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Friday 23 February 2018

‘इन्वेस्टर्स समिट’ बीजेपी सरकारों का खाओ-पकाओ का एक अच्छा साधन—मायावती

लखनऊ। बी.एस.पी. की राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती ने कहा है कि ‘इन्वेस्टर्स समिट’ अर्थात उद्योगपतियोंं का सम्मेलन आयोजित कराना वर्तमान में एक ऐसा फैशन हो गया है जिसके नाम पर ख़ासकर बीजेपी सरकारें सरकारी धन पानी की तरह बहाती हैं जबकि जनता के इसी गाढ़ी कमाई के धन से ग़़रीबों, मजदूरों व बेरोजगार युवाओं को बड़ी राहत व जनता के असली हित व कल्याण के अनेक महत्त्वपूर्ण काम तत्काल किये जा सकते थे। साथ ही इससे लाखों किसानों के सर से कर्ज की मुक्ति मिल सकती थी।

उन्होंने कहा कि जनता को यह लगने लगा है कि ‘इन्वेस्टर्स समिट’ सरकार की अपनी अन्य घोर विफलताओं पर से लोगों का ध्यान बांटने का एक माध्यम बनने के साथ-साथ बीजेपी की सरकारों द्वारा यह खाओ-पकाओ का एक अच्छा साधन भी बन गया लगता है। मायावती ने अपने बयान में कहा कि महाराष्ट्र आदि कई अन्य राज्यों के बाद अब उत्तर प्रदेश में बीजेपी की सरकार पर भी ‘इन्वेस्टर्स समिट’ का बुख़ार चढ़ गया है। इसे ही सबसे बड़ी जनसेवा व विकट जनससमयाओं का हल मानकर पूरी सरकार ही इसमें काफी व्यस्त रही है तथा सरकारी धन को भी पानी की तरह इसके प्रचार व प्रसार पर बेहिसाब-किताब ख़र्च किया गया है। उन्होंने कहा कि यह एक सर्वव्यापी सच है कि जिस भी देश व प्रदेश में अपराध-नियंत्रण व कानून-व्यवस्था की हालत अच्छी नहीं होती है वहाँ कोई भी उद्योगपति उद्योग-धंधा लगाना घाटे का सौदा समझता है।

मायावती ने कहा कि इस बात की पूरी आशंका है कि जनता की गाढ़ी कमाई का अरबों रूपया खर्च करके हुआ यह ‘इन्वेस्टर्स समिट’ राजनीतिक अखाड़ेबाजी के साथ-साथ ‘शो बाजी’ ही मात्र बनकर रह जायेगा। कहा कि सरकार कई लाख करोड़ रूपये के एम.ओ.यू. के हस्ताक्षर होने का ढिंढोरा पीटकर जनता को फिर से वरग़लाने का प्रयास कर रही है क्योंकि एम.ओ.यू. की हैसियत अब एक सादे काग़ज से ज़्यादा कुछ भी नहीं रह गया है। एक उद्योगपति बीजेपी नेताओं को खुश करने के लिये आखिर एक साथ कितने बीजेपी-शासित राज्य में कारखाने लगायेंगा?

इसीलिए उत्तर प्रदेश बीजेपी सरकार को अन्य बीजेपी सरकारों का अंध अनुसरण करके कई सौ करोड़ों रूपये फिजूल में खर्च करके ‘इन्वेस्टर्स समिट’ करने से पहले प्रदेश की कानून-व्यवस्था को खूब चुस्त-दुरूस्त करके उत्तर प्रदेश में सुरक्षा का अच्छा वातावरण पैदा करना चाहिये था। वैसे भी क्या केवल सैकड़ों पुलिस इन्काउन्टरों के बल पर कानून-व्यवस्था की स्थिति को बेहतर किया जा सकता है?

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