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Wednesday 26 December 2018

राम मंदिर के लिये तेज होती आवाजें

संतोष कुमार भार्गव

अयोध्या में राम मंदिर बनवाने को लेकर मोदी सरकार पर हिंदूवादी संगठनों, साधु-सन्तों और आम जनमानस का दबाव दिनों दिन बढ़ता जाा रहा है। राम मंदिर निर्माण को लेकर दो घटनाक्रम सामने आए हैं। एक, लखनऊ में युवा नागरिकों के एक जमावड़े ने गृहमंत्री राजनाथ सिंह और उप्र के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की उपस्थिति में नारेबाजी की-‘जो मंदिर बनवाएगा, वोट उसी को जाएगा।’ दूसरा, सर्वोच्च न्यायालय ने अयोध्या विवाद की सुनवाई के लिए 4 जनवरी की तारीख तय कर दी है। राम मंदिर पर युवाओं ने जो नारेबाजी की और रोष जताया, उसे देखकर गृहमंत्री और मुख्यमंत्री एकबारगी स्तब्ध हो गए। कुछ पलों के लिए चेहरों के भाव बदल गए और वे निर्वाक रहे। खिसियाने अंदाज में गृहमंत्री तसल्ली देते रहे-‘बनाएंगे, बनाएंगे, आप लोग बैठ जाइए।’ लेकिन नारे लगातार बुलंद होते रहे, तनी हुई मुट्ठियां हवा में लहराई जाती रहीं। अंततः गृहमंत्री को सख्त अंदाज में बोलना पड़ा-‘किसी में हिम्मत नहीं, जो राम मंदिर को बनाने से रोक सके, मंदिर जरूर बनेगा।’ अदालत के रूख के बाद ही मोदी सरकार आगे की दिशा तय करेगी।

अयोध्या विवाद पर सुप्रीम कोर्ट फिलहाल कोई भी फैसला देने की स्थिति में नहीं है, क्योंकि अभी तो न्यायिक पीठ का गठन किया जाना है। बेशक केंद्र सरकार ने संकेत दिए हैं कि वह भी रोजाना सुनवाई के लिए अपील करेगी, ताकि फैसला यथाशीघ्र सामने आ सके। केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने भी इसी आशय का बयान दिया है। यह भी तय है कि राम मंदिर पर साधु-संतों के बाद अब आम आदमी का सब्र और धैर्य भी बिखरने लगा है। मोदी सरकार और भाजपा के सामने विकल्प भी सीमित हैं। सरकार अध्यादेश ला नहीं सकती, क्योंकि लोकसभा का अंतिम सत्र अभी जारी है। उसके बाद सभी को नए चुनाव में जाना पड़ेगा। मांग यह भी की जा रही है कि सरकार इस मुद्दे पर कानून बनाए।

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी भरोसा दिलाया कि राम मंदिर भाजपा ही बनाएगी। इस प्रकरण से स्पष्ट है कि युवा पीढ़ी भी राम मंदिर चाहती है। अब रामभक्तों से लंबे समय तक आंख-मिचैली नहीं खेली जा सकती। उन्हें बताना पड़ेगा कि राम मंदिर कब तक बनेगा? मंदिर बन भी पाएगा अथवा नहीं? अब राम मंदिर के मुद्दे पर भाजपा को वोट मिलेंगे या नहीं, यह सवाल आम चुनाव तक छोड़ देना चाहिए, लेकिन इतना तय है कि राम मंदिर को लेकर लोगों की आस्था टूटी नहीं है। हालांकि समकालीन दौर का यह बुनियादी मुद्दा नहीं है। आज भी और हमेशा ही बेरोजगारी, गरीबी, भुखमरी, कश्मीर में अमन-चैन, भीड़ की हिंसा, किसानी आदि देश के जरूरी और बुनियादी मुद्दे रहेंगे। राम मंदिर सामाजिक और भावनात्मक मुद्दा है, जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। 2019 के आम चुनाव के मद्देनजर यह सबसे प्रमुख मुद्दों में आज भी शामिल है।

भाजपा सांसद डा. सुब्रह्मण्यम स्वामी ने प्रधानमंत्री मोदी को पत्र लिख कर सुझाव दिया था कि विवादित जमीन धर्मगुरुओं की संस्था को ट्रांसफर कर दी जाए। जमीन का मामला ही सर्वोच्च न्यायालय के सामने है। यदि संसद में कानून पारित किया जाता है, तो संविधान में दिए गए समानता के अधिकार और मौलिक अधिकारों के प्रावधानों के तहत उसे अदालत में चुनौती दी जा सकती है। संविधान में आस्था नाम की कोई गुंजाइश नहीं है। राज्यसभा सांसद और प्रख्यात कानूनविद केटीएस तुलसी का मानना है-‘इस मुद्दे पर अदालत के लिए भी सर्वसम्मत फैसला देना मुश्किल होगा, क्योंकि करोड़ों लोगों की आस्था राम मंदिर से जुड़ी है। फैसला आएगा, तो कोई उसे मानेगा, कोई नहीं मानेगा।’ लिहाजा मोदी सरकार और भाजपा का दबाव में होना स्वाभाविक है। उधर सरसंघचालक मोहन भागवत ने राम मंदिर की नई डेडलाइन मई, 2019 तय की है।

बीते दिनों गुजरात के राजकोट में एक सभा के दौरान इस नई डेडलाइन की घोषणा की गई। सवाल तो फिर वहीं आकर अटक जाता है कि राम मंदिर बनेगा कैसे? यदि किसी भी तरह अयोध्या में राम मंदिर नहीं बन पाता है या जनवरी में कुंभ के दौरान कोई घोषणा नहीं होती है, तो बहुत कुछ भाजपा के हाथ से खिसक सकता है। उस स्थिति में नाराज भीड़ का चुनावी समर्थन भाजपा को कैसे हासिल होगा, यह वाकई एक यक्ष प्रश्न है।

