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Sunday, 9 June 2019

Kubja And Krishna Story | कुब्जा और कृष्ण का अनंत प्रेम

Kubja And Krishna Story In Hindi | कंस की नगरी मथुरा में कुब्जा नाम की स्त्री थी, जो कंस के लिए चन्दन, तिलक तथा फूल इत्यादि का संग्रह किया करती थी।

Kubja And Krishna Story

कंस भी उसकी सेवा से अति प्रसन्न था। जब भगवान श्रीकृष्ण कंस वध के उद्देश्य से मथुरा में आये, तब कंस से मुलाकात से पहले उनका साक्षात्कार कुब्जा से होता है।

बहुत ही थोड़े लोग थे, जो कुब्जा को जानते थे। उसका नाम कुब्जा इसलिए पड़ा था, क्योंकि वह कुबड़ी थी।

जैसे ही भगवान श्रीकृष्ण ने देखा कि उसके हाथ में चन्दन, फूल और हार इत्यादि है और बड़े प्रसन्न मन से वह लेकर जा रही है। तब श्रीकृष्ण ने कुब्जा से प्रश्न किया- “ये चन्दन व हार फूल लेकर इतना इठलाते हुए तुम कहाँ जा रही हो और तुम कौन हो?”

कुब्जा ने उत्तर दिया कि- “मैं कंस की दासी हूँ। कुबड़ी होने के कारण ही सब मुझको कुब्जा कहकर ही पुकारते हैं और अब तो मेरा नाम ही कुब्जा पड़ गया है।

मैं ये चंदन, फूल हार इत्यादि लेकर प्रतिदिन महाराज कंस के पास जाती हूँ और उन्हें ये सामग्री प्रदान करती हूँ। वे इससे अपना श्रृंगार आदि करते हैं।”

श्रीकृष्ण ने कुब्जा से आग्रह किया कि- “तुम ये चंदन हमें लगा दो, ये फूल, हार हमें चढ़ा दो”। कुब्जा ने साफ इंकार करते हुए कहा- “नहीं-नहीं, ये तो केवल महाराज कंस के लिए हैं।

मैं किसी दूसरे को नहीं चढ़ा सकती।” जो लोग आस-पास एकत्र होकर ये संवाद सुन रहे थे व इस दृश्य को देख रहे थे, वे मन ही मन सोच रहे थे कि ये कुब्जा भी कितनी जाहिल गंवार है।

साक्षात भगवान उसके सामने खड़े होकर आग्रह कर रहे हैं और वह है कि नहीं-नहीं कि रट लगाई जा रही है। वे सोच रहे थे कि इतना भाग्यशाली अवसर भी वह हाथ से गंवा रही है।

बहुत कम लोगों के जीवन में ऐसा सुखद अवसर आता है। जो फूल माला व चंदन ईश्वर को चढ़ाना चाहिए वह उसे न चढ़ाकर वह पापी कंस को चढ़ा रही है।

उसमें कुब्जा का भी क्या दोष था। वह तो वही कर रही थी, जो उसके मन में छुपी वृत्ति उससे करा रही थी।

भगवान श्रीकृष्ण के बार-बार आग्रह करने और उनकी लीला के प्रभाव से कुब्जा उनका श्रृंगार करने के लिए तैयार हो गई।

परंतु कुबड़ी होने के कारण वह प्रभु के माथे पर तिलक नहीं लगा पा रही थी। श्रीकृष्ण उसके पैरों के दोनों पंजों को अपने पैरों से दबाकर हाथ ऊपर उठवाकर ठोड़ी को ऊपर उठाया, इस प्रकार कुब्जा का कुबड़ापन ठीक हो गया।

अब वह श्रीकृष्ण के माथे पर चंदन का टीका लगा सकी। कुब्जा के बहुत आमन्त्रित करने पर कृष्ण ने उसके घर जाने का वचन देकर उसे विदा किया।

कालांतर में कृष्ण ने उद्धव के साथ कुब्जा का आतिथ्य स्वीकार किया। कुब्जा के साथ प्रेम-क्रीड़ाएँ भी कीं।

कुब्जा ने कृष्ण से वर मांगा कि वे चिरकाल तक उसके साथ वैसी ही प्रेम-क्रीड़ा करते रहें।

आचार्य डा.अजय दीक्षित “अजय”

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