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Saturday, 30 March 2019

जब किसी प्रधानमन्त्री की प्रतिष्ठा सीधे तौर पर दाँव पर लगी

फतेहपुर। फतेहपुर सीट का संसदीय इतिहास कुछ ऐसा रहा है कि गाहे-ब-गाहे लगभग छः दशक बाद भी लोगों में तब की चर्चा हो ही जाती है! १९६२ में हुए इस चुनाव को यहाँ तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरु की दोस्ती के लिये भी याद किया जाता है, जब पंडित नेहरु ने अपनी जिद पर अपने बचपन के दोस्त इलाहाबाद के बालकृष्ण विश्वनाथ केसकर को स्थानीय कांग्रेसियों की इच्छा के विपरीत फतेहपुर सीट से कांग्रेस का टिकट देकर लोकसभा चुनाव जितवाने में अपनी प्रतिष्ठा लगाई और चुनाव प्रचार भी किया किन्तु “जिलेवाद” के नारे ने ऐसा करिश्मा दिखाया कि नेहरू की एक न चली और केसकर को करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा।
नेहरु की प्रतिष्ठा से जुड़े इस चुनाव में स्थानीय निर्दलीय प्रत्याशी गौरी शंकर कक्कड को ९१२५१ वोट मिले थे और केसकर को ६१९९८ वोट ही मिल पाये थे! कहते हैं कि केसकर की हार से पंडित नेहरु को इतना आघात पहुँचा था कि परिणाम की जानकारी मिलने के बाद उनकी आँखे तक नम हो गई थी! संसदीय इतिहास में शायद यह पहला अवसर था जब किसी प्रधानमन्त्री की प्रतिष्ठा सीधे तौर पर दाँव पर लगी और प्रत्याशी को करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा!

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