रणवीर सेना सुप्रीमो की हत्या के बाद विलुप्त हो गया 1897 निर्मित उक्त रायफल!
>> नक्सलियों द्वारा किसानों के जमीन पर लगाये गये प्रतिबंध के बाद मैदान में उतरा था रणवीर सेना
>> गोलीबारी में तीन नक्सलियों को मार गिराया था रणवीर सेना सुप्रीमो ने, फिर शुरू हुई खेती
>> बरमेश्वर मुखिया से प्रभावित हो छुट्टी पर आएं सेना के जवान ,संगठन में देते थे सेवा
रवीश कुमार मणि
पटना ( अ सं ) । नब्बे की दशक की गौर करें तो बिहार के गांव स्तर में सामानांतर जंग जैसी स्थिति रही थीं । आपसी सदभाव और शांति खत्म हो गया था। हकमारी के सवाल पर कानून /सरकार पीछे समाज में हथियार हावी हो गया था। जाति का अस्तित्व बचाने के लिए ,या कहें तो वर्चस्व की लड़ाई में इंसानों का जनसंहार आम हो गया था। आईपीएफ, संग्राम समिति ,एमसीसी आदी हथियारबंद संगठन बनें । किसानों के जमीन पर खेती करने से प्रतिबंध लगने लगे । सुरक्षा और रोजगार को लेकर गांव में रहने वाले हजारों परिवार सबकुछ छोड़कर शहरों में पनाह लिये । समाज में फैले अशांति और भय के वातावरण के बीच सन 1994 में किसानों की हीत को लेकर रणवीर सेना नामक हथियारबंद संगठन का उदय हुआ और इसके सुप्रीमो बनें भोजपुर जिले के खोपीरा गांव निवासी बरमेश्वर मुखिया । बरमेश्वर मुखिया के नेतृत्व में रणवीर सेना ने बदले की आग में एक के बाद एक दर्जनों नरसंहार किये । जेल से छूटने के बाद रणवीर सेना सुप्रीमो बरमेश्वर मुखिया ने हथियार छोड़ दिया और किसान-मजदूरों की हित और एकता की बात करने लगे तो 1 जून 2012 को अहले सुबह टहल रहे आरा टाउन में गोली मारकर हत्या कर दिया गया ।जबतक बरमेश्वर मुखिया ,हथियार थामे रहे किसी का हाथ नहीं लगने दिया । इनसे जुड़े और साये के साथ रहे वृद्ध श्री सिंह जो बातें सुनाई उसको रख रहा हूं ।
गोलीबारी में फौजी की हत्या के बाद बरमेश्वर ने रायफल उठाकर ललकारा, और मार गिराया तीन
पटना जिले के नौबतपुर था क्षेत्र के तरारी गांव निवासी किसान अरूण सिंह के जमीन पर नक्सलियों ने प्रतिबंध लगा दिया था और लाल झंडा गाड़ धमकी दिया की जो भी व्यक्ति किसान अरूण सिंह को सहयोग करेगा उसका अंजाम बुरा होगा । किसान अरूण सिंह ने रणवीर सेना संगठन में अपनी बात रखी और सुरक्षा की गुहार लगाया ।संगठन सुप्रीमो ने मदद करने का दिलासा दिलाया और फिर मैदान में उतर गये । तरारी गांव का बधार बना रणक्षेत्र। दो तरफ से नक्सलियों की बड़ी ताकत थी तो एक तरफ से बरमेश्वर मुखिया अपने 12 जवानों के साथ मोर्चा संभाले हुये थे। किसान अरूण सिंह के प्रतिबंधित खेतों पर कार्य शुरू हुआ की दोनों तरफ से गोलीबारी शुरू हो गयी । दिन-दहाड़े ,हजारों राउंड गोलीबारी से इलाका थर्रारा गया । पुलिस तमाशाबीन बनी रही ,समीप जाने की हिम्मत नहीं जुटा पायी ।
रणवीर सेना में शामिल एक फौजी एसएलआर थामे नक्सलियों से लोहा ले रहा था ,अति उत्साह में मोर्चा को छोड़ खड़ा होकर गोली चलाने लगा की नक्सलियों की गोलियों का फौजी शिकार हो गया । फौजी को जमीन गिरते देख रणवीर सेना सुप्रीमो बरमेश्वर मुखिया ने अपने पसंदीदा और भरोसेमंद राइफल 256 मैग मिनर सुनर जैपनिज ( आरसिका टाइप 99 शॉट राइफस) को थामा और नक्सलियों पर ताबड़तोड़ फायरिंग शुरू कर दिया । 1897 निर्मित 2600 गज की दूरी तक मार करने वाला उक्त राइफल से बरमेश्वर मुखिया ने तीन नक्सलियों /दुश्मनों का मार गिराया और एसएलआर लिये दुश्मन संगठन को पीछे खदेड़ दिया । प्रत्यक्षदर्शियों की मानें फौजी साथी की हत्या के बाद बरमेश्वर मुखिया पर खून सवार हो गया था अगर दुश्मन नहीं भागते तो लाशों की ढेर लग गयी होती । दोनों तरफ से कई की हत्या के बाद किसान अरूण सिंह का प्रतिबंधित जमीन मुक्त हुआ ।
सुप्रीमो की हत्या के बाद भरोसेमंद राइफल हो गया विलुप्त
रणवीर सेना सुप्रीमो बरमेश्वर मुखिया का 256 मैग मिनर सुनर राइफल से गहरा रिश्ता था। इसका मुख्य कारण यह रहा था की उक्त राइफल द्वितीय विश्व युद्ध सन1947 में जापान आर्मी ने अपनी सेना से अलग कर दिया था। बरमेश्वर मुखिया का जन्म आजादी के साल 1947 में हुआ था। बरमेश्वर मुखिया ,संगठन को चलाने के लिए स्वेच्छा रूपी चंदा में रूपये लेते थे साथ ही हथियारों की मांग की मांग करते थे। अपने जात-जमात के लोगों से अपील करते थे की फौज से छुट्टी लेकर आएं तो संगठन में सेवा दें।
सुप्रीमो बरमेश्वर मुखिया से प्रभावित होकर बराह के एक किसान ने उक्त राइफल संगठन को दे दिया था। बरमेश्वर मुखिया की हत्या के बाद यह राइफल विलुप्त हो गया । सुत्रों की मानें तो धनवाद के एक कोयला व्यवसायी ने संगठन को दर्जनों अत्याधुनिक हथियार और करोड़ों रूपये चंदा में दिये थे।उंचे ओहदे पर बैठे लोग भी अपने जाति का अस्तित्व और इज्जत बचाने के नाम पर बरमेश्वर मुखिया से प्रभावित होकर करोड़ों रूपये चंदा देने का काम करते थे। कई वकील मुक्त में रणवीर सेना का केस लड़कर अपना योगदान देते थे।
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