नई दिल्ली। देश के लिये ओलंपिक मेडल जीतने के बाद खिलाड़ी रातो रात स्टार बन जाते हैं। इसके साथ खिलाडियों को पर पैसो की भी बरसात होने लगती हैं। लेकिन मध्यप्रदेश की सीता साहू के साथ ऐसा नहीं हुआ।
वर्ष 2011 में हुये स्पेशल ओलंपिक में देश को 2 ब्रॉन्ज मेडल जीताने वाले साहू अपनी माँ और भाई के साथ मध्यप्रदेश के रीवा में गोलगप्पे बेचने को मजबूर हैं। 15 साल की उम्र में ओलिंपक में मेडल हासिल करने वाली सीता साहू के नाम से खुद खेल प्रेमी अंजान हैं। मध्य प्रदेश के रीवा जिले में जन्मी सीता अपनी पहचान के लिए मुहंताज हैं। जी हां, वैसे तो हमारे देश में अगर एक बार कोई भी विदेश में जाकर मेडल जीतकर लाए तो नाम, शोहरत और बुलंदी उसके कदम चूमती हैं। वहीं सीता का नाम अब पूरी तरह से गुमनामी के अंधेरे में है।
2011 में एथेंस ओलपिंक में 200 मीटर और 1600 मीटर रिले रेस में ब्रॉन्ज मेडल जीतकर देश को गौरवान्वित करने वाली सीता की हालत अब कुछ खास ठीक नहीं है। उन्होंने 2011 में स्पेशल समर ओलपिंक गेम्स के दौरान 2 मेडल जीते थे। एथेंस में उन्होंने 15 दिनों में जो देखा वह किसी सपने से कम नहीं था। 15 साल की उम्र में पदक जीतने पर भी सीता को मीडिया में ज्यादा कवरेज नहीं मिली थी।
मेडल जीतने के बाद शिवराज सरकार ने उन्हें 1 लाख रुपए देने के बाद किया था लेकिन बाद में उन्हें इनामी राशि महैया नहीं कराई गई। लिहाजा इसके बाद सीता की मां ने उन्हें घर में गोलगप्पे बनाने की ट्रेनिंग दी। उन्होंने सीता को आटे और सूजी के गोलगप्पे बनाना सिखाया और वह दुकान चलाने लगीं। वह हर दिन 150-200 रुपए की कमाई करती थीं। सीता के पिता की सेहत भी ठीक नहीं रहती जिसके चलते उन्हें स्कूल भी छोड़ना पड़ा था। वह गोलगप्पे बेचकर ही अपने परिवार का गुजारा करने लगी थीं लेकिन अब उनका परिवार इस दुकान को चला रहा है।
2013 में मिली सरकार से मददः एक गरीब श्रमिक परिवार से ताल्लुख रखने वाली सीता मानसिक रूप से असंतुलित हैं उसके वाबजूद भी वह देश का गौरव हैं। 2013 में सीता को शिवराज सरकार ने इनामी राशि दी।
2013 में राज्य सरकार ने NTPC के साथ मिलकर सीता को 5 लाख रूपए दिए। सरकार की सहायता के बाद सीता अपने सभी भाई-बहनों सहित स्कूल जाने लगी हैं। सीता उस दौरान सीता मीडिया में काफी नजर आईं जब वह पहली बार वह अपने दोस्तों के साथ शिवराज चौहान के घर पर चाय के लिए आमंत्रित की गयी। अब सीता के परिवार की स्थिति बेहतर हुई उसने फिर से अपनी प्रैक्टिस पर ध्यान देना शुरु किया है।
मानिसक रूप से असंतुलित हैं सीता: सीता से अगर बात करेंगे तो वह काफी धीमे से बात करती हैं और उत्तर देती हैं। सीता अब घर पर ही दौड़ के लिए प्रैक्टिस करती हैं। सीता के भाई धर्मेंद्र ने कहा कि भले ही सरकार ने सीता को 9 लाख रुपए की सहायता दी है लेकिन अभी दौड़ की प्रैक्टिस वह खुद से कर रही हैं सरकार कोई खास ध्यान नहीं दे रही। वह घर पर ही मैदान में दौड़ लगाती हैं। सीता का परिवार चाहता है कि सीता को आगे की रेस में भाग लेना है इसलिए वह डेली रनिंग प्रैक्टिस करती हैं लेकिन अगर सरकार उनकी ओर थोड़ा और ध्यान दे तो वह देश का नाम फिर से रोशन कर सकती हैं।
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