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Tuesday, 10 October 2017

ग़ज़ल सम्राट कर 7वीं पुण्‍यतिथि आज: …वहां जगजीत सिंह को मिला पहला पुरस्कार

जालंधर का डीएवी कॉलेज उन दिनों जालंधर टाउनशिप के बाहर हुआ करता था और उसका नया हॉस्टल कॉलेज के सामने की सड़क के उस पार था.
जगजीत सिंह इसी हॉस्टल में रहते थे. लड़के उनके आसपास के कमरों में रहना पसंद नहीं करते थे क्योंकि जगजीत सिंह सुबह पांच बजे उठ कर दो घंटे रियाज़ करते थे.
वह न ख़ुद सोते थे, न बगल में रहने वाले लड़कों को सोने देते थे. बहुत कम लोगों को पता है कि उन्हीं दिनों ऑल इंडिया रेडियो के जालंधर स्टेशन ने उन्हें उप-शास्त्रीय गायन की शैली में फ़ेल कर दिया.
हाँ, शास्त्रीय शैली में उन्हें बी ग्रेड के गायक का दर्जा दिया गया.
एक बार मशहूर फ़िल्म निर्देशक सुभाष घई और जगजीत सिंह अपने अपने विश्वविद्यालयों की तरफ़ से एक अंतर राज्य महाविद्यालय युवा उत्सव में भाग लेने बेंगलुरु गए थे.
जगजीत पर किताब लिखने वाली सत्या सरन बताती हैं, “सुभाष घई ने मुझे बताया था. रात 11 बजे जगजीत का नंबर आया. माइक पर जब उद्घोषक ने घोषणा की कि पंजाब यूनिवर्सिटी का विद्यार्थी शास्त्रीय संगीत गाएगा तो वहाँ मौजूद लोग ज़ोर से हंस पड़े. उनकी नज़र में पंजाब तो भंगड़ा के लिए जाना जाता था.”
सत्या सरन को सुभाष घई ने बताया, “जैसे ही वे स्टेज पर आए लोग सीटी बजाने लगे. मैं सोच रहा था कि वो बुरी तरह से फ़्लॉप होने वाले हैं. उन्होंने बहरा कर देने वाले शोर के बीच आंख बंद कर आलाप लेना शुरू किया. तीस सेकेंड के बाद वो गाने लगे. धीरे-धीरे जैसे जादू हुआ. वहाँ मौजूद श्रोता शास्त्रीय संगीत को अच्छी तरह से समझते थे. जल्द ही वो तालियाँ बजाने लगे. पहले थम-थम कर और बाद में हर पांच मिनट पर पूरे जोश के साथ.”
“जब उन्होंने गाना ख़त्म किया तो इतनी ज़ोर से तालियाँ बजीं कि मेरी आँखों में आँसू आ गए.” वहां जगजीत को पहला पुरस्कार मिला.
1965 में जगजीत सिंह मुंबई पहुंचे थे, जहाँ उनकी मुलाक़ात उस समय उभर रही गायिका चित्रा सिंह से हुई थी.
चित्रा सिंह बताती हैं, “जब पहली बार मैंने जगजीत को अपनी बालकनी से देखा था तो वो इतनी टाइट पैंट पहने हुए थे कि उन्हें चलने में दिक्कत हो रही थी. वो मेरे पड़ोस में गाने के लिए आए थे.”
“मेरी पड़ोसी ने मुझसे पूछा कि संगीत सुनोगी? क्या गाता है. क्या आवाज़ पाई है.”
वो बताती हैं, “लेकिन जब मैंने उन्हें पहली बार सुना तो वो मुझे क़तई अच्छे नहीं लगे. मैंने एक मिनट बाद ही टेप बंद कर देने के लिए कहा.”
दो साल बाद जगजीत और चित्रा संयोग से एक ही स्टूडियो में गाना रिकॉर्ड करा रहे थे.
चित्रा बताती हैं, “रिकॉर्डिंग के बाद मैंने जगजीत को अपनी कार में लिफ़्ट देने की पेशकश की, सिर्फ़ कर्ट्सी के नाते. मैंने कहा कि मैं करमाइकल रोड पर उतर जाउंगी और फिर मेरा ड्राइवर आपको आपके घर छोड़ देगा.”
