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Sunday, 19 May 2019

अगर आपकी गुदा में है फुंसियां तो हो सकता है फिस्टुला, जाने लक्षण और उपाय

फिस्टुला एक ऐसा रोग है जिसके बारे में ज्‍यादात्तर महिलाएं अवेयर नहीं होती है। इसके लक्षण वैसे तो बहुत आम होते है लेकिन इसका असर महिलाओं के डेलीरुटीन पर बहुत पड़ता है। यह रोग महिलाओं के गुदा मार्ग को प्रभावित करता है। इसमें गुदा मार्ग के आसपास फुंसियां हो जाती हैं और सूजन और खुजली भी रहती है। यही नहीं कई बार तो गुदा मार्ग इतना बढ़ जाता है कि जांघों तक आ जाता है। तो आइए जानते हैं क्या है महिलाओं में फिस्टुला रोग।

भगंदर (एनल फिस्टुला) नामक रोग में गुदा द्वार के आसपास एक छेद बन जाता है। इस छेद से पस निकलता और रोगी काफी तेज दर्द महसूस करता है। सही समय पर ठीक इलाज न मिलने पर बार-बार पस पड़ने से फिस्टुला बड़ी समस्‍या बनकर सामने आ सकता है। फिस्टुला का सही समय पर इलाज नहीं मिलने से कैंसर और आंतों की टी.बी. की समस्‍या भी हो सकती है।

क्या हैं इसके लक्षण

रोगी की गुदा में तेज दर्द होता है, जो जो बैठने पर बढ़ जाता है। गुदा के आसपास खुजली हो सकती है। इसके अलावा सूजन होती है। त्वचा लाल हो जाती है और वह फट सकती है। वहां से मवाद या खून रिसता है। रोगी को कब्ज रहता है और मल-त्याग के समय उसे दर्द होता है।

कैसे मालूम करें

फिस्टुला की जांच के लिये डिजिटल एनस टेस्ट (गुदा परीक्षण) किया जाता है, लेकिन कई रोगियों को इसके अलावा अन्य परीक्षणों की जरूरत पड़ सकती है, जैसे फिस्टुलोग्राम और फिस्टुला के मार्ग को देखने के लिये एमआरआई जांच।

क्या हैं उपचार

फिस्टुला की परंपरागत सर्जरी को फिस्टुलेक्टॅमी कहा जाता है। सर्जन इस सर्जरी के जरिये भीतरी मार्ग से लेकर बाहरी मार्ग तक की संपूर्ण फिस्टुला को निकाल देते हैं। इस सर्जरी में आम तौर पर टांके नहीं लगाये जाते हैं और जख्म को धीरे-धीरे और प्राकृतिक तरीके से भरने दिया जाता है। इस उपचार विधि में दर्द होता है और उपचार के असफल होने की संभावना रहती है। अंदर के मार्ग और बगल के टांके आम तौर पर हट जाते हैं जिससे दोबारा फिस्टुला हो सकता है। परम्परागत उपचार विधि में मल त्याग में दिक्कत होती है। फिस्टुला की सर्जरी से होने वाले जख्म को भरने में छह सप्ताह से लेकर तीन माह का समय लग जाता है।

आयुर्वेद में ऐनल फिस्टुला

आयुर्वेद में ऐनल फिस्टुला एक ऐसी स्थिति है जिसमें जो शरीर में तीन दोषों अर्थात वात, पित और कफ के ऊर्जा में असंतुलन के कारण होती है। सुश्रुत संहिता के अनुसार फिस्टुला को निम्नलिखित प्रकार में बांटा गया है: – शतपोनक – फिस्टुला में वातदोष प्रमुख विक्रय होता है।

जंक फूड से बचे

ऐनल फिस्टुला से पीड़ित रोगी को नियमित रूप से अधिक पानी पीना चाहिए। उसे अपने आहार में फाइबर में समृद्ध खाना और संतुलित आहार खाना चाहिए। उन्हें मसालेदार और जंक फूड से बचना चाहिए।

अदरक खाएं

अदरक से फिस्टुला का उपचार आमतौर पर अदरक को उसके औषधीय गुणों के लिए जाना जाता है। अदरक में एंटी माइक्रोबायल, एंटीबायोटिक, एंटीसेप्टिक, एनाल्जेसिक, एंटीबायोटिक, एंटीपैरिक, एंटिफंगल गुण हैं। यह शरीर के लिए कुछ आवश्यक पोषक तत्वों के साथ शक्ति प्रदान करती है।

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