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Friday 8 February 2019

व्यंग: नेता जी की गवाही, जान पर बन आयी!

कुमार वैभव

स्थानीय बार के एक कोने में मैं अकेला बैठा अपने मनपसन्द ब्रांड की चुस्कियां लेता सिगरेट के छल्ले उड़ा रहा था। मुझसे कुछ टेबल दूर एक सत्ता पक्ष के नेता अपने चमचों के साथ जाम छलकाते और आमजन की परेशानियों पर चुटकियां लेते ठहाके लगा रहे थे।
कुछ देर बाद विपक्ष के एक नेता, (वो भी अपने चमचों के साथ थे), बार के मुख्य द्वार पर प्रकट हुए।
उन्होंने इधर उधर नज़र दौड़ाई। ज्योहीं उन्होंने अपने प्रतिद्वंदी को देखा तो उनकी भवें तनी।
अपने साथियों को वापिस चलने का इशारा कर जोर से बोले कि “यहाँ तो यह भ्रष्टाचारी, बेईमान, गुंडा बैठा हुआ है, चलो कहीं और चलते है।”
पूरे हॉल में खुसर पुसर होने लगी। जाम लगा रहे नेताजी की चेहरा गुस्से से तमतमा उठा। लगता था उन का मूड खराब हो गया था। वो एक हैवी पेग एक ही साँस में खींच कर लाव लश्कर के साथ चलते बने। मैं एक नई सिगरेट सुलगा कर फिर से अपने जाम से चुस्कियां लेने लगा।
अगले दिन अलसुबह नेताजी अकेले मेरे घर आये। मैंने उनकी चाय नास्ते से खातिरदारी की।
कुछ इधर उधर की बातों के बाद वे बोले, ” कुमार साहब, मैं उस नेता को उसकी औकात दिखाना चाहता हूँ । साले की इलेक्शन में इस बार तो जमानत मुश्किल से बची। अगली बार जमानत जब्त होगी। आप बताइए, उसकी इतनी हिम्मत, मुझे!… मेरे जैसे जनसेवक को भ्रष्ट बेईमान और गुंडा बोलता है ! 100 करोड़ का मानहानि का दावा ठोकूंगा।”
मैंने कहा, “जरूर नेताजी, बख्शना मत उसे। ये क्या बात हुई कि आप जैसे जनता के चुने प्रतिनिधि को ऐसे अपशब्द बोले और वो भी सार्वजनिक स्थल पर !”
“पर कुमार साहब,” नेताजी ने थोड़ा झुक कर अपना चेहरा आगे करते हुए कहा, “कोर्ट में गवाह की जरूरत पड़ेगी। अब आप तो वहां पर थे ही। आप के सामने उसने ऐसा कहा है, आप यह गवाही देगें न। इस में कोई झूट भी नही है।”
“जरूर नेताजी, मैं सुप्रीम कोर्ट तक यह गवाही देने को तैयार हूं।”
“ठीक है फिर”, नेताजी मेरे हाथ को अपने हाथ में ले कर हैण्ड पंप की तरह ऊपर नीचे करते उठ कर बोले, “मैं तो आप जानते ही हैं आपका बहुत आदर करता हूँ। आप से मुझे यही आशा थी कि आप सच कहेंगे, इसी लिए आपके पास आया।”
मैंने भी उन्हें आश्वस्त करते हुए कहा , “आप निश्चिन्त रहिये नेताजी।”
कुछ दिनों बाद अदालत में इस केस पर बहस शुरू हुई। मैं मुख्य गवाह के रूप में पेश हुआ। गीता पर हाथ रख कर मुझे सच बोलने का वचन लेना पड़ा। नेताजी के वकील ने नाम आदि पूछने के बाद कहा, “आप उस दिन का वाकया विस्तार से अदालत को बताएं।”
