अलकनंदा नदी के बायीं तरफ बसा है आदितीर्थ बद्रीनाथ धाम... जो ना सिर्फ श्रद्धा व आस्था का अटूट केंद्र है, बल्कि अपने अद्वितीय प्राकृतिक सौंदर्य से भी यह बड़ी संख्या में पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करता है। बता दें कि यह तीर्थ हिंदुओं के चार प्रमुख धामों में से एक माना जाता है। ध्यान रहे कि यह पवित्र स्थल भगवान विष्णु के चतुर्थ अवतार नर एवं नारायण की तपोभूमि है।
बद्रीनाथ धाम का महत्व –
क्या आपने बद्रीनाथ धाम को लेकर यह कहावत कभी सुनी है – “जो जाए बद्री, वो न आए ओदरी”… इसका अर्थ यह है कि जो व्यक्ति बद्रीनाथ के दर्शन कर लेते है, उसे माता के गर्भ में दोबारा नहीं आना पड़ता… और इंसान जन्म और मृत्यु के चक्र से छूट जाता है। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि ऋषिकेश से यह धाम लगभग 294 कि.मी.की दूरी पर उत्तर दिशा में स्थित है। यही नहीं, यह पंच बद्री में से एक बद्री भी कहलाती है। उत्तराखंड में पंच बद्री, पंच केदार तथा पंच प्रयाग पौराणिक व धार्मिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण माने जाते है।
बद्रीनाथ धाम रही है शंकराचार्य की कर्मस्थली –
भगवान नारायण के वास के रूप में जाना जाने वाला यह खास धाम बद्रीनाथ शंकराचार्य की कर्म स्थली रहा है। यह भी माना जाता है कि आदि गुरु शंकराचार्य ने 8वीं सदी में इस मंदिर का निर्माण करवाया था। वहीं, मंदिर के वर्तमान प्रारूप का निर्माण सोलहंवी सदी में गढ़वाल के राजा ने करवाया था। मंदिर के पुजारी शंकराचार्य के वंशज ही होते है, जिन्हें रावल के नाम से पुकारा जाता है। जान लें कि यह जब तक रावल के पद पर रहते है, तब तक इन्हें ब्रह्मचर्य का पूर्ण पालन करना होता है।
बद्रीनाथ मंदिर के जब खुलते हैं बंद कपाट –
अगर अब तक आपने बद्रीनाथ मंदिर के दर्शन नहीं किए हैं, तो एक बार ज़रूर प्लान बनाएं और सभी परिवार के साथ वहां दर्शन करने ज़रूर जाएं। बद्रीनाथ मंदिर में भगवान विष्णु की लगभग एक मीटर ऊंची काले पत्थर (शालिग्राम) की प्रतिमा मौजूद है, जिसमें भगवान विष्णु ध्यान मुद्रा में सुशोभित है। यह मंदिर तीन भागों गर्भगृह, दर्शनमण्डप और सभा मंडप में बंटा हुआ है। और तो और मंदिर परिसर में अलग-अलग देवी-देवताओं की 15 मूर्तियां विराजमान हैं। जब बद्रीनाथ के कपाट खुलते हैं, उस समय भी मंदिर में एक दीपक ज़रूर जलता रहता है, लोगों की मानें तो इस दीपक के दर्शन का बड़ा ही महत्त्व माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि पूरे 6 महीने तक बंद दरवाज़े के अंदर इस दीप को देवता ही जलाए रखते हैं।
बद्रीनाथ धाम कैसे है धरती का वैकुण्ठ –
हिमालय की तलहटी में बसे बद्रीनाथ धाम को ”धरती का वैकुण्ठ” भी कहा जाता है। बद्रीनाथ जैसा स्थान मृत्युलोक में ना पहले कभी था और ना ही भविष्य में कभी होगा। कहते हैं कि भगवान विष्णु यहां विग्रह रूप में यहाँ तपस्यारत हैं।
बद्रीनाथ धाम में जानें क्या चढ़ता है प्रसाद
वाकई में आप अगर बद्रीनाथ को प्रसन्न करना चाहते हैं, तो उन्हें वनतुलसी की माला, चने की कच्ची दाल, गिरी का गोला और मिश्री आदि का प्रसाद ज़रूर चढ़ाएं। वन तुलसी की महक से पूरा माहौल आनंदित हो जाता है। यूं तो इस मंदिर का कई रंगों से बना प्रवेश द्वार काफी दूर से ही पर्यटकों को आकर्षित करता है, जिसे सिंह द्वार भी कहा जाता है। मंदिर के निकट बनी व्यास और गणेश की गुफाएं भी हैं, जो बेहद सुन्दर हैं। याद रहे कि यहीं बैठकर वेदव्यास जी ने महाभारत की रचना की थी। माना जाता हैं कि पांडव, द्रोपदी के साथ इसी रास्ते होकर स्वर्ग को गए थे।
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