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Saturday 22 December 2018

जाति-धर्म की सियासत से जूझ रहे हनुमान, संकट मोचन पर जारी सियासी संकट

अशोक सिंह विद्रोही /कर्मवीर त्रिपाठी

लखनऊ: सियासतदानों से लेकर संत समाज तक हनुमान की जाति बताने की होड़ में लगे हैं। संकट मोचन हनुमान इन दिनों सियासी संकट से जूझ रहे हैं। हिंदुत्व और राम की विरासत पर सियासत करने वाली भाजपा के लिए बजरंगबली जातीय प्रयोग का हिस्सा बन गए हैं। हनुमान के जाति विवाद की पहली शुरुआत गोरक्ष पीठ के पीठाधीश्वर और सूबे के मुखिया योगी आदित्यनाथ ने की। राजस्थान के अलवर में अपनी चुनावी सभा के दौरान 27 नवंबर को उन्होंने हनुमानजी को पिछड़ा,वंचित,दर्लित बताया था।मुख्यमंत्री योगी द्वारा जातीय ब्रह्मास्त्र से बांधे गए हनुमानजी पर तभी से जाति की सियासत का खेल चल रहा है। हनुमानजी की जाति का सफर अब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चाइना तक पहुंच चुका है।

गौरतलब है कि इन दिनों राम दरबार के सभी देवी देवताओं पर सियासी बयानबाजी का संकट चल रहा है। कुछ माह पहले ही सूबे के डिप्टी सीएम दिनेश शर्मा ने माता सीता को टेस्ट ट्यूब बेबी होने का अनुमान प्रमाण पत्र दिया था । लक्ष्मण की नगरी लखनऊ प्रदूषण ,जाम और बदहाल कानून व्यवस्था से पहले से ही जूझ रही है। वही दशकों से टेंट और तिरपाल में विराजमान भगवान राम भक्तों को यश-कीर्ति, धन और वैभव का आशीर्वाद दे रहे हैं। सियासत और उसे सहेज कर रखी जाने वाली विरासत के कारण भगवान मंदिर से निकल कर देश की सुप्रीम अदालत में इन दिनों एक अदद तारीख की प्रतीक्षा में है।

राम के नाम की संजीवनी से सत्ता के शिखर पर पहुंची भाजपा प्रदेश व केंद्र में विराजमान है। फिर भी रामलला अभी तक प्रस्तावित राम जन्मभूमि के भव्य मंदिर में विराजमान नहीं हो पा रहे। सियासी जानकारों की मानें तो राम भाजपा के लिए हमेशा से सियासी मुद्दा रहे हैं। ऐन चुनावों से पहले भाजपा राम नाम का जाप शुरू करती है जो कि उसके चुनावी घोषणापत्र के किसी बिंदु में सिमटकर चुनाव बाद परमधाम में विलीन हो जाती है। यही वजह है कि पिछले दिनों विहिप ने राम मंदिर के मुद्दे को धार देने की कोशिश की । अयोध्या की धर्म संसद में उत्साही राम भक्तों को मंदिर निर्माण की तारीख घोषित होने की उम्मीद थी। जिसे सियासी खटराग में लपेटकर संघ व बीजेपी ने आगामी 2019 के आम चुनाव तक के लिए टाल दिया है।

राम दरबार के सदस्य बजरंगबली पर जातीय सियासत का ट्रेन्ड सीएम योगी ने तीन राज्यों के चुनाव के दौरान प्रारंभ किया। जानकारों की मानें तो योगी पढ़े- लिखे एवं धर्म ग्रंथों में पारंगत संत हैं। ऐसे में सवाल उठना लाजमी है कि योगी को आखिर ऐसी क्या जरूरत पड़ गयी कि उन्हें हनुमान को जाति के दायरे में लाना पड़ गया!

सियासी पंडितों की मानें तो उनका यह बयान सोची समझी रणनीति का हिस्सा थी। जिसे खूबसूरती के साथ विवादों में ला दिया गया। विकास और रोजगार के असली मुद्दों से जनता का ध्यान भटकाने में योगी का यह अस्त्र इन दिनों बखूबी चल रहा है। यही वजह है कि तभी से भाजपा के कई नेताओं ने लगातार हनुमानजी की जाति निर्धारित करने की होड़ सी लगा दी है । अनुशासन और मर्यादा का बखान करने वाली भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह या पीएम मोदी ने विवाद पर अभी तक अपनी राय नहीं दी। हिंदुत्व के नाम पर वोट मांगने वाली भाजपा ने अपने बयानवीरों पर न ही कार्रवायी की और न ही चेतावनी देने का काम ही किया है। इससे लगता है कि भाजपा सोच-समझकर राम मंदिर मुद्दे को ठंडा रखने की गरज से हनुमान चालीसा का उल्टा पाठ करने में मस्त है।

सूत्रों की मानें तो पार्टी आलाकमान को जानकारी मिली है कि राम मंदिर निर्माण में लगातार देरी के कारण लोगों में गुस्सा है। जिसका असर आगामी 2019 के आम चुनाव में साफ तौर पर दिखाई देगा। ऐसे में सीएम योगी द्वारा ऐसा विवादित बयान दिलवाया गया । हनुमान की जाति को यूपी के धर्मार्थ कार्य मंत्री चौधरी लक्ष्मी नारायण ने जाट , बीजेपी एमएलसी बुक्कल नवाब ने मुसलमान, केंद्रीय मंत्री सत्यपाल सिंह ने आर्य, राष्ट्रीय अनुसूचित जाति जनजाति आयोग के अध्यक्ष नंदकुमार साय ने आदिवासी ,योग गुरु बाबा रामदेव ने क्षत्रिय, शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती ने ब्राह्मण से लेकर भाजपा के राज्यसभा सांसद गोपाल नारायण सिंह द्वारा बानर और कीर्ति आजाद द्वारा चाइनीज तक में बांट दिया गया है।

ऐसे में “शंकर सुवन केसरी नंदन, तेज प्रताप महा जग बंदन”। पवन पुत्र पर जातीय सियासत की रेलगाड़ी कहां जाकर रुकेगी यह सोचने वाली बात है । “विद्यावान गुनी अति चातुर राम काज करवे को आतुर” बजरंगबली दलित से लेकर बजरंगी भाईजान तक का सियासी सफर काट रहे हैं।

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