निर्मूल शंका और आशंकाएं हमें बेवजह परेशान करती हैं और हम बिना सोचे-विचारे उनके निराकरण में जुट जाते हैं। हम यह तक विचार नहीं करते कि कहीं हमारे मन में रोपी गईं झूठी शंकाएं हमारे इर्द-गिर्द जमा लोगों की ही देन तो नहीं हैं।
मुल्ला नसरुद्दीन का एक कथित मित्र उसके पास आया और बोला- नसरुद्दीन तुम्हारी बेगम रात में अपने प्रेमी के साथ तुम्हारे ही आम के बगीचे में जाकर प्रेमालाप करती है।
मुल्ला गंभीर हो गया और पूछने लगा- रात में कितने बजे ?
मित्र ने बताया- यही कोई एक बजे।
मुल्ला का वह पूरा दिन बड़ी बेचैनी में कटा। उसने रात का खाना भी नहीं खाया। दस बजे करीब वह अपनी बंदूक के साथ बगीचे में एक पेड़ के पीछे छिपकर खड़ा हो गया। सोच लिया था उसने कि आज दोनों को एकसाथ खत्म कर दूंगा।
रात गहराती गई किंतु न उसकी बेगम बगीचे में पहुंची और न उसका प्रेमी। उसने कलाई पर बंधी घड़ी देखी तो पता लगा कि एक की जगह दो बज चुके हैं।
अचानक उसे ध्यान आया कि वह तो अभी कुंवारा ही है। उसकी शादी कहां हुई है। उसने अपना सिर पीट लिया।
हो सकता है आप मुल्ला की बेवकूफी पर हंस रहे हों, किंतु सोच कर देखेंगे तो पता लगेगा कि अधिकांशत: हम सुनी-सुनाई बातों पर विश्वास करके भड़कते रहते हैं। लड़ते-झगड़ते हैं जबकि उन बातों का कोई आधार नहीं होता।
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