मां दुर्गा के 51 शक्तिपीठों में से सबसे महत्वपूर्ण कामाख्या देवी के दरबार में दुनियाभर में प्रसिद्ध अंबुबाची मेला 22 जून से शुरू हो रहा है, जो तीन दिन तक चलेगा। इस मेले में दुनिया भर के तांत्रिक तंत्र साधना और सिद्धियों के लिए यहां उपस्थित होते हैं। ऐसी मान्यता है कि जो तंत्र साधना कहीं पूरी नहीं होती है, वह इस मेले के दौरान मां कामाख्या के दरबार में पूर्ण होती है। भक्त माता से जो भी प्रार्थनाएं करते हैं, वह जरूरी पूरी है।
कामाख्या मंदिर की महिमा
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान विष्णु ने जब देवी सती के शव को अपने सुदर्शन चक्र से काटा, तो उनके शरीर के 51 हिस्से धरती पर गिरे। वे टुकड़े जहां-जहां पर गिरे, वहां-वहां देवी के शक्तिपीठ स्थापित हुए। माता के योनी का भाग जहां पर गिरा, वह कामरूप कहलाया, जो कामाख्या शक्तिपीठ के नाम से दुनियाभर में प्रसिद्ध है। यह मंदिर असम के गुवाहाटी में है। देवी का मंदिर तंत्र साधना के लिए ही प्रसिद्ध है।
प्रसाद की वजह से मेले का नाम पर पड़ा अंबुबाची
अंबुबाची मेला 22 जून से शुरू होकर 25 जून तक चलेगा। 26 जून को प्रसाद वितरण होता है। ऐसी मान्यता है कि मेले के दौरान कामाख्या देवी के मंदिर के कपाट स्वयं बंद हो जाते हैं। तीन दिन तक माता रजस्वला रहती हैं। चौथे दिन देवी के स्नान पूजा के बाद मंदिर के कपाट खुल जाते हैं और भक्तों को प्रसाद वितरण होता है। भक्तों को प्रसाद स्वरूप गीला कपड़ा मिलता है, जो अंबुबाची वस्त्र कहलाता है।
कहा जाता है कि माता जब रजस्वला होती हैं तो मंदिर के अंदर श्वेत वस्त्र बिछाते हैं, तीन दिन बाद वह वस्त्र लाल हो जाता है। उसे ही भक्तों को प्रसाद स्वरूप बांटा जाता है। यह प्रसाद जिसे मिलता है, उसके सभी कष्ट दूर हो जाते हैं।
भैरव के दर्शन के बिना अधूरी है यात्रा
जिस तरह से माता वैष्णव देवी के दर्शन के बाद काल भैरव का दर्शन जरूरी है, वैसे ही कामाख्या देवी के दर्शन के बाद उमानंद भैरव का दर्शन अनिवार्य माना जाता है। उमानंद भैरव के दर्शन के बिना कामाख्या देवी की यात्रा अधूरी मानी जाती है।
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