जहां पूरे देश में दशहरे पर रावण का पुलता जलाकर बुराई पर अच्छाई की जीत को मनाया जाता है वहीं बंगाल में माता की विदाई लोगों की आंखों का नम कर देती है.
‘आसचे बोछोर अबार होबे’ अगले बरस फिर होगा के जयघोष के बीच शादीशुदा बंगाली महिलाएं एक दूसरे को सिदूंर लगाकर विजय दशमी की खुशी मनाती हैं. मां दुर्गा की प्रतिमा का विसर्जन करने से ठीक पहले ‘सिंदूर खेला’ की परंपरा है. सिंदूर खेला महिलाओं का ही उत्सव है. माना जाता है कि दुर्गा पूजा के अवसर पर मां दुर्गा अपनी बहनों सरस्वति, लक्ष्मी और दो पुत्र गणेश और कार्तिकेय के संग मायके आती हैं. वह यहां पर चार दिन रह कर विजयदशमी के दिन अपने पति भगवार शंकरजी के पास हिमालय की ओर प्रस्थान करती हैं. जिसको दुर्गा पूजा के रूप में मनाया जाता है. अंतिम दिन (विजयदशमी के दिन) को मां की विदाई का दिन माना जाता है. जिस तरह से मायके से ससुराल जाते वक्त एक मां अपनी बेटी को विदा करती है ठीक उसी तरह से बंगाली समुदाय की विवाहित महिलाएं सफेद और लाल रंग की साड़ी पहन कर मां दुर्गा की विदाई की रस्में अदा करती हैं.
महिलाएं मां दुर्गा की प्रतिमा को शृंगार करती हैं और हाथ में पान का पत्ता, मिठाई, सिंदूर आदि लेकर मां की परिक्रमा करती हैं. महिलाएं एक दूसरे के चेहरे पर सिंदूर लगाती हैं और मां दुर्गा की पूजा अर्चना करती हैं. इसे सिंदूर खेला के नाम से जाना जाता हैं.
ऐसा कहा जाता है कि मां दुर्गा मायके से विदा होकर ससुराल जाती हैं, इसलिए उनकी मांग भरी जाती है और सिंदूर को महिलाओं के सुहाग की निशानी कहते हैं.
विजयादशमी के दिन सिंदूर खेलने की बंग समुदाय में पुरानी परंपरा है. इसके बाद सभी लोग विजयादशमी मिलन समारोह आयोजित कर एक-दूसरे को शुभकामनाएं देते हैं.
-एजेंसी
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