डॉ. वैदिक ने उठाया सवाल, आखिर रफाल-सौदे के बारे में क्यों फूल रहे हैं आपके हाथ-पांव? | Alienture हिन्दी

Breaking

Post Top Ad

X

Post Top Ad

Recommended Post Slide Out For Blogger

Thursday 9 May 2019

डॉ. वैदिक ने उठाया सवाल, आखिर रफाल-सौदे के बारे में क्यों फूल रहे हैं आपके हाथ-पांव?

नई दिल्ली। रफाल-सौदे के बारे में सरकार ने अदालत के सामने जो तर्क पेश किए हैं, वे बिल्कुल लचर हैं। वे सरकार की स्थिति को कमजोर करते हैं। सरकार का कहना है कि अरुण शौरी, यशवंत सिंहा और प्रशांत भूषण ने जो याचिका सर्वोच्च न्यायालय में लगाई है, वह रद्द की जानी चाहिए क्योंकि एक तो वह रक्षा-सौदे की गोपनीयता भंग करती है, दूसरा वह गुप्त सरकारी दस्तावेजों की चोरी पर आधरित है और तीसरा वह सरकार की संप्रभुता पर प्रश्न-चिन्ह लगा देती है। इन तर्कों से मोटा-मोटी क्या ध्वनि निकलती है कि दाल में कुछ काला है, वरना सांच को आंच क्या?

जो भी गोपनीय दस्तावेज ‘हिन्दू’ अखबार ने प्रकाशित किए हैं, क्या उनसे हमारा कोई सामरिक रहस्य भारत के दुश्मनों के सामने प्रकट होता है? बिल्कुल नहीं। इन दस्तावेजों से तो सिर्फ इतनी बात पता चलती है कि 60 हजार करोड़ रुपए का सौदा करते समय रक्षा मंत्रालय को पूरी छूट नहीं दी गई थी। उसके सिर के ऊपर बैठकर प्रधानमंत्री और उनका कार्यालय फ्रांसीसी कंपनी दासौ और सरकार के साथ समानांतर सौदेबाजी कर रहे थे।

प्रधानमंत्री और उनका कार्यालय किसी भी सरकारी सौदे पर निगरानी रखें, यह तो अच्छी बात है, लेकिन इस अच्छी बात के उजागर होने पर आपके हाथ-पांव क्यों फूल रहे हैं? आप घबरा क्यों रहे हैं? हमारे प्रधानमंत्री और फ्रांसीसी राष्ट्रपति ने इस सौदे की घोषणा एक साल पहले ही 2015 में कर दी थी। इसकी औपचारिक स्वीकृति तो कैबिनेट कमिटी ऑन सिक्योरिटी ने 24 अगस्त 2016 को की थी। उस बीते हुए एक साल में फ्रांसीसी राष्ट्रपति की प्रेमिका को अनिल अंबानी की कंपनी ने एक फिल्म बनाने के लिए करोड़ों रुपए भी दिए थे। आरोप है कि बदले में इस सौदे में उसे भागीदारी भी मिली है।

यदि इस सब गोरखधंधे से सरकार का कुछ लेना-देना नहीं है तो वह रफाल-सौदे पर खुली बहस क्यों नहीं कराती? वह डरी हुई क्यों है? सरकार से उसकी सौदेबाजी पर यदि जनता हिसाब मांगती है तो इसमें उसकी संप्रभुता का कौन सा हनन हो रहा है? वह जनता की नौकर है या मालिक है? अदालत ने उन दस्तावेजों की गोपनीयता का तर्क पहले ही रद्द कर दिया है। अब चुनाव के इस आखिरी दौर में यदि जजों ने कोई दो-टूक टिप्पणी कर दी तो मोदी के भविष्य पर गहरा असर होगा। जैसे राजीव गांधी पर बोफोर्स की तोपें अभी तक गड़गड़ाती रहती हैं, रफाल के विमानों की कानफोड़ू आवाज़ चुनाव के बाद भी गूंजती रहेंगी।

No comments:

Post a Comment

Post Top Ad