डॉ दिलीप अग्निहोत्री
साहित्य और सियासत दो अलग क्षेत्र है। लेकिन दोनों में महारथ हासिल करने वालों की एक विशिष्ट श्रृंखला रही है। आज यह प्रायः दुर्लभ लगती है, किंतु स्वतंत्रता आंदोलन के समय यह सामान्य बात थी। तब अधिसंख्य बड़े राजनेता उच्च कोटि के लेखक व पत्रकार थे। महात्मा गांधी ने तो यात्रा काल में ही हिन्द स्वराज पुस्तक की रचना कर दी थी।
उत्तर प्रदेश विधानसभा अध्यक्ष हृदयनारायण दीक्षित ने उस समृद्ध परंपरा को गरिमापूर्ण ढंग से आगे बढ़ाया है। जमीनी व चुनावी राजनीति में आदर्श स्थापित किये, वह पांच बार विधायक, एक बार विधान परिषद के सदस्य व अपनी पार्टी के सदन में नेता रहे, कैबिनेट मंत्री रहे, इस समय उत्तर प्रदेश विधानसभा के अध्यक्ष है। ग्रामीण निर्वाचन क्षेत्र से सतत सम्पर्क, निर्धनों, वंचितों से मित्रता के स्तर का लगातार संवाद, आमजन की समस्याओं के समाधान की तत्त्परता। इसके बाद भी अध्ययन व लेखन का समय निकालना साधारण बात नहीं है। लेखन भी ऐसा जिसमें वैदिक संस्कृति की व्यापक आधारभूमि रहती है। इनसे संबंधित विषयों पर पत्र पत्रिकाओं में कालम लिखने वाले वह पहले व्यक्ति है।
हृदय नारायण दीक्षित की पारिवारिक पृष्ठिभूमि अति साधारण थी। अध्ययन को जारी रखने आर्थिक कठिनाई का भी सामना करना पड़ा, लेकिन पिता के प्रोत्साहन व अपने मनोबल के कारण आगे बढ़े। अर्थशास्त्र में परास्नातक किया, चार वर्ष तक कालेज में प्रवक्ता रहे, चार वर्षों में एक दिन का अवकाश नहीं लिया। प्राचीन वांग्मय के अध्ययन की रुचि जगी, तो उसमें भी प्रवीणता प्राप्त की, इसे उनके लेखन में प्रत्यक्ष देखा जा सकता है। विधायक, मंत्री बनने के बाद भी आर्थिक स्थिति कभी ठीक नहीं रही, ईमानदारी से जीवन यापन करते रहे। इसलिए किताब छपवाने में भी कठिनाई आती थी। फिर भी साहित्य जगत को उनकी पुस्तकों के रूप में अमूल्य धरोहर मिलती रही।
उनकी पुस्तक मधु अभिलाषा और हिन्द स्वराज का पुनर्पाठ का विमोचन उत्तर प्रदेश के राज्यपाल राम नाईक ने किया। राम नाईक से संस्मरण चरैवेति चरैवेति शीर्षक पुस्तक में संकलित है। इसमें लगातार चलते रहने का भाव समाहित है। यह सन्योग है कि उन्होंने जिनकी दो पुस्तकों का विमोचन किया,वह भी चरैवेति चरैवेति पर अमल करने वाले है। हृदय नारायण दीक्षित ने राजनीति और साहित्य दोनों में उच्च प्रतिमान स्थापित किये। यह चरैवेति चरैवेति के दर्शन से ही संभव हुआ।
राज्यपाल राम नाईक ने ठीक कहा कि हृदयनारायण दीक्षित उच्च कोटि के विद्वान, चिंतक व लेखक है। वह भारतीय संस्कृति और दर्शन के विख्याता होने के साथ प्राचीन वैदिक साहित्य और आधुनिक वैज्ञानिक दृष्टि को मिलाकर सदैव नए विषय प्रस्तुत करते है। इसी कारण लोग उन्हें पढ़ना और सुनना पसंद करते है। उन्होंने ऋग्वेद सहित तमाम वैदिक साहित्य से मधु शब्द का अनेकशः प्रयोग निकाला है। वह भारतीय राष्ट्रवाद को वैदिक मधु अभिलाषा से जोड़ते है। मधु अभिलाषा -संस्कृति, दर्शन और स्वभाविक मनोविज्ञान का समवेत भंडार है।
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी उनकी पुस्तक के लिए शुभकामना संदेश दिया। योगी आदित्यनाथ ने लिखा कि हृदयनारायण दीक्षित वैदिक साहित्य के साथ साथ इतिहास, विज्ञान,व विश्व की तमाम सभ्यताओं के जानकार है। वह देश के चर्चित स्तम्भकार है। ऋग्वेद, उपनिषद,गीता दर्शन,सहित सभी विषयों पर उन्होंने बीस से अधिक ग्रन्थ लिखे है। वेदों में मधु शब्द आया है। दीक्षित जी ने वैदिक मधु से लेकर मधुविद्या,मधुरस ग्रन्थ बहुत पहले लिखे थे। समाज में मधु वातायन बनाने के ध्येय से लिखी गई यह पुस्तक भारत के संस्कृति मनीषियों को अच्छी लगेगी।
