नई दिल्ली। जब आप किसी अरबों डॉलर की प्रौद्योगिकी कंपनी के मुख्य कार्यकारी बनते हैं, तो आपको पता है कि कुछ दबाव झेलना होगा। लेकिन विशाल सिक्का को तीन साल पहले इन्फोसिस से जुडऩे के समय कतई यह उम्मीद नहीं रही होगी कि उन्हें लगातार हमले और आधारहीन आरोपों की बौछार भी झेलनी होगी। सिक्का 2014 में इन्फोसिस के पहले गैर संस्थापक सीईओ बने थे। उस समय इन्फोसिस संकट में थी और उनका काफी शानदार स्वागत हुआ था। उन्होंने एस डी शिबूलाल का स्थान लिया था।
उस समय इन्फोसिस की प्रतिद्वंद्वी कंपनियां तेजी से आगे बढ़ रही थीं और कंपनी का श्रमबल घट रहा था। इन्फोसिस में सिक्का पर सभी की निगाह थी क्योंकि उन्होंने करीब तीन दशक पुरानी कंपनी की बागडोर संभाली थी। उनके प्रवेश के साथ इन्फोसिस में प्रवर्तकों की अगुवाई वाले नेतृत्व का दौर समाप्त हुआ था।सिक्का जिस समय इन्फोसिस में आए थे तो उनके साथ एन आर नारायणमूर्ति तथा इन्फोसिस के अन्य सह संस्थापकों का आशीर्वाद था। तीन साल बाद स्थिति बदल चुकी है। मूर्ति उनके आलोचक बन चुके हैं।
दस अरब डॉलर की आईटी कंपनी से सिक्का के अचानक विदाई लेने की यह एक प्रमुख वजह है।शुरआत से ही सिक्का के लिए कठिन चुनौती थी। कंपनी के कर्मचारी इन्फोसिस छोड़-छोडक़र जा रहे थे। सैप के पूर्व बोर्ड सदस्य सिक्का को आटोमेशन और आर्टिफिशल इंटेलिजेंस लाने का श्रेय जाता है, जो आज आईटी उद्योग में प्रमुखता से छाया हुआ है।सिक्का ने कई कदम उठाए। अच्छा प्रदर्शन करने वालों को आईफोन भेंट दिया। कंपनी की वित्तीय स्थिति में सुधार किया। उन्होंने इन्फोसिस कर्मियों के समक्ष 2020 तक 20 अरब डॉलर की आमदनी का लक्ष्य रखा।
बेंगलुर की कंपनी ने पिछले तीन साल में कई निवेश और अधिग्रहण किए। इनमें स्कावा, नोह कंसल्टिंग और पनाया शामिल हैं। सिक्का ने ऐसे समय कंपनी से इस्तीफा दिया है जबकि एक दिन बाद इन्फोसिस के निदेशक मंडल को 13,000 करोड़ रपये की शेयर पुनर्खरीद पेशकश पर विचार करना है। अगले कुछ माह के दौरान इन्फोसिस नए सीईओ की तलाश करेगी। इस दौरान सिक्का एक डॉलर का सांकेतिक वेतन लेंगे। पहले उनका पैकेज 1.1 करोड़ डॉलर था। अभी सिक्का के पास कोई नया काम नहीं है। उन्होंने कहा है कि वह कुछ समय का ब्रेक लेंगे।
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