अब इन चीनी मिलों की ब्रिक्री मामले की जांच सीबीआई के बाद ईडी भी करेगी-सूत्र
हरदोई -पूर्व मुख्यमंत्री मायावती के कार्यकाल में 21 चीनी मिलों को गलत तरीके से नम्रता मार्केटिंग व प्राइवेट लिमिटेड नामक कंपनी को बिक्री की गई थी,वहीं अब इन चीनी मिलों की ब्रिक्री मामले की जांच सीबीआई के बाद ईडी भी करेगी।इनमें से एक चीनी मिल हरदोई में भी शामिल है।बसपा शासनकाल में साल 2011 के दौरान कौड़ियों के भाव बेंची गई 21 चीनी मिलें अब पूरी तरह से खंडहर में तब्दील हो चुकी हैं।इनमें से एक चीनी मिल हरदोई जिले की भी है। बसपा राज में हुए इस चीनी मिल घोटाले की जांच सीबीआई के बाद अभी ईडी भी करेगी।सीबीआई ने घोटाले से संबंधित सारे कागजात ईडी को सौंप दिए हैं।जिसके बाद ईडी इसकी जांच में जुट गई है।ऐसे में प्रवर्तन निदेशालय की टीम हरदोई पहुंच कर भी मामले की जांच कर सकती है।कभी हरदोई की चीनी की मिठास एशिया के मानचित्र पर अपनी जगह बनाये हुए थी,लेकिन आज लक्ष्मी शुगर मिल्स लिमिटेड,जिसे पूर्वर्ती सरकारों ने अपने फायदे के लिए जर्जर होने के लिए छोड़ रखा था,जो कभी लोगों के रोजगार का साधन हुआ करती थी, आज अपनी बदहाली पर आंसू बहाने को मजबूर है।बसपा शासनकाल में सभी 21 चीनी मिलों को गलत तरीके से नम्रता मार्केटिंग प्राइवेट लिमिटेड नामक कंपनी को बिक्री की गई थी।मायावती के मुख्यमंत्री रहते हरदोई स्थित एशिया की नंबर वन रही चीनी मिल भी कौड़ियों के भाव में बिकी थी।एक अक्टूबर 1934 को अमृतसर के सेठ बंशीधर ने द लक्ष्मी शुगर आयल मिल्स लिमिटेड की एक इकाई के तौर पर हरदोई में चीनी मिल की स्थापना की थी,तब जमीदारी के दौर में शिवशंकर गौड़ से उन्होंने 50 एकड़ जमीन 90 वर्ष के पट्टे पर ली थी।जावा और सुमात्रा देश से मशीनें मंगाई गईं थी।1936 में यहां पहली बार गन्ना पेराई की शुरुआत हुई और करीब 2000 श्रमिक यहां काम में लगे हुए थे।यहां बनने वाली चीनी की गुणवत्ता पूरे एशिया में नंबर वन मानी जाती थी और यहां की चीनी का दाना सबसे बड़ा और पारदर्शी होता था, जिसकी मांग कई देशों में थी।देश की आजादी के बाद जमीदारी उन्मूलन अधिनियम लागू होने के बाद से मिल की जमीन सरकार के नाम हो गई।बताते हैं कि 70 के दशक में बंशीधर की मौत के बाद उनके बेटे दया विनोद ने इसकी कमान संभाली, लेकिन उनका अपने भाई शरण विनोद से हिस्सेदारी को लेकर विवाद हो गया। यहीं से पतन की शुरुआत हुई।साल 1981-82 में गन्ना किसानों का भुगतान अटक गया, जिसके बाद 1983 में इसे बीमार मिल घोषित कर दिया गया।1984 में इसका सरकार ने अधिग्रहण कर लिया। इसकी क्षमता 18 मेट्रिक टन प्रतिदिन थी, लेकिन फिर भी इस मिल को सरकार ने अपने अंडरटेकिंग में लिया।समय बढ़ता रहा और मायावती सरकार बनने के बाद चीनी मिल को बेचने का सरकार ने निर्णय लिया।टेंडर प्रक्रिया के तहत नम्रता मार्केटिंग प्राइवेट लिमिटेड कंपनी को यूपी राज्य चीनी निगम द्वारा 26 मार्च 2011 को बैनामा करा दिया गया, लेकिन हाल ही में उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने चीनी मिल बिक्री मामले की जांच के लिए सीबीआई की सिफारिश की थी, जिसके बाद सीबीआई ने चीनी मिल का मामला दर्ज कर जांच शुरू की।चीनी मिल घोटाले की इस जांच में सीबीआई को कुछ सूत्र मिले हैं, जिसे सीबीआई ने ईडी को सौंपे हैं।लिहाजा अब प्रवर्तन निदेशालय मनी लांड्रिंग की भी जांच करेगा।ऐसे में चुनावी मौसम में बसपा सुप्रीमो मायावती की मुश्किलें बढ़ सकती हैं।बताया जाता है कि 1565 हेक्टेयर जमीन का जिक्र बिक्री नामे में है,इसे तत्कालीन बसपा सरकार में 8 करोड़ 20 लाख रुपए में बेचा गया था।लक्ष्मी शुगर मिल में नौकरी करने वाले हरदयाल सिंह बताते हैं कि मिल की हालत बद से बदतर करने में सरकार ही जिम्मेदार हैं। मिल के बंद होते समय न जाने कितने लोग रोड पर आ गए थे।कई लोगों का भी पैसा बकाया है।70 साल के हो गए हरदयाल साइकिल पंचर की दुकान चला कर अपना जीवन यापन कर रहे हैं।
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