नई दिल्ली ,31 मार्च, 2019 सर्व हरियाणा ग्रामीण बैंक में गुडग़ांव ग्रामीण बैंक और हरियाणा ग्रामीण बैंक के विलय के नाम पर पंजाब नैशनल बैंक के अफसरों ने अरबों रुपये की हेराफेरी की है। यह कहना था नैशनल ऑर्गनाइजेशन ऑफ बैंक वर्कर्स (एनओबीडब्ल्यू) के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष श्री अश्विनी राणा और गुडग़ांव ग्रामीण बैंक वर्कर्स ऑर्गनाइजेशन और सर्व हरियाणा ग्रामीण बैंक ऑफिसर्स ऑर्गनाइजेशन के चीफ कॉर्डिनेटर मुकेश कुमार जोशी का। राणा और जोशी ने प्रेस क्लब में आयोजित एक संवाददाता सम्मेलन में आरोप लगाया कि गुडग़ांव ग्रामीण बैंक के अरबों रुपये के रिजर्व फंड को पंजाब नैशनल बैंक के भ्रष्ट अधिकारियों ने एक षड्यंत्र के तहत फर्जी दस्तावेज प्रस्तुत कर हड़प लिया और निरंकुश व अवैध तरीके से उस रुपये की बंदरबांट मचा दी। राणा व जोशी ने इन सारे मामलों की जांच सीबीआई से कराने की मांग रखी साथ ही जोशी ने कहा कि बैंक द्वारा किए गए 1 करोड़ रुपये से अधिक के तमाम बैंक लोन्स की जांच भी सीबीआई करे।
फर्जी दस्तावेजों के साथ राजनैतिक दखल से मची लूट उन्होंने बताया कि गुडग़ांव ग्रामीण बैंक देश के टॉप 10 ग्रामीण बैंकों में शामिल होता था और मार्च 2013 में कुल व्यवसाय 7449.21 करोड़ रुपये था जबकि हरियाणा ग्रामीण बैंक का 6579.28 करोड़ रुपये का व्यवसाय था। रिजर्व फंड गुडग़ांव ग्रामीण बैंक का 663.18 करोड़ रुपये और हरियाणा ग्रामीण बैंक का 365.64 करोड़ रुपये था। गुडग़ांव ग्रामीण बैंक का संचालन सिंडिकेट बैंक करता था जबकि हरियाणा ग्रामीण बैंक का संचालन पंजाब नैशनल बैंक के पास था। 30 जुलाई 2013 को वित्त मंत्रालय भारत सरकार ने एक नोट जारी किया जिसके अनुसार हरियाणा ग्रामीण बैंक को गुडग़ांव ग्रामीण बैंक में विलय कर इसका संचालन सिंडिकेट बैंक को दिया जाना था। इस पर तत्कालीन वित्त मंत्री पी. चिदंबरम की ओर से कोई राजनीतिक दबाव था। लेकिन दोबारा 5 अगस्त 2013 को इस पर जॉइंट सेक्रेटरी ने दोबारा एक नोट लगाया कि पंजाब नैशनल बैंक का प्रबंधन खराब है और मध्य बिहार ग्रामीण बैंक जो कि बिहार का ग्रामीण बैंक है को भी पीएनबी संतोष जनक तरीके से नहीं चला पा रहा है। दूसरी ओर सिंडिकेट बैंक के जितने भी ग्रामीण बैक हैं वे अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं। इस लिए विलय के बाद इस बैंक का प्रबंधन सिंडिकेट बैंक को दे दिया जाए। 30 सितंबर 2013 को भी मंत्रालय के लिखे नोट के माध्यम से सिंडिकेट बैंक को ही यह प्रबंधन सौंपे जाने के रिपोर्ट तैयार हुई। इसके बाद हरियाणा के मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा 22 अगस्त 2013 को एक पत्र लिखकर विलय के बाद बैंक का प्रबंधन पंजाब नैशनल बैंक को दिए जाने की सिफरिश करते हैं। इस पत्र के बाद यह प्रबंधन पीएनबी को दिया गया। इस साजिश में वित्त मंत्रालय के अफसर ए.के.डोगरा, हरियाणा ग्रामीण बैंक के तत्कालीन चेयरमैन प्रवीण जैन, पीएनबी के जनरल मैनेजर राकेश गुप्ता इन्होंने अनऑडिटेट फिगर डाल कर गलत तरीके से विलय कर दिया। जबकि विलय और मर्जर के लिए कंपीटिशन कमिशन ऑफ इंडिया की गाइड लाइन के मुताबिक बिना ऑडिट कोई भी मर्जर नहीं हो सकता। कैग ने भी इस मामले में वित्त मंत्रालय से इस मामले में पांच सवाल पूछे थे, जिसे मंत्रालय ने नबार्ड को भेज दिया। बैंक के मर्जर के बाद पंजाब नैशनल बैंक का कुप्रबंधन नए बने सर्व हरियाणा ग्रामीण बैंक को भी लील गया। बैंक में नियमों को बदल कर प्रामोशन और अपॉइंटमेंट किए गए। जबकि भारत सरकार द्वारा बनाए गए क्षेत्रिय ग्रामीण बैंक के नियमों को बदलने की कोई भी पावर बैंक के तत्कालीन चेयरमैन प्रवीण कुमार जैन और बोर्ड को नहीं थी। यह मामला ठीक वैसा ही है जैसे एक मामले में हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला व उनके पुत्र डॉ. अजय सिंह चौटाला और कई अन्य अधिकारी जेल में सजा भुगत रहे हैं।