“जब वो मेरे घर पहुंचे तो मैंने शालीनतावश ऊपर अपने फ़्लैट में उन्हें चाय पीने के लिए बुलाया. मैं रसोई में चाय बनाने चली गई. तभी मैंने ड्राइंग रूम में हारमोनियम की आवाज़ सुनी. जगजीत सिंग गा रहे थे… धुआँ उठा था… उस दिन से मैं उनके संगीत की कायल हो गई.”
धीरे-धीरे चित्रा के साथ उनकी दोस्ती बढ़ी और दोनों ने एक साथ गाना शुरू कर दिया. जगजीत सिंह ने ही चित्रा को सुर साधने, उच्चारण और आरोह-अवरोह की कला सिखाई.
चित्रा के साथ वो एक सख़्त टीचर थे. चित्रा याद करती हैं, “अगर मैं डुएट के दौरान कोई ग़लती करती थी तो वो तत्काल मुंह बना लेते थे. मेरी आवाज़ बांसुरी जैसी थी, महीन और ऊँचे सुर वाली, जबकि उनकी आवाज़ भारी थी. उन्होंने संगीत का गहरा प्रशिक्षण लिया था. वो ज़रूरत पड़ने पर किसी गाने को चालीस पैंतालीस मिनट तक खींच सकते थे.”
“मैं ऐसा नहीं कर सकती थी. मैं जानती हूँ डुएट गाने में उनकी आवाज़ बाधित होती थी, स्टेज पर और अधिक. उनका मुख्य स्वभाव था ऊँचा उठाना. उनको बंधन से नफ़रत थी.”
जिस रिकॉर्ड ने जगजीत की पहचान पूरे देश में बनाई वो था ‘द अनफॉरगेटेबल.’
जगजीत सिंह के छोटे भाई करतार सिंह कहते हैं, इसकी सफलता का कारण था मधुर संगीत और उनका नज़्म का चुनाव.
वे बताते हैं, “उनके आने से पहले ग़ज़ल का अंदाज़ अलग तरीक़े का था. वो शास्त्रीय था. उसमें साज़ के रूप में तबले का ही इस्तेमाल होता था और साथ में हारमोनियम और सारंगी का.”
“जगजीत ने संगीत में पश्चिमी वाद्य यंत्रों के साथ स्टीरियोफ़ोनिक रिकॉर्डिंग के ज़रिए ग़ज़ल को समय के अनुकूल बना दिया.”
1979 में उनका रिकॉर्ड ‘कम अलाइव’ आया. इसमें कई चीज़ें नई थीं. मसलन कंसर्ट की लाइव रिकॉर्डिंग, ग़ज़ल सुनाते-सुनाते जगजीत की सुनने वालों से बातचीत और बीच-बीच में चुटकुले.
करतार सिंह बताते हैं, “एक बार मैंने उनसे पूछा था कि आप ग़ज़ल के बीच में जोक्स क्यों सुनाते हैं? वो कहने लगे कि ऑडियंस से कनेक्ट करना होता है. सिर्फ़ गाने से आप कनेक्ट नहीं कर सकते. हैवी ग़ज़ल सुनाने के बाद लोगों को फिर से पुराने मूड में लाना होता है. ये उन्होंने बहुत जल्दी महसूस कर लिया था कि ऑडिएंस को साथ लेकर चलना होता है.”
चित्रा कहती हैं कि वो चुटकुले इसलिए सुनाया करते थे ताकि साजिंदों को थोड़ा आराम मिल जाए. कम लोगों को पता है कि ‘कम अलाइव’ को मुंबई के एक स्टूडियो में काल्पनिक कंसर्ट के तौर पर रिकॉर्ड किया गया था, जहाँ दर्शकों की प्रतिक्रियाओं को नकली रूप में बनाया जाता था, ताकि वो सुनने में लाइव शो जैसा असर पैदा करें.
शायर और फ़िल्मकार गुलज़ार के सीरियल ‘मिर्ज़ा ग़ालिब’ से भी जगजीत का बहुत नाम हुआ.
जगजीत के सामने चुनौती ये थी कि तलत महमूद से लेकर लता मंगेशकर, बेग़म अख़्तर, मेंहदी हसन और सुरैया तक ने ग़ालिब को गाया है. ऐसे में उनको उन सब से अलग होना था. जगजीत ने इस एलबम के साथ इतिहास रच दिया.
