दुबई के स्थानीय अरब व्यापारी सुहैल मोहम्मद अल-ज़रूनी के सीने में हिंदी और हिंदुस्तान धड़कते हैं. वो बॉलीवुड के दीवाने हैं. हिंदी इतनी साफ़ बोलते हैं कि सुनकर आप कहेंगे, वो भारत के ही हैं.
हाल में दुबई के एक धनी रिहायशी इलाक़े में मैं उनके घर गया. घर क्या ये एक बड़ी हवेली थी, जो चारों तरफ फैली ज़मीन पर बनी हुई है. ड्राइंग-रूम इतना बड़ा था कि उस पर दिल्ली में एक ऊंची इमारत खड़ी की जा सकती है.
ड्राइंग-रूम में पीला रंग छाया हुआ था जिससे ऐसा लगता था कि सभी चीज़ें सोने की बनी हैं. वो खुद भी पीले रंग के अरबी लिबास पहनकर हमसे मिलने आये.
मैंने पूछा आपने हिंदी कहाँ सीखी? जवाब आया, “हमारे काफ़ी इंडियन और पाकिस्तानी दोस्त हैं, हमारे कर्मचारी इंडिया और पकिस्तान के हैं. उनकी वजह से हिंदी सीखी. फिर बॉलीवुड है, रोज़ बॉलीवुड की फ़िल्में देखता हूं जिसकी वजह से भी हिंदी सीख ली.”
दुबई में हिंदी के बगैर काम नहीं चलता
सुहैल मोहम्मद अल-ज़रूनी का सम्बन्ध प्रसिद्ध अरब व्यवसायी परिवार अल-ज़रूनी से है जो दुबई के शाही खानदान के बहुत क़रीब है.
दुबई एक तरह से ज़बानों की खिचड़ी बन कर रह गया है. स्थानीय अरबों की संख्या 20 से 25 प्रतिशत है. बाक़ी सब विदेशी हैं, जिनमें भारतीयों की संख्या 28 लाख है. ऐसे में अरबों को अपनी ज़बान को खो देने का डर नहीं लगता?
अल-ज़रूनी कहते हैं, “नहीं, हर जगह अरबी है. अरबी प्रथम भाषा है. आप स्कूल और कॉलेज में चले जाएँ, सरकारी दफ्तरों में चले जाएँ इंग्लिश जितनी भी बोली जाए, मगर अरबी नंबर वन है. हम अरबों की खूबी ये है कि हम जहाँ जाते हैं अपनी संस्कृति नहीं भूलते, अपनी ज़बान और लिबास नहीं भूलते.”
हिंदी और उर्दू को बढ़ावा देने वाले भारतीय मूल के पुश्किन आग़ा कहते हैं कि इस देश में हिंदी के बग़ैर काम नहीं चलता.
उनके मुताबिक, “हिंदी और उर्दू यहाँ बहुत पहले से बोली जाती है. कई स्थानीय अरब हिंदी बोलते हैं. अल-ज़रूनी जैसे लोग हिन्दी और उर्दू साहित्य में भी दिलचस्पी रखते हैं. हम यहाँ कामयाब कवि सम्मेलन कराते हैं.”
‘कभी दुबई में भारतीय रुपया चलता था’
वैसे हिंदी से दुबई का लगाव सालों पुराना है. अल-ज़रूनी कहते हैं, “1971 में संयुक्त अरब अमीरात बनने से पहले से दुबई इंडिया से काफ़ी क़रीब था. यहाँ इंडिया का रुपया भी चलता था, इंडिया का स्टाम्प भी चलता था और नावों से इंडिया के साथ इम्पोर्ट-एक्सपोर्ट का व्यापार भी होता था.”
उनके अनुसार भारत के इसी प्रभाव के कारण पुराने अरब, जिनमें उनके पिता और दादा भी शामिल हैं, हिंदी बोला करते थे.