महात्मा गांधी ने हिन्द स्वराज की रचना उन्नीस सौ नौ में कई थी। इस प्रकार एक सौ दस वर्ष हो गए। हृदयनारायण दीक्षित इसका भी मानवीय प्रतीक से चित्रण करते है। वह लिखते है कि एक सौ दस वर्ष होने के बाद भी किताब बूढ़ी नहीं हुई, यह चिर युवा है, सामयिक है, प्राणवान है। सामाजिक परिवर्तन के उद्देश्य व हिन्द स्वराज में क्रमबद्ध हैं सदाचार और आत्मबल की चर्चा है। शब्द पुष्पों की गंध आग्नेय है। इसमें धीमी आंच है, गहन है, निष्काम कर्म है।
सतत कार्य करने की सौ वर्ष जीने की जिजीविषा है। सत्य का आग्रह है। कथनी करनी में अभेद है। भारतीय सभ्यता का निर्मल प्रवाह है। जबकि मधु अभिलाषा के सभी निबंधों में जिज्ञाषा की भूमिका है। सभी लेख स्वतंत्र व निर्बाध है। निबंधों में वैदिक प्रसाद का मधु ज्यादा है। ये वैदिक दर्शन के निकट है। संस्कृति दर्शन पर आधारित है। विश्व एकता की कामना है। यथार्थ में जाति पंथ क्षेत्र के विभाजन भी है। वे संवैधानिक संस्थाओं से टकरा रहे है। ये संस्थाएं अपनी आभा खोती जा रही है। आंनद मगन देखना मधु अभिलाषा है। मधु अभिलाषी समाज की रचना ही पुस्तक का उद्देश्य है।
हृदयनारायण दीक्षित कहते भी है कि किसी पुस्तक को एक बार पढ़ने से उसका परिचय प्राप्त होता है। दो बार पढ़ने पर संबंधित विषय से मित्रता स्थापित होती है। बार बार पढ़ना विषय के भीतर ले जाता है। अगले वाक्य में हृदयनारायण शब्दों के मानवीयकरण का सुंदर उदाहरण प्रस्तुत करते है। वह कहते है कि बार बार पढ़ने से वाक्य अपना घूंघट खोलते है, शब्द अर्थ खोलते है,अर्थ मूल भाव तक ले जाता है, भाव प्रभाव पैदा करते है।
प्रभाव का ताप चित्त का रूपांतरण करता है। आग्रह कम्पित होते है। पूर्वाग्रह ध्वस्त होते है। स्पष्ट है कि हृदयनारायण दीक्षित जितने उच्च कोटि के लेखक है, उतने ही गम्भीर पाठक भी है। यह सन्योग है कि वह महाप्राण निराला, प्रताप नारायण मिश्र, शिवमंगल सिंह सुमन के क्षेत्र से विधायक है। उन्होंने अपने लेखन से गरिमा बढ़ाई है।
इन दोनों पुस्तकों में भी उनकी चिरपरिचित गहन भावभूमि है। इसी के साथ हृदयनारायण दीक्षित की विशिष्ट भाषा शैली का सुंदर व प्रभावी रूप भी दिखाई देता है। वह छोटे वाक्यों के विशेषज्ञ है। उन्होंने ने निबंध लेखन की नई तकनीकी विकसित की है। इसमें हजारी प्रसाद द्विवेदी की गुण और रामचन्द्र शुक्ल की मीमांसा शैली है। रामविलास शर्मा के तेवर है। वैदिक काल का मधुरस है।
आधुनिक समाज की निर्मम विवेचना है। ऋग्वेद से महाकाव्य तक विस्तृत मधु उनका आलंबन है। यह कहा गया कि अभिलाषा प्रायः व्यक्तिगत स्वप्न होती है। लेकिन हृदयनारायण दीक्षित की मधु अभिलाषा भारतीय जन गण मन की सामूहिक प्यास है। मधुर और प्रीतिपूर्ण जीवन सबकी अभिलाषा है। तनावमुक्त उल्लासपूर्ण,जीवन में ही सृजन के फूल खिलते है।
समाज रूप,रस,गन्ध,गायन में नृत्य मगन होता है। हृदयनारायण दीक्षित का लेखन तनावग्रस्त आधुनिकता और नृत्य मगन उत्साहधर्मा प्राचीनता के अंतर्संबंध बताती है। पुस्तक में आधुनिकता का स्वागत किया गया है। लेकिन उसे परम्परा की पुत्री कहा गया। इसमें लोकतंत्र की प्राचीन भारतीय चेतना का दर्शन है। अंधविश्वासी आग्रहों की जगह प्रश्नाकुलता और सत्य जिज्ञाषा को प्रतिष्ठा दी गई है। दर्शन ,जिज्ञाषा, संस्कृति, सामूहिक उल्लास और भारत ऋत,मन, वचन,कृतकर्म का प्रस्थान बिंदु है। यह पुस्तक बारम्बार पठनीय, मननीय, रमणीय और पुनः, पुनश्च निर्वचनीय है।
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