ईश्वर की बनाई हुई सर्वश्रेष्ठ, सबसे खूबसूरत और अनमोल कृति है नन्हे-मुन्ने, हंसते मुस्कुराते, मासूम बच्चे। एक ओर जहां इनकी एक किलकारी से ही घर के हर सदस्य का चेहरा खिल उठता है, वहीं बच्चे की मात्र एक छोटी सी परेशानी भी सबके चेहरे पर चिंता की लकीरें खींच देने के लिए काफी होती है। नवजात शिशुओं की सबसे बड़ी विवशता यह होती है कि वे अपनी किसी भी परेशानी को कहकर व्यक्त नहीं कर पाते, अत: मां को ही अपने विवेक, बुद्धि चातुर्य एवं समझदारी से अपने शिशु की परेशानी को समझना पड़ता है परंतु यदि कुछ छोटी-छोटी बातों का ध्यान रखा जाए तो शिशुओं को होने वाली तमाम व्यर्थ की परेशानियों को टाला जा सकता है।
– शिशु जन्म के तुरंत बाद से ही उसे दिए जाने वाले आवश्यक टीके समय-समय पर अवश्य लगवाएं।
– शिशु जन्म के बाद शीघ्रातिशीघ्र शिशु को स्तनपान शुरू करवाएं। प्रसव के बाद पहले कुछ घण्टों में मां के दूध में कोलस्ट्रम पाया जाता है जो शिशु के लिये अमृत तुल्य होता है। यह कोलस्ट्रम शिशु की रोग प्रतिरोधक शक्ति को बढ़ाता है।
– कुछ परिवारों में शिशु जन्म के तुरंत बाद शिशु को शहद चटाने की प्रथा होती है परंतु ऐसा कदापि न करें।
– बच्चे को कभी भी प्यार करने के लिये चूमें नहीं। नवजात शिशुओं की रोग प्रतिरोधक क्षमता बहुत कम होती है। चूमने आदि से उन्हें इन्फेक्शन हो सकता है।
– बच्चों की आंखों में काजल कभी न लगाएं। यह एक मिथक ही है कि काजल लगाने से आंखें बड़ी काली अथवा सुन्दर होती हैं या उनकी नेत्र ज्योति बढ़ती है। काजल या सुरमा लगाने से लाभ के बजाय शिशु को हानि ही होती है।
– जब भी शिशु नैपी गीली करे, उसे तुरंत बदलें। गीलेपन से फंगल इंफेक्शन होने का खतरा रहता है।
– डाइपर्स का प्रयोग जब तक बहुत अधिक आवश्यक न हो, नहीं करें।
– चार माह की उम्र तक शिशु को मां के दूध के अलावा अन्य कोई भी ऊपरी आहार न दें।
– चार माह की उम्र के बाद से शिशु को अन्य ऊपरी आहार जैसे कुचला हुआ केला, मूंग की दाल का पानी, चावल का मांड, टमाटर का सूप, पतली खिचड़ी, उबाल कर मसला हुआ आलू, सेरेलेक आदि शुरू कर दें।
– बच्चे को कभी भी बोतल से दूध न पिलाएं। ऊपर का दूध देने के लिए सिर्फ कटोरी चम्मच का ही प्रयोग करें।
– शिशु की किसी अच्छे बेबी ऑयल से रोज मालिश करें व थोड़ी देर हल्की धूप में लिटाएं। – शिशु को सीधे कूलर की हवा या ब्लोअर के सामने न लिटाएं।
– शिशु के कमरे में पालतू जानवर या फर वाले खिलौने न ले जायें। कई बच्चों को फर से एलर्जी हो जाती है। – नवजात शिशु को बहुत छोटे बच्चों की गोदी में न दें।
– शिशु जब पलटना शुरू कर दे तो उसे बिस्तर पर बीच में ही लिटाएं तथा पलंग के चारों ओर ऊंचे तकिए आदि लगा दें ताकि शिशु पलटने से नीचे न गिर जाए। बेहतर होगा यदि शिशु को जमीन पर ही बिस्तर लगाकर लिटाया जाए।
– जब शिशु के दांत निकलने लगते हैं तो उसकी हर चीज मुंह मे रखने की आदत होती है। ध्यान रखें शिशु के आसपास कोई भी ऐसी चीज न हो जो वह मुंह में डालकर अपने आपको नुकसान पहुंचा ले जैसे-बटन, सुई, खिलौनों के छोटे-छोटे ब्लाक्स आदि।
– बच्चों के मुंह में जाने वाली सभी चीज़ें जैसे-टीदर, कटोरी, चम्मच, शिशु के हाथ, नाखून आदि की सफाई का विशेष ध्यान रखें। जरा सी भी गंदगी इंफेक्शन फैला सकती है, नतीजन डायरिया होने में देर नहीं लगती।
– बच्चों को हमेशा सूती तथा आरामदायक वस्त्र पहनाएं। कभी भी तंग कपड़े न पहनाएं।
– ध्यान रखें कि शिशु के खिलौनों के किनारे नुकीले अथवा धारदार न हों। उनके किनारे गोलाकार ही हों।
– 10-11 माह की उम्र के बाद शिशु को सम्पूर्ण आहार अर्थात दाल, चावल, सब्जी, रोटी, दही, सलाद देना शुरू कर दें। समय-समय पर शिशु का चेकअप किसी कुशल बाल रोग विशेषज्ञ से करवाते रहें ताकि पता चल सके कि शिशु का वजन आदि उम्र के अनुसार बढ़ रहा है या नहीं या अन्य कोई परेशानी शिशु को तो नहीं है।
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