लखनऊ। आद्य पत्रकार देवर्षि नारद की जयंती के अवसर पर रविवार को राजधानी के किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय के कलाम सेंटर सभागार में समारोह का आयोजन किया गया। समारोह के मुख्य वक्ता राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पूर्वी व पश्चिमी उत्तर प्रदेश के संयुक्त क्षेत्र प्रचार प्रमुख कृपा शंकर जी रहे। जबकि मुख्य अतिथि के रुप में दैनिक जागरण उत्तर प्रदेश के संपादक आशुतोष शुक्ला जी ने अपने विचार रखे। समारोह की अध्यक्षता केजीएमयू के कुलपति प्रोफ़ेसर एमएलबी भट्ट ने की। वही नागरिक टाइम्स के संपादक नरेंद्र भदौरिया ने विशिष्ट अतिथि के रुप में अपनी बात रखी।
समारोह में उपस्थित लोगों को संबोधित करते हुए मुख्य वक्ता कृपा शंकर जी ने कहा कि देवर्षि नारद के हम आद्य पत्रकार के रूप में मानते हैं । वह राम और रावण दोनों के मन की बात को सामने लाने में सक्षम थे। परंतु उनकी पत्रकारिता का उद्देश्य लोकमंगल करना था।
उन्होंने कहा कि नारद जयंती के माध्यम से पत्रकारों का आपस में मिलान कराकर उन्हें नारद जी के पद चिन्हों पर पत्रकारिता करने के लिए प्रेरित किया जाता है। श्री कृपा शंकर ने वर्तमान समय में पत्रकारिता की चुनौतियों का उल्लेख करते हुए कहा कि पत्रकार विपरीत परिस्थिति में भी पूरी ईमानदारी से काम करते हुए समाचार को सामने लाने का प्रयास करते हैं। लेकिन उसे समाज को और अधिक समर्थन मिलने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि पत्रकारिता व संघ का काम लगभग मिलता-जुलता है और एक सच्चा पत्रकार भी सदैव समाज के कल्याण के लिए जुटा रहता है।
समारोह को बतौर मुख्य अतिथि अपने उद्बोधन में दैनिक जागरण उत्तर प्रदेश के संपादक आशुतोष शुक्ला ने कहा कि देवर्षि नारद की पत्रकारिता लोक मंगल पर आधारित थी और वह हमेशा न्याय के पक्ष में पत्रकारिता करते थे। उन्होंने कहा कि पत्रकारिता विश्वास पर आधारित है। और इसे बनाए रखने की जिम्मेदारी पत्रकारों की ही है श्री शुक्ला ने कहा कि नाराज जी हमेशा मौके पर पहुंचकर समाचार का अवलोकन करते थे, जबकि सोशल मीडिया के दौड़ में मौजूदा पत्रकारों का मौके पर पहुंचने की संस्कृत कम हुई। उन्होंने कहा कि प्रिंट पत्रकारिता दस्तावेज की तरह है और आज भी संसद में अखबार लहराए जाते हैं। पत्रकारिता के समक्ष पहले से चुनौतियां बड़ी हैं और अब पत्रकार को सोशल मीडिया से आगे का समाचार देने की चुनौती है। श्री शुक्ला ने कहा कि कम्युनिस्टों ने गिरोह बनाकर देश को बौद्धिक गुलाम बनाने का प्रयास किया है। इस कारण हम इतिहास के सच को छिपाकर आक्रांता का सम्मान करने लगे। दुष्परिणाम यह भी रहा की अपेक्षाकृत अधिक पारंपरिक होने के बावजूद हमने दक्षिण के राजाओं के महत्त्व नहीं दिया। वहीं नेहरू के समाजवाद के रूप में भी कम्युनिस्टों ने अपने विचार थोपने का प्रयास किया। उन्होंने कहा कि इसका मुकाबला हमें कलम से ही करना होगा और इसके लिए अध्ययन अति आवश्यक है
इससे पूर्व अपने उद्बोधन में श्री नरेंद्र भदोरिया जी ने कहा कि मौजूदा समय में आत्म विस्मृति एक बड़ा रोग बन कर उभर रहा है और इस कारण हम अपने पूर्वजों को भूलते जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि नारद जी ना केवल ज्ञान के विपुल भंडार थे वरन वे त्रिकालदर्शी भी थे। वे आस्था का प्रमाण मांगने वालों को मूर्ख कहते थे परंतु जानकारी को ही सत्य कहने को अधूरा सच कहते थे।
अध्यक्षीय उद्बोधन में केजीएमयू के कुलपति प्रोफेसर एमएलबी भट्ट ने कहा कि समाज के अधिकांश व्यक्ति इस समय सोशल मीडिया पर सहभागिता कर रहे हैं इसके बावजूद किसी भी बात को मानने से पहले उसे तर्क की कसौटी पर कसा जाना जरूरी है। वहीं लोकहित की भावना को कोई तर्कसंगत मानना चाहिए। शुरुआत में सभी अतिथियों ने दीप प्रज्वलन कर के कार्यक्रम की शुरुआत की। इस मौके पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सर प्रांत कार्यवाह प्रशांत भाटिया विभाग प्रचारक अजय जी सह प्रांत प्रचार प्रमुख दिवाकर जी सह प्रांत प्रचार प्रमुख लोक नाथ जी समेत संघ के अनेक वरिष्ठ स्वयंसेवक कार्यक्रम में सम्मिलित हुए। कार्यक्रम का समापन वंदे मातरम गीत से किया गया।
समारोह का संचालन बृजेश पांडे ने किया जबकि विषय प्रस्तावना नारद जयंती समारोह के आयोजक उमेश जी ने रखा।
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