मैंने कहा कि हुजूर! उस दिन मैं वहां उस बार में मौजूद था। नेताजी अपने आदमियों के साथ शराब का आनंद बड़े अच्छे मूड में उठा रहे थे। तभी मुख्य द्वार पर ये दूसरे वाले नेताजी आये। इन्होंने इधर उधर हॉल में नज़र दौड़ाई। ज्यों ही इनकी नज़र हमारे वाले नेताजी पर पड़ी ये जोर से अपने साथियों से बोले कि यहाँ तो यह भ्रष्टाचारी, बेईमान, गुंडा बैठा है, कहीं और चलते हैं। उनकी ये बात मैंने ही नहीं हुजूर बार में बैठे हर व्यक्ति ने सुनी। ये सुन कर हमारे नेताजी का तो सारा मज़ा और नशा ही किरकिरा हो गया, जो इनके तमतमाये चेहरे पर साफ नज़र आ रहा था। भला यह क्या बात हुई! कोई जनसेवक को ऐसा कहता है क्या! सच कहूं तो मुझे भी बहुत बुरा लगा हुजूर। फिर वो दूसरे वाले नेताजी द्वार से ही लौट कर वापिस चले गए।
मेरे जवाब से वकील साहब के चेहरे पर विजयी मुस्कान दौड़ी और जज साहब की तरफ सर को तनिक झुका कर बोले, “दैट्स आल मी लार्ड।”
अब बचाव पक्ष के वकील साहब उठे। मुझसे मुखातिब हो कर बोले, ‘ आपने अदालत में सच बोलने की कसम खाई है न।’
मैंने कहा, ‘ जी ! और मैं बिना कसम खाये भी माननीय जज साहब के सामने तो सच ही बोलता। मैंने अभी जो कहा सच ही कहा है।’
‘ नहीं कहा !’ वकील साहब मुझ पर चीख कर बोले।
पहले वाले वकील साहब ने मेरे बचाव में उठ कर दखल दिया ‘ मी लॉड ! मेरे मोज़िज़ दोस्त गवाह को धमका रहें हैं।’
जज साहब ने कुछ हाथ से इशारा किया। जो मुझे समझ नहीं आया।
“आप मुझ पर गलत इल्जाम लगा रहे हैं”, मैं तो तब उस वकील के धमकाने और अपनी बेइज्जती पर तैश में था।
‘ अच्छा!’ वकील साहब शायद जज साहब के इशारे की वजह से कुछ नर्म हो कर बोले, “एक बात बताइये मिस्टर कुमार! क्या मेरे मुवक्किल ने तुम्हारे नेताजी का नाम ले कर इन्हे वो शब्द कहे?”
मैंने सोचते हुए कहा, “नाम तो नहीं लिया था।” मुझे पता था कि वकील लोग गवाह को वाक् जाल में फसाते है।
“तो क्या इनकी तरफ ऊँगली से इशारा कर के कहे?”
“नहीं, इशारा भी नही किया,” मैं समझ गया कि ये वकील अपने पतरें चल रहा है। पर मैं भी चतुर खिलाडी था। अपने बयान पर डटा बोला,”लेकिन मैं पूरे यकीन से कहता हूँ कि यह शब्द इन नेताजी के लिए ही बोले गए।” मेरी वाणी में पूरा आत्मविश्वास झलक रहा था। जिसे सुन कर मेरे नेताजी और उनके वकील बड़े खुश नज़र आये।
तब जज साहब ने वार्तालाप अपने हाथ में लेते मुझसे पुछा, “जब दूसरे व्यक्ति ने तुम्हारे नेताजी का नाम नहीं लिया, न ही इनकी तरफ इशारा कर के कहा, तब तुम कैसे इतने यकीन से कह रहे हो कि वो शब्द इनको ही कहे गए।”
मैंने कहा, ” हुजूर! मैं उस बार का पिछले 20 साल से नियमित ग्राहक हूँ। वहाँ बैठने वाले प्रत्येक व्यक्ति को व्यक्तिगत तौर पर जानता हूँ।
उस दिन भी सभी ग्राहक मेरे जाने पहचाने थे। वहाँ इन नेताजी के अलावा दूसरा कोई, भ्रष्टाचारी, बेईमान और गुंडा बैठा ही नहीं था। स्वाभाविक है कि यह शब्द इन के लिए ही प्रयोग हुए।”
अंत में ….
भाइयों, इस घोर कलयुग में किसी की भलाई का जमाना नहीं है। वो मेरे नेताजी जिनके हक़ में मैंने इतनी ठोक के अदालत में गवाही दी, वही अब मेरी जान के दुश्मन बने हुए हैं।
मैंने भी अब उस बार में जाना छोड़ दिया है। शराब और सिगरेट से भी तौबा कर ली है ताकि फिर किसी की गवाही देने न जाना पड़ जाये।

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