शीतला सप्तमी व्रत कथा, व्रत विधि और महत्व | Alienture हिन्दी

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Monday 25 March 2019

शीतला सप्तमी व्रत कथा, व्रत विधि और महत्व

Sheetla Saptami Vrat Katha, Vrat Vidhi :- शीतला सप्तमी का त्योहार हिन्दू कैलेंडर के अनुसार चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि को मनाया जाता है। वहीं कुछ जगह पर ये व्रत अष्टमी तिथि पर भी मनाया जाता है। मुख्य रूप से ये त्योहार उत्तर प्रदेश, राजस्थान और गुजरात के क्षेत्रों में मनाया जाता है। शीतला माता को प्रसन्न करने के लिए इस त्योहार पर ठंडा खाना खाया जाता है। इस व्रत में एक दिन पूर्व बनाया हुआ भोजन किया जाता है, अत: इसे बसौड़ा, बसियौरा व बसोरा भी कहते हैं। इस बार शीतला सप्तमी का व्रत 27 मार्च, बुधवार को है।

Sheetla Saptami Vrat Katha

शीतला सप्तमी व्रत की विधि | Sheetla Saptami Vrat Vidhi
व्रती (व्रत करने वाली महिलाएं) को इस दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि करना चाहिए। इसके बाद व्रत का संकल्प लें। फिर विधि-विधान से शीतला माता की पूजा करें। इसके बाद एक दिन पहले बनाए हुए (बासी) खाद्य पदार्थों, मेवे, मिठाई, पूआ, पूरी, दाल-भात आदि का भोग लगाएं। शीतला स्तोत्र का पाठ करें। शीतला माता की कथा सुनें व जगराता करें। इस दिन व्रत करने वाले तथा उसके परिवार के किसी अन्य सदस्य को भी गर्म भोजन नहीं करना चाहिए।

शीतला सप्तमी का महत्व | Importance Of Sheetla Saptami
शीतला सप्तमी का व्रत करने से शीतला माता प्रसन्न होती हैं तथा जो यह व्रत करता है, उसके परिवार में दाहज्वर, पीतज्वर, दुर्गंधयुक्त फोड़े, नेत्र के समस्त रोग तथा ठंड के कारण होने वाले रोग नहीं होते। इस व्रत की विशेषता है कि इसमें शीतला देवी को भोग लगाने वाले सभी पदार्थ एक दिन पूर्व ही बना लिए जाते हैं और दूसरे दिन इनका भोग शीतला माता को लगाया जाता है। इसीलिए इस व्रत को बसोरा भी कहते हैं। मान्यता के अनुसार इस दिन घरों में चूल्हा भी नहीं जलाया जाता यानी सभी को एक दिन बासी भोजन ही करना पड़ता है।

शीतला सप्तमी की कथा इस प्रकार है | Sheetla Saptami Vrat Katha
किसी गांव में एक महिला रहती थी। वह शीतला माता की भक्त थी तथा शीतला माता का व्रत करती थी। उसके गांव में और कोई भी शीतला माता की पूजा नहीं करता था। एक दिन उस गांव में किसी कारण से आग लग गई। उस आग में गांव की सभी झोपडिय़ां जल गई, लेकिन उस औरत की झोपड़ी सही-सलामत रही। सब लोगों ने उससे इसका कारण पूछा तो उसने बताया कि मैं माता शीतला की पूजा करती हूं। इसलिए मेरा घर आग से सुरक्षित है। यह सुनकर गांव के अन्य लोग भी शीतला माता की पूजा करने लगे।

शीतला माता की आरती| Sheetla Mata Ki Arti
जय शीतला माता, मैया जय शीतला माता,
आदि ज्योति महारानी सब फल की दाता।।
ऊं जय शीतला माता।
रतन सिंहासन शोभित, श्वेत छत्र भ्राता।
ऋद्धिसिद्धि चंवर डोलावें, जगमग छवि छाता।।
ऊं जय शीतला माता।
विष्णु सेवत ठाढ़े, सेवें शिव धाता।
वेद पुराण बरणत पार नहीं पाता।।
ऊं जय शीतला माता।
इन्द्र मृदंग बजावत चन्द्र वीणा हाथा।
सूरज ताल बजाते नारद मुनि गाता।।
ऊं जय शीतला माता।
घंटा शंख शहनाई बाजै मन भाता।
करै भक्त जन आरति लखि लखि हरहाता।।
ऊं जय शीतला माता।
ब्रह्म रूप वरदानी तुही तीन काल ज्ञाता,
भक्तन को सुख देनौ मातु पिता भ्राता।।
ऊं जय शीतला माता।
जो भी ध्यान लगावैं प्रेम भक्ति लाता।
सकल मनोरथ पावे भवनिधि तर जाता।।
ऊं जय शीतला माता।
रोगन से जो पीडित कोई शरण तेरी आता।
कोढ़ी पावे निर्मल काया अन्ध नेत्र पाता।।
ऊं जय शीतला माता।
बांझ पुत्र को पावे दारिद कट जाता।
ताको भजै जो नाहीं सिर धुनि पछिताता।।
ऊं जय शीतला माता।
शीतल करती जननी तुही है जग त्राता।
उत्पत्ति व्याधि विनाशत तू सब की घाता।।
ऊं जय शीतला माता।
दास विचित्र कर जोड़े सुन मेरी माता ।
भक्ति आपनी दीजै और न कुछ भाता।।
ऊं जय शीतला माता।

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