29 अक्टूबर- World Stroke Day पर विशेष:
40 प्रतिशत स्ट्रोक का कारण है घरेलू प्रदूषण : डा. विपुल गुप्ता
नई दिल्ली। ठोस ईंधन को जलाने के कारण घरेलू वायु बहुत ज्यादा प्रदूषित होती हैं। भारत में औसत अंदरूनी वायु प्रदूषण विश्व स्वास्थ्य संगठन के मापदण्डों से बीस गुना ज्यादा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार भारत में प्रतिवर्ष 4.3 मिलियन लोग घरेलू वायु प्रदूषण के कारण मरते है। यह संख्या पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा है। पूरी दुनिया के मुकाबले भारत में स्ट्रोक के कारण होने वाली मौतें हाइपरटेंशन के बाद दूसरे स्थान पर है। स्ट्रोक से सम्बन्धित अपंगता के 30 प्रतिशत मामले भारत जैसे विकासशील देशों में होते हैं और विकसित देशों के मुकाबले चार गुना तक ज्यादा होते है।
अग्रिम इंस्टीट्यूट फॉर न्यूरोसाइंसेज आर्टेमिस हॉस्पिटल के न्यूरोइंटरवेंशन विभाग के डायरेक्टर डॉ. विपुल गुप्ता का कहना है कि घरेलू वायु प्रदूषण का सामना कर रही महिलाओं में स्ट्रोक की आशंका 40 प्रतिशत तक ज्यादा होती है। इसका कारण है हवा में कार्बन डाई ऑक्साइड और पर्टिक्यूलेट मैटर का होना जो ठोर्स इंधन के जलाने से पैदा होते हैं और हवा में एचडीएल (हाई डेंन्सिटी लिपोप्रोटीन) का स्तर कम कर देते है। इसके कारण शरीर के एलडीएल (लो डेन्सिटी लिपोप्रोटीन) हट नहीं पाते और धमनियां कठोर हो जाती है। इससे शारीर में एलडीएल, नुकसानदायक वसा आदि का स्तर बढ़ जाता है और क्लॉट, मस्तिष्क को रक्त आपूर्ति में रूकावट की जोखिम बढ़ जाती है और स्ट्रोक आ जाता है।
दुनिया भर में स्ट्रोक के 90 प्रतिश तमामले ऐसे कारणों की वजह से होते है जिनसे बचा जा सकता है और इनमें अंदरूनी घरेलू वायु प्रदूषण से सबसे उपर है। इनके अलावा हाइपरटेंशन, फल और अनाज कम खाना, बाहरी वायु प्रदूषण, उच्च बीएमआई स्तर और धूम्रपान भी ऐसे कारण है, जिनसे बचा जा सकता है।
भारत में प्रतिवर्ष समय से होने वाली चार मिलियन मौतें घरेलू वायु प्रदूषण से होती है और इनमें से 40 प्रतिशत स्ट्रोक के कारण होती है। इनमें से आधी उन महिलाओं की मौते होती है जो खाना बनाते समय ठोर्स इंधन से होने वाले प्रदूषण के सम्पर्क में रहती हैं। डॉ.विपुल गुप्ता का कहना है कि ऐसे में यह जरूरी हो जाता है कि घरेलू प्रदूषण के कारण होने वाली मौतों को रोका जाए।
स्ट्रोक अटैक से पहले कुछ पहचाने जा सकने वाले लक्षण आते हैं जिन्हें मिनी स्ट्रोक कहा जाता है। हालांकि यह लक्षण कुछ क्षणों तक ही रहते है, लेकिन 48-72 घंटे में बडे स्ट्रोक अटैक की चेतावनी दे जाते हैं। उपचार में देरी हो तो हर मिनिट में दो मिलियन न्यूरोन्स की क्षति हो सकती हैं। ऐसा इसलिए होता है कि कार्बन मोनोऑक्साइड और पर्टिक्यूलेट मैटर से बन क्लॉट के कारण मस्तिष्क के खास हिस्से तक रक्त की आपूर्ति रूक जाती हैं।
यह ध्यान देने वाली बात है कि भारत में 30 करोड लोग अभी भी परम्परागत चूल्हे या खुली आग में खाना बनाते हैं या अपने घर को गर्म करते है। इसके लिए वे कोयले, लकडी, चारकोल या फसलों के अवशिष्ट का प्रयोग करते हैं। इसके कारण घरेल वायु प्रदूषण का स्तर काफी बढ़ जाती है। इसमें फाइन पार्टिकल्स जो कई तरह की बीमारियों का कारण बनते है।
भारत के गांवों के घरों में हवा निकलने की पूरी जगह नहीं होती और धुंआ तथा आसपास की हवा फाइन पार्टिकल्स की मात्रा 100 गुना तक बढ़ा देते है। डॉ. विपुल गुप्ता के अनुसार रोग की समय पर पहचान बहुत फायदा दे सकती है और बहुत अच्छे परिणाम मिल सकते है। लेकिन कई लोग अस्पताल जाने में देरी करते है, क्योंकि वे लक्षण नहीं पहचान पाते है।
-बॉबी रमाकांत
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