*राम और हनुमान की राजनीति में गवाॅयी सत्ता
*पाँच राज्यों के चुनावी नतीजे भाजपा पर पड़े भारी
*मोदी और योगी के जुमलों को नकारा दिया जनता ने
अशोक सिंह विद्रोही /कर्मवीर त्रिपाठी
अली और बजरंगबली को लेकर चुनावी सीगूफो छोड़ने के बावजूद योगी का जादू भाजपा को सत्ता की वापसी नहीं करा पाया। सूबे के मुखिया योगी आदित्यनाथ पांच राज्यों के चुनाव प्रचार के दौरान भाजपा के स्टार प्रचारक थे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बाद योगी की मांग मध्य प्रदेश से लेकर तेलंगाना तक में रही । योगी की 70 धुआंधार रैलियों का महामंत्र भी भाजपा की नैया को पार कराने में कामयाब नहीं हो सका।
तीन हिंदी भाषी राज्य मध्य प्रदेश, राजस्थान व छत्तीसगढ़ समेत तेलंगाना तथा मिजोरम का चुनावी नतीजा सत्ताधारी दल भाजपा के विरुद्ध गया है। महज एक फीसद से भी कम मत प्रतिशत से मोदी और योगी की चुनावी प्रबंधन टीम के सारे जतन धरे के धरे रह गए । हालांकि तीनों राज्यों की जनता ने कांग्रेस को वोट देने में मत प्रतिशत के लिहाज से कंजूसी भी दिखायी। बावजूद इसके कांग्रेस ने बेहतर प्रदर्शन कर भाजपा से तीनों राज्य झटक लिए। पार्टी के चाणक्य कहे जाने वाले अमित शाह द्वारा यूपी के 51 फ़ीसदी मत के लक्ष्य को तीनों राज्यों ने लगभग 38 प्रतिशत पर थाम दिया है । ऐसे में अगले 50 साल तक सत्ता में रहने का सपना भगवा पार्टी के लिए दूर की कौड़ी है । सूबे के मुखिया योगी आदित्यनाथ को पार्टी ने खास रणनीति के तहत नाथ संप्रदाय के अनुयायियों सहित दलित और आदिवासी मतदाताओं को साधने के लिए लगाया । अपनी 70 जन सभाओं के माध्यम से योगी ने धुआंधार प्रचार किया। जनसभाओं में खूब भीड़ उमड़ी। योगी की मांग मध्यप्रदेश से लेकर तेलंगाना तक रही। उन्होंने अपनी सभी रैलियों में यूपी के विकास, इन्वेस्टर सम्मिट, कुंभ 2019 से लेकर अली और बजरंगबली तक का मुद्दा उछाला। इन सारे राजनीतिक दांव पेचों के बाद भी भाजपा की तीनों सरकारों की विदाई सत्ता से हो गयी। राहुल गांधी के अध्यक्षीय कार्यकाल का एक वर्ष भी पूरा हो गया है। उन्हें अब मोदी के विकल्प के रूप में मान्यता देना अन्य दलों पर निर्भर करता है।
पांच राज्यों के नतीजे भले ही मोदी के विरुद्ध नहीं रहे हो परंतु योगी आदित्यनाथ के मंत्रिमंडल की पूरी टीम के लिए आगामी आमचुनाव 2019 के यूपी चुनाव को लेकर किसी खतरे से कम नहीं है । महज शहरो का नाम बदल कर या हनुमान की जाति पर राजनीति कर उत्तर प्रदेश के 80 लोकसभा सीटों में 51फीसदी मत प्रतिशत की प्राप्ति की राहें काॅटों भरी हैं।
राजनीतिक पंडितों का मानना है कि राम मंदिर का राग और विहिप के सारे खटराग चुनावी माहौल को रंग देने के लिए ही रचाये जिसके सूत्रधार के रूप में योगी महत्वपूर्ण कड़ी साबित हुए।
पाॅच राज्यों में से तीन लम्बे समय से भजपा शासित तीन राज्यों के चुनावी नतीजे जहां एक तरफ कांग्रेस के लिए संजीवनी का काम करने वाले है तो वहीं गठबंधन का अलग डमरु बजा रहे सपा और बसपा के सर्कस पर भी असर छोड़ेंगे। योगी जी को भी अब जुमले बाजी और फरमानों की बौछार वाली आदत से निकल कर ठोस जमीनी काम और कानून व्यवस्था के मुद्दे पर ध्यान देना होगा । नहीं तो आगामी 2019 का लोकसभा चुनाव मोदी और योगी के लिए नए गुल खिला सकता है।
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