देश भर में तेजी से उठ रही राम मंदिर निर्माण की मांग के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पहली बार इस मुद्दे पर बयान राजस्थान के अलवर में चुनावी रैली के दौरान दिया था। उन्होंने कांग्रेस पर बड़ा आरोप लगाते हुए कहा कि राम मंदिर निर्माण की राह में कांग्रेस रोड़े लगा रही है। प्रधानमंत्री ने कहा था कि, ‘अयोध्या मामले पर कांग्रेस न्यायिक प्रक्रिया में दखल दे रही है। अयोध्या मामले पर कांग्रेस के वकील ने कोर्ट में सुनवाई टालने की अपील की थी। कांग्रेस बहुत बड़ा खेल खेल रही है।’ पीएम मोदी ने कहा, ‘सुप्रीम कोर्ट के बड़े-बड़े वकीलों को कांग्रेस राज्यसभा में भेजने लगी है। बीजेपी के पास अभी राज्यसभा में बहुमत नहीं है। लेकिन राज्यसभा में कांग्रेस गंदा खेल खेल रही है। सुप्रीम कोर्ट के वकील राम मंदिर के मामले में दबाव डालते हैं। वे कहते हैं कि 2019 तक इस केस पर फैसला मत दो। इस तरह दबाव बनाने की राजनीति चल रही है।’

अयोध्या में राममंदिर का मुद्दा ज्यादा तेज गरमाने की वजह से बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी (बीएमएसी) भी सक्रिय हो गई है। इसे लेकर 25 दिसंबर को लखनऊ में बैठक हुई है। इस दौरान निर्णय हुआ है किसी भी भड़कऊ बयानबाजी पर प्रतिक्रिया नहीं देने की बात कही गई है। साथ कमेटी ने साफ किया है कि अगर केंद्र सरकार अयोध्या में राम मंदिर पर अध्यादेश लाती है तो कमेटी इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देगी। आपको बता दें अयोध्या विवाद मामले की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में 4 जनवरी को होनी है. इसी को लेकर बाबरी एक्शन कमेटी की बैठक हुई थी। राष्ट्रीय स्वयं सेवक राम मंदिर निर्माण को लेकर अब और इंतजार के मूड में नहीं है। दशहरा पर मोहन भागवत स्पष्ट रूप से कह चुके हैं कि अगर अदालत के फैसले में देरी होती है तो सरकार को कानून बनाकर राम मंदिर निर्माण का रास्ता साफ करना चाहिए।

अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद (एबीएपी) के संतों ने पहले ही मोदी सरकार को अल्टीमेटम दे रखा है। 1984 के बाद से बीजेपी हर बार चुनाव के समय राममंदिर का मुद्दा उछालती है। उसे इसका फायदा भी मिलता रहा है। इस दौरान बीजेपी तीन बार केंद्र में सत्ता में आ चुकी है। दो बार अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार बनी है। एक बार नरेंद्र मोदी की। तीनों ही सरकारें गठबंधन की सरकार रही हैं। लेकिन तीनों में फर्क है। जहां अटल बिहारी वाजपेयी की दोनों सरकारों में बीजेपी का अपना बहुमत नहीं था, वहीं नरेंद्र मोदी सरकार में बीजेपी का अपना बहुमत है। अल्पमत सरकार ये कह सकती थी कि सहयोगी दलों के दबाव के चलते राममंदिर बनाना संभव नहीं हैं। लेकिन केंद्र सरकार में अपना खुद का बहुमत पाने के बाद बीजेपी अपने मतदाताओं से ये नहीं समझा सकती कि वह राममंदिर क्यों नहीं बना रही है। यानी अटल बिहारी वाजपेयी पर राममंदिर बनाने का वैसा दबाव कभी नहीं था, जैसा दबाव नरेंद्र मोदी पर है।

हिंदू संगठन मोदी सरकार पर लगातार दबाव बढ़ा रहे हैं। दूसरी ओर स्वयं नरेंद्र मोदी और अमित शाह की चुनावी रणनीति का ताना-बाना भी हिंदुत्व ही है। ऐसे में राम मंदिर निर्माण से दूरी बनाकर चलना उनके लिए भी आसान नहीं होगा। यदि बीजेपी 2019 लोकसभा चुनाव राम नाम पर लड़ने का मन बनाती है तो उसके पास दो विकल्प होंगे, पहला- अध्यादेश और दूसरा शीतकालीन सत्र में विधेयक लाने का। हालांकि, इनमें कोई भी कदम उसके लिए आसान नहीं है, क्योंकि ऐसा करने पर नीतीश कुमार जैसे एनडीए के सहयोगी अलग जाने का फैसला ले सकते हैं। अध्यादेश की तुलना में सदन के पटल पर विधेयक लाना बीजेपी के लिए ज्यादा मुफीद होगा। हालांकि, लोकसभा में तो बीजेपी इसे पास करा सकती है, लेकिन राज्यसभा में इसकी राह आसान नहीं। ऐसे में कानून न बन पाने का ठीकरा बीजेपी विपक्ष पर फोड़कर कांग्रेस के वोट बैंक में सेंध लगा सकती है। बीजेपी भले ही मंदिर निर्माण में सफल न हो, लेकिन वह कांग्रेस को हिंदू विरोधी साबित करने का पूरा प्रयास करेगी।

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