नई दिल्ली। बसपा सुप्रीमो मायावती ने मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में अपनी और हाथी की प्रतिमाओं पर पैसा खर्च करने के मामले में अपना हलफनामा दाखिल किया है। उन्होंने अपने हलफनामे में कहा है कि मेरी मूर्तियां जनता की इच्छा का प्रतिनिधित्व करती हैं। मायावती ने हलफनामे में कहा है कि मूर्तियों का निर्माण राज्य विधानसभा में पर्याप्त चर्चा के बाद बजट आवंटित करके किया गया था। कोर्ट विधायकों द्वारा बजट के संबंध में लिए गए निर्णयों पर सवाल नहीं कर सकता।
इसके साथ ही मायावती ने यह भी कहा कि मूर्तियां जनता की इच्छा को दर्शाती हैं, जनादेश को दर्शाती हैं। विधानसभा के विधायक चाहते थे कि कांशी राम और दलित महिला के रूप में मायावती के संघर्षों को दर्शाने के लिए मूर्तियां स्थापित की जाएं। मायावती ने हलफनामे में कहा है कि अन्य राजनीतिक पार्टियां भी राजनेताओं की मूर्तियां बनवाती हैं। यह उन राजनेताओं के प्रति चाह और समर्थन को दर्शाता है।
मायावती की ओर से कहा गया है कि मूर्तियों के खिलाफ दाखिल याचिका राजनीतिक रूप से प्रेरित है। मूर्ति के मुद्दे को उठाने से कोई जनता का कोई मतलब नहीं है। हाथियों की मूर्तियों पर बसपा सुप्रीमो मायावती ने सफाई दी कि हाथी केवल बसपा का प्रतिनिधित्व नहीं करते। वे भारतीय पारंपरिक कलाकृतियों के चिन्ह हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने एक याचिका की सुनवाई के दौरान टिप्पणी करते हुए कहा था कि BSP सुप्रीमो मायावती ने अपनी और हाथियों की मूर्तियां बनाने में जितना जनता का पैसा खर्च किया है, उसे वापस करना चाहिए। मामले की सुनवाई चीफ जस्टिस रंजन गोगोई कर रहे थे। सुप्रीम कोर्ट ने 2009 में दायर रविकांत और अन्य लोगों द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा था कि मायावती को मूर्तियों पर खर्च सभी पैसों को सरकारी खजाने में जमा कराना चाहिए।
सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने मायावती के वकील को कहा कि अपने क्लाइंट को कह दीजिए कि सबसे वह मूर्तियों पर खर्च हुए पैसों को सरकारी खजाने में जमा कराएं।
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