शीतला अष्टमी के व्रत और पूजन में शीतला माता की आराधना होती है जो देवी का एक स्वरूप हैं। ये होली के एक सप्ताह में बाद मनाई जाती है। वैसे तो शीतला देवी की पूजा चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को ही होती है, लेकिन कुछ स्थानों पर ये होली के बाद पड़ने वाले पहले सोमवार अथवा गुरुवार के दिन ही की जाती है। शीतला की पूजा का विधान भी खास होता है। शीतलाष्टमी के एक दिन पूर्व भोग के लिए बासी खाने खाना बनाते हैं जिसे बसौड़ा कहा जाता है। अष्टमी के दिन बासी भोजन ही देवी को समर्पित किया जाता है और फिर प्रसाद के रूप में खाया जाता है। इस लिए पूरे उत्तर भारत में शीतलाष्टमी का त्यौहार, बसौड़ा के नाम से जाना जाता है। ऐसी मान्यता भी है कि इस दिन के बाद से बासी खाना खाना बंद कर दिया जाता है। ये ऋतु का अंतिम दिन होता है जब बासी खाना खा सकते हैं।
विभिन्न स्थानों पर होती है शीतलाष्टमी
होली के बाद आने वाली अष्टमी को शीतला अष्टमी का पर्व मनाया जाता है। ये उत्तरी भारत में माता शीतला को समर्पित है। शीतला माता का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए शीतला सप्तमी और शीतला अष्टमी की पूजा की जाती है। उत्तर भारत में जहां उन्हें माता शीतला के नाम से जाना जाता है वहीं दक्षिण भारत में इनको देवी पोलरम्मा और देवी मारियम्मन के नाम से पूजा जाता है। कर्नाटक और आंध्र प्रदेश के क्षेत्रों में भी शीतला अष्टमी का पूजन पोलाला अमावस्या नाम से किया जाता है। परम्परा के अनुसार इस पूजा के लिए इस अष्टमी पर घर में चूल्हा नहीं जलाया जाता और पूरे परिवार को एक दिन पहले बने हुए बासी भोजन का सेवन करना होता है।
क्या है मुहूर्त
पंडित इस वर्ष शीतला अष्टमी 28 मार्च 2019, गुरुवार के दिन मनाई जाएगी। 28 तारीख को अष्टमी प्रातः काल से ही लग जायेगी और पूजन का शुभ मुहूर्त सूर्योदय से लेकर दोपहर 1.29 तक रहेगा। इस दिन बसौड़ा यानि एक दिन पहले बना भोजन खाया जायेगा। इस भोजन को पूजन के बाद भोग लगा कर मुहूर्त बीतने से पहले ग्रहण करना सर्वोत्तम माना जायेगा। ऐसी मान्यता है कि इस प्रसाद को खाने से ज्वर, पीत ज्वर, फोड़े और नेत्र जनित समस्त रोग दूर होते हैं।
ऐसा है माता का स्वरूप
पौराणिक मान्यतानुसार शीतला माता चतुर्भुजी हैं जिनके एक हाथ में झाड़ू, दूसरे में कलश है, जबकि तीसरा हाथ वर मुद्रा में और चौथा अभय मुद्रा में रहता है। वे पीला और हरा वस्त्र धारण करती हैं। माता की सवारी गधा है। उनके हाथ की झाड़ू सफाई का और कलश जल का प्रतीक है। ऐसी मान्यता है कि झाड़ू से अलक्ष्मी व दरिद्रता दूर होती है जबकि कलश में धन कुबेर का वास होता है। माता शीतला अग्नि तत्व की विरोधी हैं, अतः इस दिन भोजन घर में चूल्हा नहीं जलतता और भोजन एक दिन पहले बन जाता है। अष्टमी पर शीतला पूजन बाद सभी बासी भोजन खाते हैं। ये एकमात्र ऐसा व्रत है जिसमें बासी भोजन चढ़ाया व खाया जाता है।
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