद किसी भी दल की सरकार बने उस सरकार की प्राथमिकता इस क्षेत्र के विकास, आधारभूत सुविधाओं के विस्तार सहित क्षेत्र को मुख्यधारा में लाने के कार्यों को प्राथमिकता देनी होगी वहीं नक्सलियों के लिए भी साफ संदेश है कि उन्हंे भी हिंसा का रास्ता छोड़कर लोकतंत्र की मजबूती और क्षेत्र के नागरिकों तक आधारभूत सुविधाओं के साथ मुख्य धारा में लाने के कार्य में भागीदार बनना चाहिए।

देखा जाए तो सुकमा हो या दंतेवाड़ा या बस्तर यहां के लोगों ने जिस तरह से घर से निकल कर मतदान केन्द्र आकर अपने मताधिकार के प्रयोग से साहस का परिचय दिया है वह काबिले तारीफ है। वहीं हिंसक ताकतों को साफ संदेश दिया गया है कि बुलेट का जबाव बैलेट से आसानी से दिया जा सकता है। बुलेट पर बैलेट से विजय पाई जा सकती है। यही हमारे लोकतंत्र की खूबी है और यही लोकतंत्र का सौंदर्य।
डाॅ. राजेन्द्र प्रसाद शर्मा

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