हरियाणा शहरी विकास प्राधिकरण ने प्लॉट भरने के लिए फॉर्म निकाले। इसमें हरियाणा ग्रामीण बैंक ने सिर्फ ब्याज लेकर उपभोक्ताओं के फॉर्म भरने का काम किया। बैंक ने इसमें मनी लॉंड्रिंग की तरह काम किया। भू माफिया ने इस योजना का जमकर लाभ उठाया और एक-एक प्रॉपर्टी डीलर ने करोड़ों रुपये जमाकर प्लॉटों को आम आदमी के पास जाने से रोक दिया। जबकि बैंक में कैश एंट्री 49 हजार रुपये से ज्यादा नहीं हो सकती थी। रोहतक में मुख्यालय के लिए बैंक ने 25 करोड़ रुपये की लागत से वर्ष 2016 में एक भवन का निर्माण किया। कुल 3629 वर्ग स्क्वेयर फुट कवर्ड एरिया का निर्माण किया गया। मतलब 7500 रुपये प्रति वर्ग फुट से ज्यादा का भुगतान किया गया और इस भूमि का पूजन भी दो बार तत्कालीन मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा के द्वारा कराया गया। लगभग 50 लाख रुपये का खर्चा भूमिपूजन के नाम पर किया गया। एक साल के अंदर ही इस नए बने भवन की छत गिरने लगी। इसका चित्र साथ में संलग्र है। करोड़ों रुपये की परचेजिंग बिना टेंडर के की गई । जब इसकी शिकायत हुई तो उसे दबाने के लिए तत्कालीन महाप्रबंधक राजेश गोयल ने सितंबर 2017 से यह जांच कराई जबकि जांच 2013 से होनी थी। क्योंकि विलय के बाद परचेजिंग वर्ष 2013-14 और 2014-15 में हुई थी। जांच में पाया गया कि सीवीसी की गाइडलाइंस का खुलेआम उल्लंघन किया गया। वर्ष 2018 मेें उन एजेंसियों को ब्लैक लिस्ट कर दिया गया लेकिन पुरानी खरीद की कोई जांच नहीं हुई। करोड़ों रुपये के लोन गलत तरीके से बांटे गए। जिसका उदाहरण है कि एक हाउस लोन 10 करोड़ रुपये का बिमला देवी पत्नी लाला राम वर्मा का किया जिसमें 17 ऑब्जेक्शन थे। परिवार ने 7 एकड़ कृषि योग्य जमीन से अपनी आय 54 लाख रुपये सालाना प्रदर्शित की थी। उसके बाद भी लोन को दूसरे बैंक से टेकओवर कर लिया। मकान की रजिस्ट्री जो कि तुरंत जमा होनी थी। बैंक के भ्रष्ट अधिकारियों ने एक साल का समय दे दिया और आज भी बैंक के पास वो रजिस्ट्री नहीं है। यानि बिना रजिस्ट्री के वह क्लीन लोन किया गया। ऐसे लोन का रेट ऑफ इंट्रेस्ट 13.5 प्रतिशत बनता है लेकिन बैंक प्रबंधन ने एक प्रतिशत लोन फालतू लेकर 40 लाख का फायदा पहुंचाया। जबकि कोई किसान डिफाल्टर है या अपनी लोन की कोई कमी पूरी नहीं कर पाता है उससे लोन का ब्याज सीधा 7 प्रतिशत के मुकाबले 14 प्रतिशत के लगभग चार्ज करने लगते हैं। हरियाणा के मुख्यमंत्री के उडऩदस्ते की जांच में भी इन अधिकारियों को कुछ अन्य मामलों में दोषी पाया गया है लेकिन इसके बावजूद इनके खिलाफ कोई भी कानूनी कार्रवाई नहीं हो रही है। इस संवाददाता सम्मेलन में राणा व जोशी ने इन सारे मामलों की जांच सीबीआई से कराने की मांग रखी साथ ही जोशी ने कहा कि बैंक द्वारा किए गए 1 करोड़ रुपये से अधिक के तमाम बैंक लोन्स की जांच भी सीबीआई करे। नीरव मोदी जैसे कई मामलों का खुलासा होगा।
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