व्यापारी अल-ज़रूनी यहाँ की रॉयल फ़ैमिली के क़रीब हैं और दुबई में 250 घरों के मालिक. खिलौने वाले मॉडल गाड़ियों की 7,000 गाड़ियाँ जुटाकर गिनीज़ बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकॉर्ड में अपना नाम भी दर्ज करा चुके हैं.
उन्हें भारत से गहरा लगाव है. वो भारत की प्राचीन सभ्यता से प्रभावित हैं और दुनिया में इसके बुलंद होते मुक़ाम के क़ायल भी हैं.
वो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भी प्रभावित हैं. मोदी 2015 में अमीरात का 34-35 सालों में दौरा करने वाले पहले भारतीय प्रधानमंत्री थे.
अल-ज़रूनी के अनुसार, मोदी का दौरा अमीरात के लोगों के लिए एक गर्व की बात थी, “हमारे लिए ये एक बहुत बड़ी बात थी इसलिए हम लोगों ने भी उनकी खूब देख-भाल की.”
दुबई में दिवाली देखने लायक
अल-ज़रूनी भारत के बहु-धार्मिक संस्कृति की तारीफ़ करते नहीं थकते लेकिन साथ ही पिछले कुछ सालों की घटनाओं से वो चिंतित नज़र आते हैं.
वो भारतीयों से कहते हैं, “आप अपने दिमाग़ में पहले ये रख लें कि आप सबसे पहले इंडियन हैं. धर्म बाद में.”
वो आगे कहते हैं कि उनके देश में सभी धर्मों की इज़्ज़त होती है, “बहुत से लोग ये कहते हैं कि अरब किसी इंडियन से नहीं मिलते, किसी हिन्दू से नहीं मिलते, किसी दूसरे मज़हब वालों से नहीं मिलते लेकिन ये ग़लत है. हम तो होली भी मनाते हैं, दिवाली और डांडिया भी करते हैं. भारत के बाद सबसे धूमधाम से दिवाली दुबई में ही मनाई जाती है.”
अल-ज़रूनी स्वयं स्वीकार करते हैं कि वो बॉलीवुड के दीवाने हैं और बॉलीवुड की फ़िल्में रोज़ देखते हैं और अक्सर सिनेमा हाल में जाकर फ़िल्में देखते हैं.
वो कपूर खानदान से सबसे अधिक प्रभावित हैं, “अगर मुझे इंडिया इजाज़त दे तो मैं कहूंगा कि कपूर खानदान बॉलीवुड की रॉयल फैमिली है.”
वो आगे कहते हैं कि कपूर खानदान की ये इज़्ज़त उनके नाम के कारण नहीं बल्कि टैलेंट के कारण है, जिसमें नई पीढ़ी भी शामिल है.
आने वाली नस्ल भी हिंदी सीखे
अल-ज़रूनी को इस बात से मायूसी होती है कि भारत के लोग हिंदी के बजाय अंग्रेजी बोलना पसंद करते हैं.
वो कहते हैं, “मैं ऐसे लोगों से निवेदन करूंगा कि अगर मैं अमीरात का अरब होकर हिंदी-उर्दू बोल लेता हूँ तो आपका ये फ़र्ज़ बनता है कि आप अपने बच्चों को अपनी भाषा सिखाएं.”
अल-ज़रूनी चाहते हैं कि अरबों की आने वाली नस्ल भी उन्हीं की तरह हिंदी बोले. वो कहते हैं कि अरबों की नई पीढ़ी हिंदी समझती है, लेकिन बोलती नहीं.
उसका कारण ये है कि अब बॉलीवुड की फ़िल्में अरबी में डब की जाती हैं जिससे हिंदी समझने की ज़रूरत नहीं और दूसरा कारण ये है कि नई नस्ल अब पश्चिमी देशों में पढ़ने जाती है जहां से वो अंग्रेजी सीख कर आती है.
तो क्या अल-ज़रूनी अपने बच्चों को हिंदी सिखा रहे हैं? उनका कहना है वो ज़बरदस्ती नहीं करना चाहते, लेकिन वो चाहते हैं कि उनके बच्चे भी हिंदी सीखें.
-ज़ुबैर अहमद
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