सत्या सरन कहती हैं, “गुलज़ार और जगजीत दोनों ब्राइट हैं, क्रिएटिव हैं और जीनियस हैं… लेकिन उन दोनों के बीच थोड़ा सा कंपिटीशन भी था. साथ ही उनमें एक सिनर्जी भी थी. गुलज़ार बताते हैं कि जगजीत के साथ मेरे इस बात पर गहरे मतभेद थे कि मैं उन्हें ऐसा कोई साज़ इस्तेमाल नहीं करने देना चाहता था जो ग़ालिब के दौर में नहीं थे. जगजीत का कहना था कि अगर ऐसा होता हो तो संगीत नंगा लगेगा. वास्तव में उन्होंने ये शब्द इस्तेमाल किया. लेकिन गुलज़ार ने इस पर कोई समझौता नहीं किया और अंतत: उन्हीं की चली.”
1999 में जब जगजीत पाकिस्तान गए तो वो पाकिस्तान के राष्ट्रपति परवेज़ मुशर्रफ़ के घर पर भी गए.
वहाँ दोनों ने साथ-साथ पंजाबी गीत गाए और मुशर्रफ़ ने उनके साथ तबला भी बजाया.
पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भी जगजीत सिंह के दीवाने थे.
एक बार उन्होंने जगजीत और चित्रा को अपने घर बुलाया था और इस बात को स्वीकार किया था कि उनका परिवार उनके अलावा और किसी का संगीत नहीं सुनता.
करतार सिंह बताते हैं, “एक बार जब जगजीत इस्लामाबाद से दिल्ली आ रहे थे तो विमान के कर्मचारियों ने ढाई घंटे तक विमान को हवा में रखा था ताकि उन्हें जगजीत के साथ अधिक से अधिक समय बिताने का मौक़ा मिल सके.”
जगजीत अपने साजिंदों के आराम और सम्मान का बहुत ध्यान रखते थे.
सत्या सरन एक क़िस्सा सुनाती हैं, “उनके रिकॉर्डिस्ट दमन सूद ने एक बार मुझे बताया था कि एक बार विदेश यात्रा के दौरान जगजीत उनके लिए सुबह-सुबह बेड टी बना कर लाए. और तो और एक बार उन्होंने अपने हाथों से मेरा सूट आयरन करके मुझे दिया था.”
जगजीत सिंह हर दो साल पर एक एलबम रिलीज़ करना पसंद करते थे, क्योंकि उनका मानना था कि सुनने वालों को थोड़ी प्रतीक्षा करवानी चाहिए.
जगजीत सिंह को घुड़दौड़ का बहुत शौक था. ‘ए साउंड अफ़ेयर’ की रिकॉर्डिंग के दौरान उनकी आवाज़ बुरी तरह बैठ गई.
सत्या सरन बताती हैं, “वो एक बार रेस में थे और जब उनका घोड़ा अचानक आगे निकल गया तो वो जोश में ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाने लगे. जब तुक्के से उनका घोड़ा जीत गया तो वो सातवें आसमान पर पहुंच गए. इसका नतीजा ये हुआ कि अगली सुबह वो जगे तो उनकी आवाज़ ही बैठ गई. उनको वापस गाना गाने लायक होने में पूरे चार महीने लगे.”
दमन सूद याद करते हैं, “उनकी सिगरेट पीने की आदत की वजह से उनसे अक्सर मेरी बहस होती थी. वो गुलज़ार और तलत महमूद के उदाहरण देकर मुझे ये समझाने की कोशिश करते थे कि सिगरेट पीने की वजह से उनकी आवाज़ में एक ख़ास तरह की गहराई पैदा हो जाएगी.”
जब उन्हें पहली बार दिल का दौरा पड़ा तो उन्हें मजबूरन सिगरेट छोड़नी पड़ी. उन्हें इसके कारण अपनी कुछ अन्य आदतों को भी छोड़ देना पड़ा.
मसलन अपने गले को गर्म करने के लिए स्टील के ग्लास में थोड़ी-सी रम पीना.
जावेद अख़्तर ने जगजीत सिंह के बारे में कहा था कि वो ग़ज़ल गायकी में भारतीय उप-महाद्वीप के आख़िरी स्तंभ थे. उनकी आवाज़ में एक ‘चैन’ था. पहली बार जावेद ने उनको अमिताभ बच्चन के घर पर सुना था.
उस एलपी रिकॉर्ड की पहली ही नज़्म थी ‘बात निकलेगी तो दूर तलक जाएगी…’. बात निकली और वाक़ई दूर तक गई.
-BBC

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